Hindi Story, Essay on “Jati ka Prabhav”, “जाति का प्रभाव” Hindi Moral Story, Nibandh for Class 7, 8, 9, 10 and 12 students

जाति का प्रभाव

Jati ka Prabhav

किसी वन में एक सिंह दंपति का निवास था । उनके दो पुत्र थे। पिता रोज ही हिरन का शिकार कर परिवार के लिए भोजन जुटाता था । एक दिन सिंह को शिकार में कुछ न मिला । अंत में सूर्यास्त के समय उसे सियार का एक बच्चा मिला । सिंह को उस शिशु पर दया आ गई । सिंह उसे अपने साथ घर ले आया । उसने पत्नी से कहा, “यह हमारी ही जाति का है और बालक भी है । इसे मारना उचित नहीं है । आज से यह हमारे तीसरे पुत्र की तरह रहेगा।” सिंहनी मान गई । उसने उसे अपना दूध पिलाकर पाला।

तीनों बच्चे आपस में घुल-मिल गए । एक दिन खेलते-खेलते वे अपनी गुफा से दूर चले गए । वहाँ उन्होंने एक हाथी को देखा । हाथी को देखते ही दोनों सिंह-पत्र उसकी ओर बढ़े । उसी समय सियार का पुत्र बोला, “यह हाथी हमारे कुल का शत्रु है । उसके सामने मत जाओ।” यह कहता हुआ वह घर की ओर भागने लगा। वे दोनों अपने एक भाई को भागता हुआ देख उत्साहरहित हो गए । कहा भी गया है कि युद्ध में एक सैनिक भी कायरता दिखाता है तो पूरी सेना का मनोबल टूट जाता है । अतः दोनों। सिंह-पुत्र घर लौट गए।

घर पहुँचकर दोनों ने पिता के सामने अपने तीसरे भाई की कायरता का खूब मजाक उड़ाया । पूरी घटना सुनकर सिंह ने सियार-पुत्र को एकांत में बुलाकर कहा, “बेटा, तु सियार-पुत्र है । मैंने कृपा करके तेरा लालन-पालन किया है । मेरी पत्नी ने तुझे अपना दूध पिलाकर बड़ा किया है । लेकिन अब तू बड़ा हो चला है । इससे पहले कि तेरा भेद मेरे पुत्रों के सामने खुले, तू यहाँ से भाग जा और अपनी जातिवालों के साथ रह । अन्यथा मेरे दोनों पुत्र तुझे मार डालेंगे।”

सियार-पुत्र ने अपने पालक पिता की बातें ध्यान से सुनीं । फिर उसी समय वह वहाँ से भाग गया।

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