Hindi Moral Story on “Dhol ki Pol”, “ढोल की पोल” Complete Paragraph for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10 Students.

ढोल की पोल

Dhol ki Pol

एक बार एक जंगल के निकट दो राजाओं के बीच घोर युद्ध हुआ। एक जीता दूसरा हारा। सेनाएँ अपने नगरों को लौट गईं। बस, सेना  का एक ढोल पीछे रह गया। उस ढोल को बजा-बजाकर सेना के साथ गए भाँड व चारण रात को वीरता की कहानियाँ सुनाते थे।

युद्ध के बाद एक दिन आँधी आई आँधी के जोर में वह ढोल लुढ़कते-पुढ़कते एक सूखे पेड़ के पास जाकर टिक गया। उस पेड़ की सूखी टहनियाँ ढोल से इस तरह से सट गई थी कि तेज हवा चलते ही ढोल पर टकरा जाती थी और ढमाढम-ढमाढम की आवाज गुंजायमान होती।

एक सियार उस क्षेत्र में घूमता था। उसने ढोल की आवाज सुनी। वह बड़ा भयभीत हुआ। ऐसी अजीब आवाज बोलते पहले उसने किसी जानवर को नहीं सुना था। वह सोचने लगा कि यह कैसा जानवर है, जो ऐसी जोरदार बोली बोलता है, ‘ढमाढम’। सियार छिपकर ढोल को देखता रहता, यह जानने के लिए कि यह जीव उड़नेवाला है या चार टाँगों पर दौड़ने वाला।

एक दिन सियार झाड़ी के पीछे छुपकर ढोल पर नजर रखे था। तभी पेड़ से नीचे उतरती हुई एक गिलहरी कूदकर ढोल पर उतरी। हल्की सी ढ़म की आवाज भी हुई। गिलहरी ढोल पर बैठी दाना कतरती रही सियार बड़बड़ाया, ‘ओह! तो यह कोई हिंसक जीव नहीं है मुझे भी डरना नहीं चाहिए।’

सियार फंक-फूंककर कदम रखता ढोल के निकट पहुँचा। उसे सूंघा।  ढोल का उसे न कहीं सिर नजर आया और न पैर। तभी हवा के झोंके से टहनियाँ ढोल से टकराईं। ढम की आवाज हुई और सियार उछला पीछे जा गिरा।

‘अब समझ आया।’ सियार उठने की कोशिश करता हुआ बोला । “यह तो बाहर का खोल है। जीव इस खोल के अंदर है। आवाज बता रही है कि जो कोई जीव इस खोल के भीतर रहता है, वह मोटा-ताजा। होना चाहिए। चरबी से भरा शरीर। तभी ये ढम-ढम की जोरदार बोली बोलता है।”

अपनी माँद में घुसते ही सियार बोला, “ओ सियारी! दावत खाने के लिए तैयार हो जा। एक मोटे-ताजे शिकार का पता लगाकर आया हूँ।” सियारी पूछने लगी, “तुम उसे मारकर क्यों नहीं लाए?” |

सियार ने उसे झिड़की दी, “क्योंकि मैं तेरी तरह मूर्ख नहीं हूँ। वह एक खोल के भीतर छिपा बैठा है। खोल ऐसा है कि उसमें दो तरफ सूखी चमड़ी के दरवाजे हैं। मैं एक तरफ से हाथ डाल उसे पकड़ने की कोशिश करता तो वह दूसरे दरवाजे से न भाग जाता?”

चाँद निकलने पर दोनों ढोल की ओर गए। जब वे निकट पहुँच ही रहे थे कि फिर हवा से टहनियाँ ढोल पर टकराईं और ढम-ढम की आवाज निकली। सियार सियारी के कान में बोला, “सुनी उसकी आवाज? जरा सोच जिसकी आवाज ऐसी गहरी है, वह खुद कितना मोटा-ताजा होगा।”

दोनों ढोल को सीधा कर उसके दोनों ओर बैठे और लगे दाँतों से ढोल के दोनों चमड़ी वाले भाग के किनारे फाड़ने। जैसे ही चमड़ियाँ कटने लगी, सियार बोला, “होशियार रहना। एक साथ हाथ अंदर डाल शिकार को दबोचना है।” दोनों ने ‘हूँ’ की आवाज के साथ हाथ ढोल के भीतर है और अंदर टटोलने लगे, लेकिन अंदर कुछ नहीं था। एक-दूसरे के हाथ ही पकड़ में आए। दोनों चिल्लाए, “हंय, यहाँ तो कुछ नहीं है।” और वे माथा पीटकर रह गए।

सीख : शेखी मारनेवाले लोग ढोल की तरह ही अंदर से खोखले होते हैं।

Leave a Reply