खेल और युवा
Khel aur Yuva
खेल युवा को तन-मन से स्वस्थ रखते हैं। उसके प्रसन्न रहने का यह एक अचूक साधन है। खेल के बाद मन अध्ययन में लग जाता है। अगर शरीर स्वस्थ रखना है तो पाचन-तंत्र अच्छा होना चाहिए। इससे वात. पित्त और कफ के रोग खत्म होते हैं। रस और विभिन्न धातुओं का निर्माण होता है। स्वस्थ्य शरीर में ही तो स्वस्थ्य मन का निवास होता है। मल का सही तरह विसर्जन होता है। खेल से शरीर की हड्डियाँ मज़बूत होती हैं। युवा धाविका पीटी उषा ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था, मैंने अपना दौड़ प्रशिक्षण आठवीं कक्षा से आरम्भ किया था’ इससे स्पष्ट होता है कि यवाओं के लिए खेल कितना महत्त्वपूर्ण है। कोमल हड्डियाँ तभी मज़बूत होंगी जब युवा खेलों में रुचि लेगा। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि खेल को इतना सर्वोपरि बना लिया जाए कि पढ़ाई में मन उचट जाए।
यवाओं के लिए विभिन्न प्रकार के खेल हैं। कुछ मनोरंजन से जुड़े हुए हैं और कुछ व्यायाम से। मनोरंजन से जुड़े हुए खेल हैं-ताश शतरंज, कैरम, कंप्यूटर पर सगा आदि। इन खेलों से मन का व्यायाम होता है। इसके अतिरिक्त मनोरंजन भी होता है। ताश का पत्ता फेंका जाए या शतरंज की चाल चली जाए या कंप्यूटर पर खेल खेले जाएँ, ये सब मन का व्यायाम करते हैं। लेकिन जब व्यायाम किया जाता है तो इससे मन की और तन की दोनों की कसरत होती है। इसमें योग महत्त्वपर्ण है। योग से मन और तन दोनों स्वस्थ और शुद्ध होते हैं। दौड़, कुश्ती, खो-खो, हॉकी, क्रिकेट, फुटबॉल आदि खेल व्यायाम के श्रेष्ठ साधन हैं। इन खेलों से शरीर सुडौल होता है, सुव्यवस्थित होता है, सुगठित होता है, मज़बूत होता है और पुटठे भी ताकतवर होते हैं। इन खेलों से सीना चौड़ा होता है। गर्दन गोल होती है, मोटी होती है। सभी इंन्द्रियाँ स्वस्थ होती हैं। मन में उत्साह होता है। शरीर स्फति बनी रहती है। मन में उत्साह छाया रहता है। तैराकी, तीरंदाजी, पर्वतारोहण आदि भी युवाओं के खेल हैं। इनसे शरीर को व्यायाम मिलता है। आखिर में हम नेपालियन की यह पंक्ति दे सकते हैं जिसमें खेल के महत्त्व की चर्चा की गई है- ‘मेरी सफलता का रहस्य युवावस्था में खेल के मैदान रहे हैं।’