आँख के अंधे नाम नयनसुख
Aankho ke andhe naam Nayansukh
अमर और लता दादाजी के पास बैठे थे। दादाजी उन्हें मजेदार बातें सुना रहे थे। इसी सिलसिले में दादाजी ने कहा-“कुछ लोगों के नाम बड़े विचित्र होते हैं। उनके गुणों के ठीक उलट! जैसे सेठ लोगों के नाम भिखारी राम, भुक्खन लाल या भीखूमल होंगे। गरीब लोगों के नाम अमीरचंद, धन्ना सिंह या करोड़ीमल होंगे। इसी तरह ताकतवर और मोटे
लोगों के नाम दुर्बल सिंह और सूखाचंद होंगे जबकि कमजोर और पतले- दुबले लोगों के नाम भीमसेन और मोटेलाल होंगे। ऐसे ही किसी अनपद का नाम विद्यासागर हो सकता है और पढ़े-लिखे ज्ञानी व्यक्ति का नाम बुराम हो सकता है।”
“हाँ, दादाजी, मेरी क्लास में एक लड़का है। वह बहुत सीधा-सादा है। मेरा अच्छा दोस्त है। उसका नाम है-कुर सिंह।” अमर ने कहा।
“ऐसे ही किसी अंधे का नाम हो सकता है नयनसुख। अरे भई, ये भी कैसा नाम है आँख के अंधे, नाम नयनसुख!” दादाजी बोले | दादाजी, क्या यह भी कोई कहावत है?” लता ने पूछा।
हाँ, बेटा! यह एक कहावत ही है। जब किसी का नाम उसके गुणों के उलट होता है, तब ऐसे ही कहते हैं।” दादाजी ने उत्तर दिया। फिर तो हमें इसकी कहानी सुनाइए दादाजी!” अमर ने फरमाइश की।
“एक राजा था।” दादाजी ने कहानी शुरू की-“वह कलाकारों का बहुत मान-सम्मान करता था। उसके दरबार में गायक, नर्तक, बाजीगर, विदूषक, चित्रकार, शिल्पकार आदि सभी अपना-अपना हुनर दिखाते थे और ढेर सारा इनाम पाते थे। इस कारण राजा की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई।
एक दिन पाँच कलाकारों की एक टोली राजा के दरबार में आई। पहरेदार ने राजा से कहा-‘महाराज, ये पाँच कलाकारों की एक विचित्र टोली है। ये कलाकार अपना करतब दिखाना चाहते हैं।’ “यह सुनकर राजा ने पूछा-‘यह टोली विचित्र क्यों है? इन कलाकारों में ऐसी क्या खास बात है?’ पहरेदार बोला-‘महाराज, इन कलाकारों का नेता अंधा है। वह सुंदर चित्र बना सकता है। दूसरा आदमी बहरा है। वह सुरीले गीत गाता है। तीसरा गुंगा है, वह हारमोनियम बजाता है। चौथे कलाकार का एक हाथ नहीं है, वह एक हाथ से तबला बजा सकता है। पाँचवाँ कलाकार एक लँगड़ी औरत है। वह शानदार नृत्य कर सकती है। पहरेदार की बातें सुनकर राजा और दरबारी बहुत हैरान हुए। ” कहते-कहते दादाजी थोड़ी देर चुप रहे। फिर बोले राजा ने उन कलाकारों से अपनी-अपनी कला का प्रदर्शन करने को कहा। सबसे पहले लँगड़ी औरत उठी। वह अपनी एक टाँग , घुम-घूमकर काफी देर तक नाचती रही। सब लोग उसका नाच देखकर दंग रह गए। उसके बाद बहरे कलाकार ने दर्द-भरे, प्यार के और सी गाने गाए। गाने सुनकर लोग ‘वाह-वाह करने लगे। फिर गूंगे कला ने हारमोनियम पर मधुर धुनें बजाईं, जिन्हें सुनकर लोग झूम उठे। इसके बाद एक हाथ वाले कलाकार ने तबला बजाया। तबले की थाप से सारा दरबार गूंज उठा। लोगों ने काफी देर तक तालियाँ बजाईं।
अंत में अंधे कलाकार की बारी आई। उसने अलग-अलग रंगों से एक सुंदर चित्र बनाया। उसमें नीला आकाश, चमकता सूरज, ऊँचे-ऊँचे पहाड़, वृक्ष, रंग-बिरंगे फूल और इधर-उधर दौड़ते हिरण दिखाई दे रहे थे। राजा और सभी दरबारी उस चित्र को देखकर हैरान रह गए। राजा ने अंधे कलाकार से कहा-‘हम आप लोगों के हुनर देखकर बहुत खुश हुए। हमें गर्व है कि हमारे राज्य में आप जैसे योग्य कलाकार हैं। आपका नाम क्या है?’
अंधे कलाकार ने उत्तर दिया-‘महाराज, मेरा नाम नयनसुख है। यह सुनकर राजा एकदम हैरान रह गया और बोला-‘वाह! आँख के अंधे और नाम नयनसुख । हम आप लोगों की कला का सम्मान करते हैं।’ यह। कहकर राजा ने उन कलाकारों को ढेर सारा इनाम दिया।” दादाजी की कहानी सुनकर अमर और लता खुशी से उछल पड़े। लता। बोली-“दादाजी, यह जरूरी नहीं कि जैसा नाम हो, वैसा गुण भी हो।