Hindi Story, Essay on “Unth ke muh me Jeera”, “ऊँट के मुँह में जीरा” Hindi Moral Story, Nibandh for Class 7, 8, 9, 10 and 12 students

ऊँट के मुँह में जीरा

Unth ke muh me Jeera

 

दादाजी और अमर बाहर आँगन में बैठे थे। घर के अंदर रसोई में दादीजी खाना बना रही थीं। तभी अचानक दादाजी को कुछ याद आया और अमर से बोले-“बेटा, अपनी दादी से कहो कि मूंग की दाल में जीरे का तड़का जरूर लगा दें।”

“अच्छा, दादाजी!” कहता हुआ अमर अंदर गया और दादीजी से मूंग की दाल में जीरे का तड़का लगाने की बात कह दी। “हाँ, हाँ, बेटा ! जीरे का तड़का लगा देंगी।” दादीजी बोलीं-“अमर बेटा, अपने दादाजी से पूछना कि ऊँट के मुँह में जीरे का क्या मतलब है?”

अमर भागता हुआ दादाजी के पास गया और बोला-“दादाजी, एक बात बताइए। ऊँट के मुँह में जीरे का क्या मतलब होता है?” तभी वहाँ लता भी आ गई।

दादाजी ने समझाया-“बेटा, ऊँट के मुँह में जीरा एक कहावत है। इसका मतलब है, ज्यादा खाने वाले को बहुत थोड़ा खाने को देना । जैसे, हाथी को खाने के लिए सिर्फ एक केला दिया जाए तो इससे उसकी भूख नहीं मिटेगी। इस कहावत के पीछे भी एक कहानी है। सुनोगे क्या?”

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अमर और लता दोनों बोले–“हाँ, दादाजी!” । “तो सुनो!” दादाजी ने कहना शुरू किया-“ एक बार एक गरीब किसान ऊँट गाड़ी में अपने परिवार के साथ दूसरे गाँव जा रहा था। किसान की बूढी माँ, उसकी पत्नी और तीन बच्चे उसके साथ थे। रास्ता काफी लंबा था। जो कुछ खाने-पीने को साथ ले गया था, सब खत्म हो गया। चलते-चलते शाम हो गई। बेचारा ऊँट थक गया था। उसे कुछ दिनों से भरपेट खाना नहीं मिला था। चलते-चलते ऊँट की चाल धीमी हो गई। वह रुक-रुककर चलने लगा। भूख और प्यास के मारे उसका बुरा हाल था। “ किसान ने अपनी पत्नी से कहा-‘अरी भागवान, कुछ खाने-पीने को बचा है क्या? ऊँट का बुरा हाल है। भूख और प्यास से उसकी जान निकली जा रही है। लगता है, अब यह गाड़ी नहीं खींच पाएगा।’ किसान की पत्नी ने खाने की पोटली और पानी के मटके में हाथ डालकर देखा। दोनों बिलकुल खाली थे। वह बोली-‘ना जी, खाना-पीना कुछ नहीं बचा है। तभी किसान को अचानक कुछ याद आया। उसने अपनी कमीज की जेब से एक कागज की पुड़िया निकाली। उसमें जीरे के दाने रखे थे। किसान ने जीरे के कुछ दाने ऊँट के मुँह में डाल दिए। भला जीरे के दानों से भूखे-प्यासे ऊँट का क्या बनता? थोड़ी दूर चलने के बाद बेचारा ऊंट लड़खड़ाकर गिर पड़ा। यह देखकर किसान ने अपने माथे पर हाथ मारा और बोला-‘ऊँट के मुँह में जीरा, जैसे हाथी के मुँह में खीरा’! “

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दादाजी की कहानी सुनकर अमर और लता खुश हो गए। लता बोली-“दादाजी, हमें इस कहानी से एक सीख जरूर मिलती है। जिसको जितनी भूख है, उसे उसके अनुसार भोजन मिलना चाहिए। जब हमारे घर में कोई मेहमान आते हैं, तब हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए।”

“दादाजी, जो पहलवान लोग होते हैं, उनकी खुराक बहुत ज्यादा होती है। जैसे नाश्ते में एक पहलवान को कम-से-कम एक दर्जन अंडे, केले, टोस्ट और एक लीटर दूध चाहिए। तब कहीं उसकी भूख मिटेगी। अगर हम उसे दो टोस्ट, एक अंडा, एक केला और एक कप दूध देंगे, तो वह बेचारा भूखा ही रह जाएगा।” अमर ने कहा।

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