Pradushan ke Dushparinam “प्रदूषण के दुष्परिणाम” Hindi Essay 500 Words, Best Essay, Paragraph, Anuched for Class 8, 9, 10, 12 Students.

प्रदूषण के दुष्परिणाम

Pradushan ke Dushparinam

आज पूरी दुनिया में पर्यावरण बिगड़ रहा है। यही वजह है कि पाँच जून को दुनिया में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर राष्ट्र संघ और उससे जुड़ी संस्थाएँ हर साल पर्यावरण पर अनेक गोष्ठियाँ करती हैं जिनमें विश्व में बिगड़ रहे पर्यावरण पर चिंता प्रकट की जाती है। भारत की स्थिति इस दृष्टि से बहुत खराब है।

बढ़ता प्रदूषण का कारण मानवीय स्रोत हैं। औद्यौगिकीकरण और नगरीकरण की प्रक्रिया में घने वन उपवन उजड़ते जा रहे हैं। इससे पर्यावरण और अधिक बिगड़ रहा है। नदियाँ, वायुमंडल, समुद्र, भूजल, वायु, सभी प्रदूषित हो गए हैं। इस कारण देश में अधिकांश लोग बीमारीभरा जीवन जी रहे हैं। शरीर के तंतुओं में ऑक्सीजन की कमी आ रही है इससे स्नायुतंत्र दुर्बल होता जा रहा है। श्वास संबंधी रोगों में बढ़ोतरी हुई है। दर्द-खाँसी की भारतीयों का आम शिकायत हो रही है। दमा का आक्रमण हो रहा है। धूल के कारण पर्यावरण में विषाक्तता आ गई है। इससे कैंसर जैसी बीमारियाँ जन्म ले रही हैं। हाइड्रो कार्बन के कारण आँखों में जलन की आम शिकायतें हैं। लोगों के लीवर, किडनी को नुकसान हो रहा है। बच्चों की मानसिक स्थिति बिगड़ रही है। पुरुषों की प्रजनन क्षमता कम हो रही है। गर्भस्थ शिशु दम तोड़ रहा है।

विश्व स्वाथ्य संगठन ने प्रदूषित वातावरण के कारण निम्नलिखित रोगों का होना बताया है हैजा, डायरिया, टायफाइड, पालियोमाईटिस, राउंडवर्म, ट्राकोमा, लौश्मानियसिस, गोनिया वर्म, स्लीपिंग सिकनेस, फाईलेरिया, मलेरिया, रीवर ब्लांडनेस, यलो फीवर और डेंगू बुखार। 1 प्रदूषित वातावरण के कारण हर साल चालीस लाख लोग डायरिया के शिकार होते हैं, इनमें हैजा, मलेरिया बीस बीस लाख

और शिस्टोसोमियासिस से दो लाख लोग काल का ग्रास बनते हैं। यह भी अध्ययन किया गया है कि विश्व में साढे चार सौ लाख टन औद्यौगिक राख हवा में घुल जाती है। मेडिकल रिपोर्ट बताती है कि सन् 1997 में वायु प्रदूषण के कारण मरने वालों की संख्या 25 लाख थी।

प्रदूषण का इतना भयावह असर है कि नदियों का जल पीने लायक नहीं रहा है जबकि जीवन जीने के लिए पानी का स्थान दूसरे नंबर पर है। देश के पहले और दूसरे नंबर पर गिने जाने वाले शहरों की नदियों में रोजाना दो हज़ार करोड़ लीटर गंदा जल -नदियों में छोड़ा जाता है लेकिन उनमें से केवल दौ सौ करोड़ लीटर जल शुद्ध किया जाता है। इसी तरह भारत के शहरों से हर साल रोजाना चार सौ लाख टन कचरा एकत्र किया जाता है, जिसके निषेधन की कोई उचित व्यवस्था नहीं है।

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