Hindi Story, Essay on “Bund Bund karke Ghada Bharta hai”, “बूंद-बूंद करके घड़ा भरता है” Hindi Moral Story, Nibandh for Class 7, 8, 9, 10 and 12 students

बूंद-बूंद करके घड़ा भरता है

Bund Bund karke Ghada Bharta hai

लता दौड़ती हुई दादाजी के पास आई और बोली-“दादाजी, आपको पता है, मेरी गुल्लक में कितने पैसे जमा हो गए हैं?” । “कितने रुपये जमा हो गए हैं, बेटे?” दादाजी ने पूछा। “पूरे पचास रुपये हो गए हैं। दादाजी, मैं इसमें रोज एक रुपया डालती हूँ।” लता बोली। तभी वहाँ अमर भी आ गया।

“हाँ, बेटे! बूंद-बूंद करके ही घड़ा भरता है। यानी थोड़ी-थोड़ी बचत करने पर ही कुछ धन इकट्ठा हो पाता है। इसके लिए हमें सब्र से काम लेना चाहिए।” दादाजी ने समझाया। इसके पीछे क्या कहानी है, दादाजी?” अमर ने पूछा। बेटा, इस कहावत के पीछे एक बड़ी दिलचस्प कहानी है। सुनोगे ?” दादाजी बोले। । “हाँ, दादाजी!” अमर और लता एक साथ बोले।

दादाजी ने कहना शुरू किया-“तो सुनो! एक राजा था। वह कभी-कभी अपने दरबारियों की बुद्धि और सूझ-बूझ की परीक्षा लेता था। वह बारी-बारी से दरबारियों को कोई-न-कोई मुश्किल काम सौंप देता था। यदि कोई उस काम को पूरा नहीं कर पाता, तो राजा उस दरबारी को जेल में डाल देता था। और अगर कोई उस कठिन काम को कर देता, तो राजा खुश होकर उसे खूब इनाम भी देता था। इसलिए दरबारियों के मन में इनाम के लालच के साथ-साथ सजा मिलने का डर भी रहता था।” कहते-कहते दादाजी कुछ देर तक चुप रहे।

फिर दादाजी बोले-“ एक दिन चंदन सिंह नामक दरबारी की बारी आई। चंदन सिंह बहुत साहसी, शांत और बुद्धिमान था। उसने सिर झुकाकर आदरपूर्वक राजा से कहा-“आज्ञा कीजिए, महाराज! मुझे क्या करना है?’ राजा ने उससे कहा-‘चंदन सिंह, आज तुम्हें एक काम करना है। तुम जंगल में जाओगे और वहाँ से एक घड़ा पानी भरकर लाओगे। हाँ, एक शर्त है। तुम जंगल में किसी नदी, नहर, तालाब या कुएँ से पानी नहीं भरोगे। तुम्हारे साथ चार सिपाही रहेंगे। इस काम के लिए तुम्हें रात-भर का समय दिया जाता है। सूरज निकलने से पहले तुम्हें राजमहल में पहुँचना होगा। चंदन सिंह ने सिर झुकाकर कहा- ‘जो आज्ञा, महाराज!’

चंदन सिंह को एक घड़ा दिया गया। शाम होते ही वह घड़ा लेकर चार सिपाहियों के साथ घोड़े पर सवार होकर जंगल की तरफ निकल पड़ा। जंगल बिलकुल सुनसान था। दूर-दूर तक वहाँ नदी, नहर, तालाब या कुएँ का नामोनिशान तक नहीं था। चंदन सिंह ने चारों तरफ नजर दौड़ाई। अँधेरा बढ़ता जा रहा था। थोड़ी देर में रात की काली चादर ने सब कुछ ढक दिया। चाँद की हलकी-हलकी रोशनी में पेड़-पौधे दिखाई दे रहे थे। दूर-दूर तक पानी की बूंद नहीं थी।

चलते-चलते अचानक चंदन सिंह को दूर एक पहाड़ी दिखाई दी। उसने अपना घोड़ा उस तरफ तेजी से दौड़ाया। वह पहाड़ी के पास जाकर रुक गया। पहाड़ी के नीचे सूखे पत्ते बिखरे पड़े थे। रात के सन्नाटे में ‘टप-टप की आवाज सुनाई दी। चंदन सिंह घोड़े से नीचे उतरा। धीरे-धीरे वह उस आवाज की तरफ बढ़ा। उसने देखा, पहाड़ी के ऊपर से पानी की एक-एक बूंद सूखे पत्तों के ऊपर गिर रही थी। यह देखकर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने उस जगह थोड़ी-सी जमीन खोदकर गड्ढा बनाया और उसमें घड़े को रख दिया। अब पानी की बूंदें घड़े में गिरने लगीं। चंदन सिंह और चारों सिपाही वहाँ एक पेड़ के नीचे बैठ गए। रात-भर में एक-एक बूंद पानी गिरने से घड़ा भर गया। सुबह होने ही वाली थी। चंदन सिंह पानी से भरे घड़े को लेकर राजा के पास पहुँचा और बोला-‘लीजिए महाराज, मैंने आपकी आज्ञा का पालन कर दिया है। “ राजा ने अपने सिपाहियों से सारी सच्चाई जान ली और बोला-‘शाबाश चंदन सिंह, तुमने वाकई कमाल कर दिया। तब चंदन सिंह बोला-‘महाराज, बूंद-बूंद करके घड़ा भरता है। राजा ने अपने चतुर दरबारी को ढेर सारा इनाम दिया।” दादाजी ने कहानी पूरी करते हुए कहा।

अमर बोला-“दादाजी, अब मैं भी थोड़े-थोड़े पैसे बचाकर जमा करूंगा, क्योंकि बूंद-बूंद करके घड़ा भरता है।”

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