Hindi Moral Story on “Jhuthi Bhakti”, “झठी भक्ति” Complete Paragraph for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10 Students.

झठी भक्ति

Jhuthi Bhakti

किसी जंगल में बहुत समय पहले एक सियार रहता था। वह बहुत आलसी था। पेट भरने के लिए खरगोशों व चूहों का पीछा करना व उनका शिकार करना, उसे बड़ा भारी लगता था। शिकार करने में परिश्रम तो करना ही पड़ता है। दिमाग उसका शैतानी था। यही तिकड़म लगाता रहता कि कैसे ऐसी जुगत लगाई जाए, जिससे बिना हाथ-पैर हिलाए भोजन मिलता रहे। खाया और सो गए। एक दिन उसी सोच में डूबा वह सियार एक झाड़ी में दुबका बैठा था।

बाहर चूहों की एक टोली उछल-कूद व भाग-दौड़ करने में लगी थी। उनमें एक मोटा सा चूहा था, जिसे दूसरे चूहे ‘सरदार’ कहकर बुला रहे थे और उसका आदेश मान रहे थे। सियार उन्हें देखता रहा। उसके मुँह से लार टपकती रही। फिर उसके दिमाग में एक तरकीब आई।

जब चूहे वहाँ से गए तो उसने दबे पाँव उनका पीछा किया। कुछ ही दूर उन चूहों के बिल थे। सियार वापस लौटा। दूसरे दिन प्रात: ही वह उन चूहों के बिल के पास जाकर एक टाँग पर खड़ा हो गया। उसका मुँह उगते सूरज की ओर था। आँखें बंद थीं।

चूहे बिलों से निकले तो सियार को उस अनोखी मुद्रा में खड़े देखकर वे बहुत चकित हुए। एक चूहे ने जरा सियार के निकट जाकर पूछा, “सियार मामा, तुम इस प्रकार एक टाँग पर क्यों खड़े हो?”

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सियार एक आँख खोलकर बोला, “मूर्ख, तूने मेरे बारे में नहीं सना कभी? मैं चारों टाँगें नीचे टिका दूँगा तो धरती मेरा बोझ नहीं सँभाल पाएगी। यह डोल जाएगी। साथ ही तुम सब नष्ट हो जाओगे। तुम्हारे ही कल्याण के। लिए मुझे एक टाँग पर खड़े रहना पड़ता है।”

चूहों में खुसर-पुसर हुई। वे सियार के निकट आकर खड़े हो गए। चहों। के सरदार ने कहा, “हे महान् सियार, हमें अपने बारे में कुछ बताइए।”

सियार ने ढोंग रचा, “मैंने सैकड़ों वर्ष हिमालय पर्वत पर एक टाँग पर खड़े होकर तपस्या की। मेरी तपस्या समाप्त होने पर सभी देवताओं ने मुझ पर फूलों की वर्षा की। भगवान् ने प्रकट होकर कहा कि मेरे तप से मेरा भार इतना। हो गया है कि मैं चारों पैर धरती पर रखू तो धरती गिरती हुई ब्रह्मांड को फोड़कर दूसरी ओर निकल जाएगी। धरती मेरी कृपा पर ही टिकी रहेगी। तबसे मैं एक टाँग पर ही खड़ा हूँ। मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण दूसरे जीवों को कष्ट हो।”

चूहों का समूह महा तपस्वी सियार के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। एक चूहे ने पूछा, “तपस्वी मामा, आपने अपना मुँह सूरज की ओर क्यों कर रखा है?”

सियार ने उत्तर दिया, “सूर्य की पूजा के लिए।”

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“और आपका मुँह क्यों खुला है?” दूसरे चूहे ने पूछा।

“हवा खाने के लिए! मैं केवल हवा खाकर जिंदा रहता हूँ। मुझे खाना खाने की जरूरत नहीं पड़ती। मेरे तप का बल हवा को ही पेट में भाँति-भाँति । के पकवानों में बदल देता है।” सियार बोला।

उसकी इस बात को सुनकर चूहों पर जबरदस्त प्रभाव पड़ा। अब सियार। की ओर से उनका सारा भय जाता रहा। वे उसके और निकट आ गए। अपनी बात का असर चूहों पर होता देख मक्कार सियार दिल-ही-दिल में खूब हँसा। अब चूहे महा तपस्वी सियार के भक्त बन गए। सियार एक टाँग पर। खड़ा रहता और चूहे उसके चारों ओर बैठकर ढोलक, मजीरे, खड़ताल और

चिमटे लेकर उसके भजन गाते।

भजन कीर्तन समाप्त होने के बाद चूहों की टोली भक्ति रस में डूबकर र बिलों में घुसने लगती तो सियार सबसे बाद के तीन-चार चहों को बोचकर खा जाता। फिर रातभर आराम करता, सोता और डकारें लेता।

सबह होते ही फिर वह चूहों के बिलों के पास आकर एक टाँग पर खड़ा हो जाता और अपना नाटक चालू रखता। धीरे-धीरे चूहों की संख्या कम होने लगी। चूहों के सरदार की नजर से यह बात छिपी नहीं रही। एक दिन सरदार ने सियार से पूछ ही लिया, “हे महात्मा सियार, मेरी टोली के चूहे मुझे कम होते नजर आ रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा है?”

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सियार ने आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ उठाया, “हे चतुर मूषक, यह तो होना ही था। जो सच्चे मन से मेरी भक्ति करेगा, वह सशरीर बैकुंठ को जाएगा। बहुत से चूहे भक्ति का फल पा रहे हैं।” चूहों के सरदार ने देखा कि सियार मोटा हो गया है। कहीं उसका पेट ही तो वह बैकुंठ लोक नहीं है, जहाँ चूहे जा रहे हैं? |

चूहों के सरदार ने बाकी बचे चूहों को चेताया और स्वयं उसने दूसरे दिन सबसे बाद में बिल में घुसने का निश्चय किया। भजन समाप्त होने के बाद चूहे बिलों में घुसे। सियार ने सबसे अंत के चूहे को दबोचना चाहा।

चूहों का सरदार पहले ही चौकन्ना था। वह दाँव मारकर सियार का पंजा बचा गया। असलियत का पता चलते ही वह उछलकर सियार की गरदन पर चढ़ गया और उसने बाकी चूहों को हमला करने के लिए कहा। साथ ही उसने अपने दाँत सियार की गरदन में गड़ा दिए। बाकी चूहे भी सियार पर झपटे और सबने कुछ ही देर में महात्मा सियार को कंकाल सियार बना दिया। केवल उसकी हड्डियों का पिंजर बचा रह गया।

सीख : ढोंग ज्यादा दिन नहीं चलता। ढोंगी को करनी का फल मिलता ही है।

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