Hindi Story, Essay on “Ranga Siyar”, “रँगा सियार” Complete Story for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10 Students.

रँगा सियार

Ranga Siyar

 

पुराने समय की बात है। एक सियार जंगल में एक पुराने पेड़ के नीचे खड़ा था। एकाएक पेड़ हवा के तेज झोंके से गिर पड़ा। सियार उसकी चपेट में आ गया और बुरी तरह घायल हो गया। वह किसी तरह घिसटताघिसटता अपनी माँद तक पहुँचा। कई दिन बाद वह माँद से बाहर आया। उसे भूख लग रही थी। शरीर कमजोर हो गया था। तभी उसे एक खरगोश नजर आया। उसे दबोचने के लिए वह झपटा। सियार कुछ दूर भागकर हाँफने लगा। उसके शरीर में जान ही कहाँ रह गई थी? फिर उसने एक बटेर का पीछा करने की कोशिश की। यहाँ भी वह असफल रहा। हिरण का पीछा करने की तो उसकी हिम्मत भी न हई। वह खड़ा सोचने लगा। शिकार वह कर नहीं पा रहा था। भूखों मरने की नौबत आ गई समझो। क्या किया जाए? वह इधरउधर घूमने लगा, पर कहीं कोई मरा जानवर नहीं मिला। घूमता-घूमता वह एक बस्ती में आ गया। उसने सोचा कि शायद कोई मुरगी या उसका बच्चा हाथ लग जाए। सो वह इधर-उधर गलियों में घूमने लगा।

तभी कुत्ते भौं-भौं करते उसके पीछे पड़ गए। सियार को जान बचाने के लिए भागना पड़ा। गलियों में घुसकर उनको छकाने की कोशिश करने लगा, पर कुत्ते तो कस्बे की गली-गली से परिचित थे। सियार के पीछे पड़े कुत्तों की टोली बढ़ती जा रही थी और सियार के कमजोर शरीर का बल समाप्त होता जा रहा था। सियार भागता हुआ रंगरेजों की बस्ती में आ पहुँचा। वहाँ उसे एक घर के सामने एक बड़ा ड्रम नजर आया। वह जान बचाने के लिए उसी ड्रम में कूद पड़ा। ड्रम में रंगरेज ने कपड़े रंगने के लिए रंग घोल रखा था।

कुत्तों का टोला भौंकता हुआ आगे चला गया। सियार साँस रोककर रंग में डूबा रहा। वह केवल साँस लेने के लिए अपनी थूथनी बाहर निकालता। जब उसे पूरा यकीन हो गया कि अब कोई खतरा नहीं है तो वह बाहर निकला। वह रंग में भीग चुका था। जंगल में पहुँचकर उसने देखा कि उसके शरीर का रंग नीला हो गया है। उस ड्रम में रंगरेज ने नीला रंग घोल रखा था। उसके नीले रंग को जो भी जंगली जीव देखता, वह भयभीत हो जाता। उनको खौफ से काँपते देखकर रँगे सियार के दुष्ट दिमाग में एक योजना आई।

रँगे सियार ने डरकर भागते जीवों को आवाज दी, “भाइयो, भागो मत मेरी बात सुनो।”

उसकी बात सुनकर सभी भागते जानवर ठिठके।

उनके ठिठकने का रँगे सियार ने फायदा उठाया और बोला, “देखो, देखो मेरा रंग। ऐसा रंग किसी जानवर का धरती पर है? नहीं न। मतलब समझो। भगवान ने मझे यह खास रंग देकर तुम्हारे पास भेजा है। तुम सब जानवरों को बुला लाओ तो मैं भगवान् का संदेश सुनाऊँ।”

उसकी बातों का सब पर गहरा असर पड़ा। वे जंगल के दूसरे जानवरों को बुला लाए। जब सब आ गए तो रँगा सियार एक ऊँचे पत्थर पर चढ़कर बोला, “वन्य प्राणियो, प्रजापति ब्रह्मा ने मुझे खुद अपने हाथों से इस अलौकिक रंग का प्राणी बनाकर कहा कि संसार में जानवरों का कोई शासक नहीं है, तुम्हें जाकर जानवरों का राजा बनकर उनका कल्याण करना है। तुम्हारा नाम सम्राट् ककुदुम होगा। तीनों लोकों के वन्य जीव तुम्हारी प्रजा होंगे। अब तुम लोग अनाथ नहीं रहे। मेरी छत्रच्छाया में निर्भय होकर रहो।”
सभी जानवर वैसे ही सियार के अजीब रंग से चकराए हुए थे। उसकी बातों ने तो जादू का काम किया। शेर, बाघ व चीते की भी ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की साँस नीचे रह गई। उसकी बात काटने की किसी में हिम्मत नहीं हुई। देखते-ही-देखते सारे जानवर उसके चरणों में लोटने लगे और एक स्वर में बोले, “हे ब्रह्मा के दूत, प्राणियों में श्रेष्ठ ककुदुम, हम आपको अपना सम्राट् स्वीकार करते हैं। भगवान् की इच्छा का पालन करके हमें बड़ी प्रसन्नता होगी।”

एक बूढ़े हाथी ने कहा, “हे सम्राट, अब हमें बताइए कि हमारा क्या कर्तव्य है?”

रँगा सियार सम्राट की तरह पंजा उठाकर बोला, “तुम्हें अपने सम्राट् की खब सेवा और आदर करना चाहिए। उसे कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए। हमारे खाने-पीने का शाही प्रबंध होना चाहिए।”

शेर ने सिर झुकाकर कहा, “महाराज, ऐसा ही होगा। आपकी सेवा करके हमारा जीवन धन्य हो जाएगा।”

बस, सम्राट् ककुदुम बने रँगे सियार के शाही ठाठ हो गए। वह राजसी शान से रहने लगा।

कई लोमड़ियाँ उसकी सेवा में लगी रहतीं, भालू पंखा झुलाता। सियार जिस जीव का मांस खाने की इच्छा जाहिर करता, उसकी बलि दी जाती।।

जब सियार घूमने निकलता तो हाथी आगे-आगे सँड उठाकर बिगुल की तरह चिंघाड़ता चलता। दो शेर उसके दोनों ओर बॉडी गार्ड की तरह होते।

रोज ककुदुम का दरबार भी लगता। रँगे सियार ने एक चालाकी यह कर दी थी कि सम्राट बनते ही सियारों को शाही आदेश जारी कर उस जंगल से भगा दिया था। उसे अपनी जाति के जीवों द्वारा पहचान लिये जाने का खतरा था।

एक दिन सम्राट् ककुदुम खूब खा-पीकर अपनी शाही माँद में आराम कर रहा था कि उजाला देखकर उठा। बाहर आया, चाँदनी रात खिली थी। पास के जंगल में सियारों की टोलियाँ ‘हू-हू’ कर रही थी। उस आवाज को सुनते ही ककुदुम अपना आपा खो बैठा। उसके जन्मजात स्वभाव ने जोर मारा और वह भी मुँह उठाकर सियारों के स्वर में स्वर मिलाकर ‘हू-हू’ करने लगा।

शेर और बाघ ने उसे ‘हू-हू’ करते देख लिया। वे चौंके, बाघ बोला, “अरे, यह तो सियार है। हमें धोखा देकर सम्राट् बना रहा। मारो नीच को।”

शेर और बाघ उसकी ओर लपके और देखते-ही-देखते उसकी टिक्का-बोटी कर डाली।

सीख : झूठ अस्थायी होता है।

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