Hindi Story, Essay on “Dhobi ka Kutta na Ghar ka na Ghat ka ”, “धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का” Hindi Moral Story, Nibandh for Class 7, 8, 9, 10 and 12 students

धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का

Dhobi ka Kutta na Ghar ka na Ghat ka 

“अजी, सुनते हो?” दादीजी ने दादाजी के पास जाकर कहा-“गाँव से चिट्ठी आई है। वो रोशनलाल का लड़का मुरारी है न! वो ही आवारा, आलसी और निकम्मा! एक दिन उसके बाप ने किसी बात पर उसे डॉट दिया। बस, फिर क्या था! वो गुस्से में आकर यह कहकर अपने घर से भाग गया कि कुछ बन जाएगा तभी लौटकर आएगा।” “अरे, फिर क्या हुआ भागवान?” दादाजी ने पूछा।

अजी, होना क्या था! वह कुछ पढ़ा-लिखा तो है नहीं, सो उसे नौकरी कौन देगा? सुना है, इधर-उधर धक्के खाता फिर रहा है।” दादीजी ने कहा।

यानी धोबी का कुत्ता, न घर का, न घाट का!” दादाजी बोले। वहीं अमर और लता भी बैठे थे। अमर पूछ बैठा-“दादाजी, इसका क्या मतलब है?”  दादाजी ने समझाया-“बेटा, जब कोई एक काम छोड़ दे और उसका दूसरा काम न बने तब ऐसा ही कहा जाता है। इसका मतलब है—न इधर का रहना, न उधर का रहना। यानी कहीं का न रहना।” । “दादाजी, इस कहावत के पीछे क्या कहानी है? सुनाओ न!” लता ने कहा।

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“अच्छा तो सुनो!” दादाजी ने कहना शुरू किया-“एक गाँव में एक धोबी रहता था। धोबी और उसकी पत्नी अपने-अपने सिर पर कपड़ों की गठरी लेकर नदी किनारे कपड़े धोने जाते थे। कपडे धोकर जमीन पर सुखाने के लिए बिछा देते थे। तेज धूप में कपड़े जल्दी सूख जाते थे। फिर उन्हें अपने घर ले जाकर इस्त्री करते थे। इस तरह उनकी गुजर-बसर हो रही थी। एक दिन जब धोबी और धोबिन नदी किनारे कपड़े धोने गए। हुए थे, तब उनके घर में चोरी हो गई। चोर रुपया-पैसा और जेवर ले गए। बेचारे गरीब धोबी की मेहनत की कमाई चोरों ने लूट ली।

धोबी ने अपने घर की रखवाली के लिए एक मोटा और तंदरुस्त कुत्ता रख लिया। वह कुत्ते को अच्छा भोजन खिलाता। कुत्ता बड़ी वफादारी के साथ धोबी के घर की रखवाली करने लगा। जब कभी धोबी अकेला नदी पर कपड़े धोने जाता, तो वह कुत्ते को भी अपने साथ ले। जाता था। कुत्ता धूप में सूख रहे कपड़ों की रखवाली करता था। जब धोबी सूखे हुए कपड़े लेकर घर की तरफ जाता था, तब कुत्ता भी दम हिलाता हुआ उसके साथ-साथ चलता था। वह अजनबी लोगों को देखकर भौंकने लगता था। धोबी और धोबिन उसे बहुत प्यार करने लगे। थे, क्योंकि वह उनके घर की रखवाली भी करता था और घाट पर कपड़ों की देखभाल भी करता था।

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धोबी ने उसका नाम ‘मोती’ रख दिया।

एक दिन गाँव में भालू का नाच दिखाने वाला मदारी आया । मदारी ने डुगडुगी बजाई। थोड़ी देर में भीड़ जमा हो गई। भालू अपने करतब और नाच दिखाने लगा। मोती भी भीड़ में खड़ा हो गया और भालू को देखकर भौंकने लगा। मदारी ने मोती के आगे कुछ बिस्कुट फेंक दिए। जब भालू का तमाशा खत्म हो गया, तब मदारी अपना सामान समेटकर चल पड़ा। मोती भी उसके पीछे-पीछे चल दिया। शाम को जब धोबी और उसकी पत्नी घर आए तो वहाँ मोती नहीं था। उन्होंने सोचा, कहीं टहलने निकल गया होगा। लेकिन रात होने पर भी मोती नहीं आया। दो-तीन दिन इंतजार करने के बाद धोबी ने दूसरा ताकतवर कुत्ता रख लिया।

“दिन बीतते गए। एक दिन जब धोबी अपने घर में कपड़ों को इस्त्री कर रहा था, उसकी नजर बाहर खड़े एक पतले-दुबले कुत्ते पर पड़ी। धोबी ने ध्यान से देखा। अरे, यह तो मोती था ! उसके शरीर पर जगह-जगह से बाल उड़ गए थे। एक टाँग से लँगड़ा रहा था। उसे देखकर धोबी का नया कुत्ता जोर-जोर से भौंकने लगा। धोबिन ने बाहर निकलकर देखा। मोती का बुरा हाल देखकर वह धोबी से बोली-‘अजी, मोती को क्या हो गया?

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अब न तो वह घर की रखवाली कर सकता है।

और न ही घाट पर कपड़ों की देखभाल कर सकता है। इसे घर में भी नहीं रख सकते, क्योंकि इसके शरीर पर खुजली की बीमारी हो गई है। इस पर धोबी ने कहा-अरे, देखती क्या हो, भगाओ इसे ।’ धोबिन ने । एक

पत्थर फेंककर मोती को भगा दिया। इस तरह धोबी का कुत्ता न घर का रहा, न घाट का।” दादाजी की कहानी सुनकर अमर और लता प्रसन्न हो गए।

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