Hindi Story, Essay on “Sachi Mitrata”, “सच्ची मित्रता” Complete Paragraph for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10 Students.

सच्ची मित्रता

Sachi Mitrata 

 

बहुत समय पहले की बात है, एक सुंदर हरे-भरे वन में चार मित्र रहते थे-चूहा, कौआ, हिरण और कछुआ। अलग-अलग जाति का होने के बावजूद उनमें बहुत घनिष्ठता थी। चारों एक-दूसरे पर जान छिड़कते थे। चारों घुल-मिलकर रहते, खूब बातें करते और खेलते। वन में एक निर्मल सरोवर था, जिसमें वह कछुआ रहता था। सरोवर के तट के पास ही जामुन का एक बड़ा पेड़ था। उसी पर बने घोंसले में कौवा रहता था। पेड़ के नीचे जमीन में बिल बनाकर चूहा रहता था और निकट ही घनी झाड़ियों में हिरण का बसेरा था। दिन को कछुआ तट की रेत में धूप सेंकता रहता और पानी में डुबकियाँ लगाता। बाकी तीन मित्र भोजन की तलाश में निकल पड़ते और दूर तक घूमकर सूर्यास्त के समय लौट आते। चारों मित्र इकट्ठे होते, एक-दूसरे के गले लगते, खेलते और धमा-चौकड़ी मचाते।

एक दिन शाम को चूहा और कौवा तो लौट आए, परंतु हिरण नहीं लौटा।। तीनों मित्र बैठकर उसकी राह देखने लगे। कछुआ भर्राए गले से बोला, “वह तो रोज तुम दोनों से भी पहले लौट आता था, आज पता नहीं क्या बात हो गई, जो अब तक नहीं आया। मेरा तो दिल डूबा जा रहा है।”

चूहे ने चिंतित स्वर में कहा, “हाँ, बात बहुत गंभीर है। जरूर वह किसी मुसीबत में पड़ गया है। अब हम क्या करें?”

कौवे ने ऊपर देखते हुए अपनी चोंच खोली, “मित्रो, वह जिधर चरने जाता है, उधर मैं उड़कर देख आता, पर अँधेरा घिरने लगा है। नीचे कुछ नजर नहीं आएगा। हमें सुबह तक प्रतीक्षा करनी होगी। सुबह होते ही मैं उड़कर जाऊँगा और उसकी कुछ खबर लाकर तुम्हें दूँगा।” कछुए ने सिर हिलाया, “अपने मित्र की कुशलता जाने बिना रात को नौंद कैसे आएगी? दिल को चैन कैसे पड़ेगा? मैं तो उस ओर अभी चल पड़ता हूँ, मेरी चाल भी बहुत धीमी है। तुम दोनों सुबह आ जाना।”

चूहा बोला, “मुझसे भी हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठा जाएगा। मैं भी कछुए भाई के साथ चल सकता हूँ। कौए भाई, तुम पौ फटते ही चल पड़ना।”

कछुआ और चूहा तो चल दिए। कौवे ने रात आँखों में काटी। जैसे ही पौ फटी, कौआ भी उड़ चला। उड़ते-उड़ते चारों ओर नजर डालता जा रहा था। आगे एक स्थान पर कछुआ और चूहा जाते नजर आए। कौवे ने काँ-काँ करके उन्हें सूचना दी कि उन्हें देख लिया है और वह खोज में आगे जा रहा है। अब कौवे ने हिरण को पुकारना भी शुरू किया, “मित्र हिरण, तुम कहाँ हो? आवाज दो मित्र।”

तभी उसे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। स्वर उसके मित्र हिरण जैसा था। आवाज की दिशा में उड़कर वह सीधा उस जगह पहुँचा, जहाँ हिरण एक शिकारी के जाल में फँसा छटपटा रहा था। हिरण ने रोते हुए बताया कि कैसे एक निर्दयी शिकारी ने वहाँ जाल बिछा रखा था। दुर्भाग्यवश वह जाल । न देख पाया और फँस गया। हिरण सुबका, “शिकारी आता ही होगा वह मुझे पकड़कर ले जाएगा और मेरी कहानी खत्म समझो। मित्र कौवे! तुम चूहे और कछुए को भी मेरा अंतिम नमस्कार कहना।”मारा
कौआ बोला, “मित्र, हम जान की बाजी लगाकर भी तुम्हें छुड़ा लेंगे।” हिरण ने निराशा व्यक्त की, “लेकिन तुम ऐसा कैसे कर पाओगे?”

कौवे ने पंख फडफडाए,”सुनो, मैं अपने मित्र चूहे को पीठ पर बिठाकर ले आता हूँ। वह अपने पैने दाँतों से जाल कुतर देगा।”
हिरण को आशा की किरण दिखाई दी। उसकी आँखें चमक उठी. “तो मित्र, चहे भाई को शीघ्र ले आओ।”

कौआ उडा और तेजी से वहाँ पहुँचा, जहाँ कछुआ तथा चूहा आ पहँचे थे। कौवे ने समय नष्ट किए बिना बताया, “मित्रो, हमारा मित्र हिरण एक दष्ट शिकारी के जाल में कैद है। जान की बाजी लगी है। शिकारी के आने से पहले हमने उसे न छडाया तो वह मारा जाएगा।”

कछुआ हकलाया, “उसके लिए हमें क्या करना होगा? जल्दी बताओ?”

चूहे के तेज दिमाग ने कौवे का इशारा समझ लिया था, “घबराओ मत कौवे भाई, मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर हिरण के पास ले चलो।”

चूहे ने जाल कुतरकर हिरण को मुक्त कर दिया। मुक्त होते ही हिरण ने अपने मित्रों को गले लगा लिया और रुंधे गले से उन्हें धन्यवाद दिया। तभी कछुआ भी वहाँ आ पहुँचा और खुशी में शामिल हो गया।

हिरण बोला,”मित्र, मैं भाग्यशाली हूँ. जिसे ऐसे सच्चे मित्र मिले हैं।”

चारों मित्र भाव-विभोर होकर खशी से नाचने लगे। एकाएक, हिरण चौंका और उसने मित्रों को चेतावनी दी. “भाइयो, देखो वह जालिम शिकारी आ रहा है। फौरन छिप जाओ।”

चूहा फौरन पास के एक बिल में घुस गया। कौआ उड़कर पेड़ की ऊँची डाल पर जा बैठा। हिरण छलाँग लगाकर झाड़ी में जा घुसा व ओझल हो गया। परंतु कछुआ दो कदम भी न चल पाया था कि शिकारी आ धमका। जाल को कटा देखकर उसने अपना माथा पीटा, “क्या फँसा था और किसने काटा?” यह जानने के लिए वह पैरों के निशानों के सुराग ढूँढने के लिए इधर-उधर। देख ही रहा था कि उसकी नजर रेंगकर जाते कछए पर पडी। उसकी आंख चमक उठीं, “वाह ! भागते चोर की लँगोटी ही सही।”

उसने कछुए को उठाकर अपने थैले में डाला और जाल समेटकर चलने लगा। कौवे ने तुरंत हिरण व चूहे को बुलाकर कहा, “मित्रो, हमारे मित्र कछुए को शिकारी थैले में डालकर ले जा रहा है।”

चूहा बोला, “हमें अपने मित्र को छुडाना चाहिए। लेकिन कैसे?”

इस बार हिरण ने समस्या का हल सुझाया, “मित्रो, हमें एक चाल चलनी होगी। मैं लँगड़ाता हुआ शिकारी के आगे से निकलूंगा। मुझे लँगड़ा जान वह मुझे पकड़ने के लिए कछुए वाला थैला छोड़ मेरे पीछे दौड़ेगा। मैं उसे दूर ले जाकर चकमा दूंगा। इस बीच चूहा भाई थैले को कुतरकर कछुए को आजाद कर देगा। बस।”

योजना अच्छी थी। लँगड़ाकर चलते हिरण को देख शिकारी की बाँछे खिल उठीं। वह थैला पटककर हिरण के पीछे भागा। हिरण लँगड़ाने का नाटक कर घने वन की ओर गया और फिर चौकड़ी भरता ‘यह जा, वह जा’ हो गया। शिकारी दाँत पीसता रह गया। अब कछुए से ही काम चलाने का इरादा बनाकर लौटा तो उसे थैला खाली मिला। उसमें छेद था। शिकारी मुँह लटकाकर खाली हाथ लौट गया।

सीख : मित्रता सच्ची हो तो जीवन में मुसीबतों का आसानी से सामना किया जा सकता है।

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