जाति का प्रभाव
Jati ka Prabhav
किसी वन में एक सिंह दंपति का निवास था । उनके दो पुत्र थे। पिता रोज ही हिरन का शिकार कर परिवार के लिए भोजन जुटाता था । एक दिन सिंह को शिकार में कुछ न मिला । अंत में सूर्यास्त के समय उसे सियार का एक बच्चा मिला । सिंह को उस शिशु पर दया आ गई । सिंह उसे अपने साथ घर ले आया । उसने पत्नी से कहा, “यह हमारी ही जाति का है और बालक भी है । इसे मारना उचित नहीं है । आज से यह हमारे तीसरे पुत्र की तरह रहेगा।” सिंहनी मान गई । उसने उसे अपना दूध पिलाकर पाला।
तीनों बच्चे आपस में घुल-मिल गए । एक दिन खेलते-खेलते वे अपनी गुफा से दूर चले गए । वहाँ उन्होंने एक हाथी को देखा । हाथी को देखते ही दोनों सिंह-पत्र उसकी ओर बढ़े । उसी समय सियार का पुत्र बोला, “यह हाथी हमारे कुल का शत्रु है । उसके सामने मत जाओ।” यह कहता हुआ वह घर की ओर भागने लगा। वे दोनों अपने एक भाई को भागता हुआ देख उत्साहरहित हो गए । कहा भी गया है कि युद्ध में एक सैनिक भी कायरता दिखाता है तो पूरी सेना का मनोबल टूट जाता है । अतः दोनों। सिंह-पुत्र घर लौट गए।
घर पहुँचकर दोनों ने पिता के सामने अपने तीसरे भाई की कायरता का खूब मजाक उड़ाया । पूरी घटना सुनकर सिंह ने सियार-पुत्र को एकांत में बुलाकर कहा, “बेटा, तु सियार-पुत्र है । मैंने कृपा करके तेरा लालन-पालन किया है । मेरी पत्नी ने तुझे अपना दूध पिलाकर बड़ा किया है । लेकिन अब तू बड़ा हो चला है । इससे पहले कि तेरा भेद मेरे पुत्रों के सामने खुले, तू यहाँ से भाग जा और अपनी जातिवालों के साथ रह । अन्यथा मेरे दोनों पुत्र तुझे मार डालेंगे।”
सियार-पुत्र ने अपने पालक पिता की बातें ध्यान से सुनीं । फिर उसी समय वह वहाँ से भाग गया।