Parhit Saris Dharam Nahi Bhai “परहित सरिस धर्म नहीं भाई” Essay in Hindi, Best Essay, Paragraph, Nibandh for Class 8, 9, 10, 12 Students.

परहित सरिस धर्म नहीं भाई

Parhit Saris Dharam Nahi Bhai

दूसरों की भलाई के बारे में सोचना तथा उसके लिए कार्य करना महान गुण है। वृक्ष अपने लिए नहीं, औरों के लिए फल धारण करते हैं। नदियाँ भी अपना जल स्वयं नहीं पीती। परोपकारी मनुष्य संपत्ति का संचय भी औरों के कल्याण के लिए करते हैं। मानव-जीवन भी एक-दूसरे के सहयोग पर निर्भर है। परोपकार का सुख लौकिक नहीं, अलौकिक है। जब कोई व्यक्ति निस्वार्थ भाव से किसी घायल की सेवा करता है तो उस क्षण वह मनुष्य नहीं, दीनदयालु के पद पर पहुँच जाता है। वह दिव्य सुख प्राप्त करता है। उस सुख की तलना में धन-दौलत कुछ भी नहीं है। यहाँ दधीचि जैसे ऋषि हुए जिन्होंने अपनी जाति के लिए अपने शरीर की हड़ियाँ दान में दे दी। बद्ध, महावीर, अशोक, गाँधी, अरविद जैसे महापुरुषों के जीवन परोपकार के कारण ही महान बन सके हैं। परोपकारी व्यक्ति सदा प्रसन्न, निर्मल और हँसमुख रहता है। वह पूजा के योग्य हो जाता है।

Leave a Reply