धूर्तता का फल
Dhurtata Ka Phal
किसी नगर में जीर्णधन नामक एक व्यापारी रहता था । नगर में अकाल पड़ने से उसका धंधा नहीं चल रहा था । वह कंगाल हो चला था । उसके पास लोहे की एक बड़ी सी तराजू थी, जिसे उसने अपने बुरे दिनों के लिए सँभालकर रखा था। उसने अपने उस तराजू को एक विश्वासी मित्र के पास रख दिया। फिर वह धन कमाने दूसरे देश में चला गया।
कुछ महीनों के बाद धन कमाकर जीर्णधन अपने नगर लौट आया। उसे तराजू की याद आई तो वह अपने मित्र के पास गया और उससे तराज माँगी । मित्र ने कहा, “मुझे बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि तुम्हारी तराजू अब नहीं बची है । उसे चूहों ने खाकर खत्म कर दिया है ।” मित्र की धूर्तता समझकर जीर्णधन ने कहा, “कोई बात नहीं, यदि चूहे तराजू खा जाए तो इसमें तुम्हारा क्या दोष?”
दूसरे दिन जीर्णधन मित्र के घर गया । उसने कहा, “मैं नदी में स्नान करने जा रहा हूँ। तुम अपने पुत्र को मेरे साथ भेज दो।” मित्र ने खुशी-खुशी अनुमति प्रदान कर दी।
जीर्णधन अपने मित्र के पुत्र को साथ लेकर नदी में नहाने चला । मौका देखकर उसने बालक को एक गुफा में बिठा दिया और गुफा के द्वार को एक पत्थर से बन्द कर दिया। फिर वह स्नान करके अपने घर लौट गया।
बहुत विलंब होने पर बालक के पिता को चिन्ता हुई। वह उसके बारे में पूछने जीर्णधन के पास गया । जीर्णधन ने कहा, “तुम्हारे पुत्र को एक बाज उड़ाकर ले गया है ।” यह सुनकर पिता को बहुत क्रोध हुआ। उसने कहा, “अरे दुष्ट ! कहीं बाज भी बालक को उडाकर ले जा सकते हैं ?” जीर्णधन ने कहा, “यदि बालक को बाज नहीं उड़ाकर ले जा सकता है तो उस भारी तराजू को चूहे भी तो नहीं खा सकते हैं।”
यह सुनकर पिता को अपनी भूल का स्मरण हुआ । उसने मित्र की तराजू लौटा दी । तब जीर्णधन ने गुफा से निकालकर उसे उसका पुत्र सौंप दिया।