Mera Priya Kavi “मेरा प्रिय कवि” Hindi Essay 800 Words, Best Essay, Paragraph, Anuched for Class 8, 9, 10, 12 Students.

मेरा प्रिय कवि

Mera Priya Kavi

छायावाद के प्रारम्भिक कवियों में क्रमश: व्यक्तिचेतना, राष्ट्रीय चेतना और समष्टि चेतना का प्रस्फुटन और विकास दृष्टिगोचर होता है। किन्तु आगे चलकर अलग-अलग कवियों में इनमें से किसी एक चेतना की प्रधानता परिलक्षित होती है। व्यक्तिचेतना के प्रधान कवियों में जिस कवि की सबसे अधिक गणना की जाती है वे हैं डॉ. हरिवंशराय बच्चन।

बच्चन जी का जन्म 27 नवम्बर 1907 ई. में चौक मुहल्ला इलाहाबाद में हुआ। बच्चन इनका अभिभावकों द्वारा दिया गया नाम है। यह नाम बाद में व्यक्तिवाचक संज्ञा से जातिवाचक में परिणत हो गया। माँ साक्षात वाणी की अवतार सुश्री सरस्वती तथा पिता प्रताप को प्रतिमूर्ति श्रीप्रतापनारायण जी दोनों ही विद्याव्यसनी थे। इस प्रकार ज्ञान लालसा इन्हें विरासत में मिली। इनकी आरम्भिक शिक्षा उर्दू के माध्यम से हुई। इनकी एम.ए. तक की शिक्षा इलाहाबाद में हुई।

1939 में काशी विश्वविद्यालय से बी.टी. की परीक्षा पास की। इनके पिता ‘पायोनियर’ अखबार में काम करते थे। इसलिए उनकी प्रेरणा से इन्होंने संवाददाता का कार्य किया। अग्रवाल विद्यालय में कुछ दिन पहाया भी। इन्होंने चाँद, अभ्युदय तथा मदारी आदि समाचारपत्रों में भी काम किया। सन 1941 में ये प्रयाग विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्राध्यापक नियुक्त हुए। सन् 1954 में इन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से कीट्स पर पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। सन् 1955 में इनकी नियुक्ति केन्द्रीय सरकार के विदेश विभाग में हिंदी सलाहकार के रूप में हो गई। इन्होंने विभिन्न पदों पर रहते हुए अपनी साहित्य साधना को यथावत् रखा। सन् 1966 ई में उनकी साहित्यिक सेवाओं के कारण राज्यसभा का सदस्य मनोनीत कर दिया गया। सन् 2003 में इनका निधन हो गया।

बच्चन जी ने अपनी जीवन गाथा ‘नीड का निर्वाण फिर’ फिर में लिखा है कि इन्हें चार नारियों का संसर्ग प्राप्त हुआ। वृक्षपरी चम्पा. श्यामा देवी, एक ईसाई यवती और तेजी। श्यामा से ये विवाह सत्र में बंधे। और श्यामा की मृत्यु के बाद इन्होंने तेजी से विवाह कर लिया। बच्चन जी के जीवन के विकास और सफलता में तेजी जी का विशेष हाथ है। वे एक विवेकशील सहधर्मिणी रही हैं।

बच्चन जी की काव्य प्रतिभा बहुमुखी है। अंग्रेजी में पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त करने के बाद भी इन्होंने हिंदी को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।

कृतित्व : बच्चन की रचनाओं को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता हैगद्य : क्या भूलूँ क्या याद करूँ? नौड़ का निर्माण फिर फिर, टूटी-छूटी कड़ियाँ।

काव्य : मधुशाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल अन्तर, सतरगिनी, हलाहल, बंगाल का काल, सूत की माला, मिलनयामिनी, प्रणय पत्रिका, आरती और अंगारे, बुद्ध और नाच घर, त्रिभंगिमा, चार खेमे चौसठ खूटे। बहुत दिन बीते. उभरते प्रतिमानों के रूप तथा जाल समेटा।

अनूदित : उमर खय्याम की मधुशाला, जमगीता, खैय्याम की रूबाइयाँ, चौसठ रूसी कविताएँ, मरकत द्वीप का स्वर तथा नागर गीता।

निबंध : नये पुराने झरोखे, कवियों में सौम्य पंत, प्रवासी की डायरी।

काव्यगत विशेषताएँ : मस्ती और अल्हड़पन के गीत गाने वाले कवि बच्चन का हिंदी जगत् से सबसे पहला परिचय उमर खैय्याम की रुबाइयों के अनुवाद से हुआ था। यह अनुवाद शाब्दिक नहीं है अपितु हृदय रस से ओतप्रोत है। कवि बच्चन में व्यक्तिगत अहंकार और दर्प की मात्रा प्रबल है। रूढ़िवादियों ने उनकी दूसरी कृति मधुशाला का जमकर विरोध किया। इसके बावजूद कपि उन्हें सवल चुनौती देते हुए अपने मार्ग पर बढ़ता चला गया। उनकी रचना में उनका हृदय छलक रहा है। मधुकलश में उनकी निराशा का स्वर स्पष्ट है-

पूछता जग है निराशा से

भरा क्यों गान मेरा?

इनकी रचनाओं ‘निशा निमंत्रण’, ‘एकांत संगीत’, ‘आकुल अन्तर’, ‘विकल विश्व’ और ‘सत रंगिणी’ में कविता संबंध एक नया दृष्टिकोण दिखाई देता है। ‘निशा निमंत्रण’ के गीतों में गहरी वेदना है और दार्शनिकता है। ‘एकांत संगीत’ का कति सासारिक निराशा और विषमता का खम ठोककर मुकाबला करने को तैयार है। ‘आकुल अनंतर’ में यही प्रवृत्ति दृढ़ से दृढ़तर रूप में दिखाई देती है। ‘विकल विश्व’ में कवि व्यथित विश्व को आशा और विश्वास का उल्लासमय संदेश दे रहा है। सतरंगिनों में उनके फूटकर गीत हैं।

बच्चन जी के काव्य में यौवन और मधुचर्या से संबंधित भाव निरूपित हुए है। किन्तु वह मधुचर्या अपने अह को सर्वोच्च समझने वाले व्यक्ति की है। अहवादिता के कारण वे सामाजिक मान्यताओं को ही पूर्ण रूपेण परिवर्तित कर देना चाहते हैं। इनकी प्रायः सभी रचनाओं में में यौवन, सौन्दर्य, मस्ती के स्वर, बुलन्द हुए हैं। फारसी के शब्द शराब, जाम, साकी आदि सभी सूफियों के द्वारा अध्यात्म के सन्दर्भ में प्रस्तुत किए गए थे। किन्त बच्चन जी ने उनका लौकिक अर्थ ही ग्रहण किया-

इस पार प्रिये हम हैं, मधु हैं

उस पार जाने क्या होगा?

मधुशाला में बच्चन जी ने भाग्य को प्रबल और मानव को निर्बल बताया है। यौवन की परिणति निराशा में होने से आपके काव्य में निराशा का स्वर गहराया है। बच्चन जी का हिंदी काव्य में निश्चित रूप से एक श्रेष्ठतम स्थान है।

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