Hindi Story, Essay on “Jal me rehkar Magar se bair”, “जल में रहकर मगर से बैर” Hindi Moral Story, Nibandh for Class 7, 8, 9, 10 and 12 students

जल में रहकर मगर से बैर

Jal me rehkar Magar se bair

एक दिन स्कूल से घर आकर अमर ने खाना भी नहीं खाया और गुमसुम रोकर बैठ गया। दादीजी ने आवाज लगाई-“अमर बेटा, खाना नहीं खाएगा क्या?” लेकिन अमर ने कोई जवाब नहीं दिया। उधर से दादाजी ने पूछा-“अरे, क्या हुआ?” दादीजी ने बताया कि अमर स्कूल से आकर बिना खाना खाए उदास बैठा है। दादाजी अमर के पास गए। वह डरा हुआ लग रहा था। दादाजी ने पूछा-“बेटा अमर, क्या बात है? खाना क्यों नहीं खा रहे हो?”

बहुत पूछने पर अमर फूट-फूटकर रो पड़ा और दादाजी से लिपटकर बोला-“दादाजी, आज हमारे गणित के मास्टर जी ने मुझे बहुत डॉटा और बेंत से मारा।” अच्छा!” दादाजी चौंककर बोले और अमर को छाती से लगा लिया। इतने में दादीजी और अमर की मम्मी भी आ गईं। जब उन्हें इस बात का पता चला तो उन्हें बहुत गुस्सा आया। दादीजी बोलीं-“हमें उस जालिम टीचर की शिकायत करनी चाहिए। उसे तो नौकरी से निकाल देना चाहिए।”

“नहीं-नहीं, यह ठीक नहीं होगा। ऐसा करने से तो अमर को और नुकसान हो जाएगा। फिर कोई भी टीचर अमर की पढ़ाई-लिखाई की। तरफ ध्यान नहीं देगा। जल में रहकर मगर से बैर करना ठीक नहीं। जिन लोगों के बीच रहना हो, उनसे दुश्मनी मोल लेना ठीक नहीं ।” दादाजी ने समझाया।

फिर दादाजी ने अमर को प्यार से समझा-बुझाकर खाना खिलाया। वहीं लता भी आ गई। “दादाजी, जल और मगर की कहानी क्या है?” अमर ने पूछा। लता ने चौंककर पूछा-“यह कौन-सी कहानी है, दादाजी?” “अच्छा बेटा, सुनाता हूँ।” दादाजी ने कहना शुरू किया- एक तालाब में रंग-बिरंगी सुंदर, चंचल और चमकीली मछलियाँ रहती थीं। मछलियों के छोटे-छोटे बच्चे उनके पीछे-पीछे तैरते रहते थे। उसी तालाब में एक भारी-भरकम मगरमच्छ भी रहता था। वह मछलियों के छोटे बच्चों को खा जाता था। मौका मिलने पर वह बड़ी मछलियों को भी नहीं छोड़ता था। उन मासूम और लाचार मछलियों को जालिम मगरमच्छ पर बहत गुस्सा आता था। लेकिन वे उससे डरती थीं।

एक दिन सभी मछलियों ने इकड़े होकर इस गंभीर समस्या पर सोच-विचार किया कि इस मुसीबत से कैसे छुटकारा पाया जाए? ज्यादातर मछलियों का कहना था कि मगरमच्छ का डटकर मुकाबला किया जाए। कुछ मछलियाँ इतनी डरी हुई थीं कि बोल ही नहीं पा रही थीं। तभी एक बुजुर्ग मछली ने कहा-‘नहीं, ऐसा करना ठीक नहीं होगा।

इससे वह और खूखार हो जाएगा। हमारे परिवारों को समाप्त कर देगा। हम उसका कुछ उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएँगी। हम इस तालाब को छोड़कर और जा भी नहीं सकतीं। यही हमारा घर है। इसलिए, जल में रहकर के वैर करना ठीक नहीं।’ सभी मछलियों को यह बात समझ में आ गई, हाँ, उस दिन के बाद से वे और ज्यादा चौकन्नी हो गई और शियारी से रहने लगीं। तालाब में पानी की जरा-सी हलचल होने पर वे भागकर एक तरफ छुप जाती थीं।” दादाजी ने कहानी पूरी की।

“हाँ, दादाजी! यह बात ठीक है। हम जल में रहकर मगर से बैर तो नहीं कर सकते, लेकिन होशियार रहकर उससे अपना बचाव तो कर ही सकते हैं।” लता ने कहा।

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