देशभक्ति
Desh Bhakti
एक बार रूस और जापान में युद्ध छिड़ गया । एक किले पर रूसी सेना का अधिकार था । किले के चारों ओर गहरी खाई थी । खाई में पानी भरा हुआ था । खाई के ऊपर का पुल रूसी सेनाओं ने तोड़ दिया था । खाई को पार किए बिना किले पर अधिकार नहीं हो सकता था । अत: जरूरी था कि खाई पर तुरंत एक पुल बना दिया जाय । जापानी सेनापति के पास खाई पर पुल बनाने का सामान नहीं था । परन्तु युद्ध में उस किले का बहुत महत्त्व था । उस किले को जीत कर जापान रूस को पराजित कर सकता था।
सेनापति ने कुछ सोचकर कहा, “मेरे बहादुर सैनिको ! इस खाई को मनुष्यों के शरीर से भर देने के अतिरिक्त हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है । यदि हम ऐसा नहीं करते हैं तो हम युद्ध नहीं जीत सकते । अपनी मातृ-भूमि के लिए जो प्रसन्नता से अपना बलिदान करना चाहे वह दो कदम आगे बढ़े।”
पूरी-की-पूरी सेना दो कदम आगे बढ़ गई । एक भी सैनिक ऐसा नहीं था जो देश की खातिर प्राण देने में पीछे रहना चाहता था । सेनापति ने सबसे नम्बर बोलने को कहा। उसके बाद उसने आदेश दिया कि हर पाँचवाँ सैनिक कपड़े उतार दे और हथियार रखकर खाई में कूद पडे । सेनापति को अपने सैनिकों पर पूरा विश्वास था । वह जानता था कि सैनिक उसकी बात पर तुरंत अमल करेंगे । सैनिकों ने आज्ञापालन में तनिक भी देर नहीं लगाई।
एक के ऊपर एक जापानी सैनिक उस खाई में कूदने लगे । थोड़ी ही देर में खाई उनके शरीरों से भर गई । लाशों के ढेर ने पुल का काम कर दिया। अपने देशभक्त वीर सैनिकों की लाशों के पुल पर से जापानी सेना और उनकी भारी तोपों ने पुल पार कर उस किले पर अधिकार कर लिया । ऐसी थी जापानी सैनिकों की देशभक्ति ।