बोलती गुफा
Bolti Gufa
कहानी संख्या:- 01
किसी वन में एक सिंह रहता था । बूढ़ा होने के कारण वह शिकार कर पाने में असमर्थ था । वह चार दिन तक भूखा रहा । एक दिन वन में घूमते हुए उसने एक गुफा देखी । वह गुफा में घुसकर बैठ गया । उसने सोचा-यदि गुफा में रहने वाला पशु अंदर आया तो मैं उसे अपना भोजन बना लूँगा।
उस गुफा में एक गीदड़ रहता था । संध्याकाल में जब वह अपनी गुफा की ओर लौट रहा था तो सिंह के पैरों के निशान देखकर उसे कुछ आशंका हुई । उसने ध्यान से देखा तो पाया कि गुफा में सिंह के घुसने के निशान हैं परन्तु गुफा से निकलने के निशान नहीं हैं । वह समझ गया कि गुफा में एक सिंह छिपकर बैठा है । फिर भी अपने मन की तसल्ली के लिए उसने जोर से कहा, “गुफा ! क्या मैं अन्दर आ जाऊँ ?” कुछ देर ठहरकर उसने फिर कहा, “अरी गुफा ! प्रतिदिन तो तुम मुझे आवाज़ देती हो । आज तुम्हें क्या हो गया है जो बोलती नहीं हो। मेरे प्रश्न का तुरंत उत्तर दो ।” जब गुफा से कोई आवाज़ नहीं आई तो गीदड़ ने कहा, “ठीक है, मैं दूसरी गुफा में चला जाता
सिंह को गीदड़ की बात का विश्वास हो गया । उसने सोचा कि रोज गुफा उत्तर देती है, आज मेरे भय से मौन है । इसलिए गुफा के बदले मुझे ही गीदड़ को जवाब देना चाहिए । यह सोचकर उसने कहा, “गुफा में कोई नहीं है. तुम निर्भय होकर अन्दर चले आओ।” ।
सिंह की आवाज़ सुनकर गीदड़ को अब कोई शंका नहीं रही । उसने वहाँ से खिसकना ही उचित समझा । जाते-जाते उसने सिंह से कहा, “हे । सिंह ! अब तुम रात भर गुफा में ही आराम करो । मैं यहाँ से जा रहा हूँ।” इसलिए कहा गया है कि संकट आने से पहले ही उसका सही उपाय करने वाला सुखी रहता है।
कहानी संख्या:- 02
बोलती गुफा
एक समय की बात है, किसी जंगल में एक शेर के पैर में काँटा चुभ गया। पंजे में जख्म हो गया और शेर के लिए दौड़ना मुश्किल हो गया। वह लँगड़ाकर कठिनाई से चलता। शेर के लिए तो शिकार न करने के लिए दौड़ना जरूरी होता है, इसलिए वह कई दिन कोई शिकार न कर पाया और भूखों मरने लगा। कहते हैं कि शेर मरा हुआ जानवर नहीं खाता, परंतु मजबूरी में सबकुछ करना पड़ता है। लँगड़ा शेर किसी घायल अथवा मरे हुए जानवर की तलाश में जंगल में भटकने लगा। यहाँ भी किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया। कहीं कुछ हाथ नहीं लगा।
धीरे-धीरे पैर घसीटता हुआ वह एक गुफा के पास आ पहुँचा। गुफा गहरी और सँकरी थी, ठीक वैसी जैसे जंगली जानवरों के माँद के रूप में काम आती है। उसने उसके अंदर झाँका। माँद खाली थी, पर चारों ओर उसे इस बात के प्रमाण नजर आए कि उसमें किसी जानवर का बसेरा है। उस समय वह जानवर शायद भोजन की तलाश में बाहर गया था। शेर चुपचाप दुबककर बैठ गया, ताकि उसमें रहनेवाला जानवर लौट आए तो वह उसे दबोच ले।
सचमुच उस गुफा में एक सियार रहता था, जो दिन को बाहर घूमता रहता और रात को लौट आता था। उस दिन भी सूरज डूबने के बाद वह लौट आया। सियार काफी चालाक था। हर समय चौकन्ना रहता था। उसने अपनी गुफा के बाहर किसी बड़े जानवर के पैरों के निशान देखे तो चौका। उसे शक हुआ कि कोई शिकारी जीव माँद में उसके शिकार की आस में घात लगाए न बैठा हो। अपने शक की पुष्टि के लिए सोच-विचार कर उसने एक चाल चली। गुफा के मुहाने से दूर जाकर उसने आवाज दी, “गुफा! ओ गुफा।” गुफा में चुप्पी छाई रही, उसने फिर पुकारा, “अरी ओ गुफा, तू बोलती क्यों नहीं ?”
भीतर शेर दम साधे बैठा था। भूख के मारे पेट कुलबुला रहा था। उसे यही इंतजार था कि कब सियार अंदर आए और वह उसे पेट में पहुँचाए। इसलिए वह उतावला भी हो रहा था। सियार एक बार फिर जोर से बोला, ” ओ गुफा ! रोज तू मेरी पुकार के जवाब में मुझे अंदर बुलाती है। आज चुप क्यों है ? मैंने पहले ही कह रखा है कि जिस दिन तू मुझे नहीं बुलाएगी, उस दिन मैं किसी दूसरी गुफा में चला जाऊँगा। अच्छा तो मैं चला।”
यह सुनकर शेर हड़बड़ा गया। उसने सोचा गुफा सचमुच सियार को अंदर बुलाती होगी। यह सोचकर कि कहीं सियार सचमुच न चला जाए, उसने अपनी आवाज बदलकर कहा, “सियार राजा, मत जाओ, अंदर आओ न। मैं कब से तुम्हारी राह देख रही थी।”
सियार शेर की आवाज पहचान गया और उसकी मूर्खता पर हँसता हुआ, वहाँ से चला गया और फिर लौटकर नहीं आया। मूर्ख शेर उसी गुफा में भूखा-प्यासा मर गया।
सीख : सावधान व्यक्ति जीवन में कभी मात नहीं खाता।