Hindi Moral Story Essay on “चिकनी-चुपड़ी बातें”, “Chikni Chupdi Baatein” Complete Paragraph for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10 Students.

चिकनी-चुपड़ी बातें 

Chikni Chupdi Baatein 

किसी जंगल में एक शेर रहता था। एक दुष्ट और लालची गीदड़ उसका सेवक था। दोनों की जोड़ी अच्छी थी। शेरों के समाज में उस शेर की भी कोई खास इज्जत नहीं थी, क्योंकि युवावस्था में वह आस- पास के अन्य सभी दूसरे शेरों से युद्ध हार चुका था, इसलिए वह अलग-थलग रहता था। उसे गीदड़ जैसे चमचे की सख्त जरूरत थी, जो चौबीस घंटे उसकी चमचागिरी करता रहे। गीदड़ को बस खाने का जुगाड़ चाहिए था। पेट भर जाने पर गीदड़ उस शेर की वीरता के ऐसे गुण गाता कि शेर का सीना फूलकर दुगना चौड़ा हो जाता।

एक दिन शेर ने एक बिगड़ैल जंगली साँड़ का शिकार करने का साहस कर डाला। साँड़ बहुत शक्तिशाली था। उसने लात मारकर शेर को दूर फेंक दिया, जब वह उठने को हुआ तो साँड़ ने फाँ-फाँ करते हुए अपने तीखे सीगों से शेर को एक पेड़ के साथ रगड़ दिया।

किसी तरह शेर जान बचाकर भागा। सींगों की मार से वह काफी जख्मी हो गया था। कई दिन बीते, परंतु शेर के जख्म ठीक होने का नाम नहीं ले रहे थे। ऐसी हालत में वह शिकार नहीं कर सकता था। स्वयं शिकार करना गीदड़ के बस का नहीं था। दोनों के भूखों मरने की नौबत आ गई। शेर को यह भी भय था कि खाने का जुगाड़ न होने के कारण गीदड़ उसका साथ न छोड़ जाए।

शेर ने एक दिन उसे सुझाया, “देख, जख्मों के कारण मैं दौड़ नहीं सकता। शिकार कैसे करूँ ? तू जाकर किसी बेवकूफ से जानवर को बातों में फँसाकर यहाँ ले आ । मैं छिपकर वार करूँगा।’

गीदड़ को भी शेर की बात जँच गई। वह किसी मूर्ख जानवर की तलाश में घूमता-घूमता एक कस्बे के बाहर नदी-घाट पर पहुँचा। वहाँ उसे एक मरियल सा गधा घास पर मुँह मारता नजर आया। वह शक्ल से ही बेवकूफ लग रहा था।

गीदड़ गधे के निकट जाकर बोला, “पांय लागूँ चाचा। बहुत कमजोर हो गए हो, क्या बात है ?”

गधे ने अपना दुःखड़ा रोया, “क्या बताऊँ भाई, जिस धोबी का मैं गधा हूँ, वह बहुत क्रूर है। दिनभर ढुलाई करवाता है और चारा कुछ देता नहीं।” गीदड़ ने उसे न्योता दिया, “चाचा, मेरे साथ जंगल चलो न, वहाँ बहुत हरी-हरी घास है। खूब चरना, तुम्हारी सेहत बन जाएगी।”

गधे ने कान फड़फड़ाए, “राम-राम। मैं जंगल में कैसे रहूँगा ? जंगली जानवर मुझे खा जाएँगे।”

“चाचा, तुम्हें शायद पता नहीं है कि पिछले दिनों जंगल में एक बगुला भगतजी का सत्संग हुआ था। उसके बाद जंगल के सारे जानवर शाकाहारी बन गए हैं। अब कोई किसी को नहीं खाता।”

और कान के पास मुँह ले जाकर दाना फेंका, “चाचू, पास के कस्बे से बेचारी गधी भी अपने धोबी मालिक के अत्याचारों से तंग आकर जंगल में आ गई है। वहाँ हरी-हरी घास खाकर खूब लहरा गई है। तुम उसके घर बसा लेना। “

गधे के दिमाग में हरी-हरी घास और घर बसाने के सुनहरे सपने तैरने लगे। वह गीदड़ के साथ जंगल की ओर चल दिया। जंगल में गीदड़ गधे को उस झाड़ी के पास ले गया, जिसमें शेर छिपा बैठा था। इससे पहले कि शेर पंजा मारता, गधे को शेर की नीली बत्तियों की तरह चमकती आँखें नजर आ गईं। वह डरकर उछला और भाग गया। शेर बुझे स्वर में गीदड़ से बोला, ” भई, इस बार मैं तैयार नहीं था। तुम उसे दोबारा लाओ, अबकी बार गलती नहीं होगी।”

गीदड़ दोबारा उस गधे की तलाश में कस्बे में पहुँचा। उसे देखते ही बोला, “चाचा, तुमने तो मेरी नाक कटवा दी। तुम अपनी दुल्हन से डरकर भाग गए ?”

“उस झाड़ी में मुझे दो चमकती आँखें दिखाई दी थीं, जैसे शेर की होती हैं। मैं भागता न तो क्या करता?” गधे ने शिकायत की।

गीदड़ झूठमूठ माथा पीटकर बोला, “चाचा ओ चाचा! तुम भी निरे मूर्ख हो। उस झाड़ी में तुम्हारी दुल्हन थी। जाने कितने जन्मों से वह तुम्हारी राह देख रही है। तुम्हें देखकर उसकी आँखें चमक उठीं तो तुमने उसे शेर समझ लिया ?”

गधा बहुत लज्जित हुआ, गीदड़ की चाल भरी बातें ही ऐसी थीं। गधा फिर उसके साथ चल पड़ा। इस बार झाड़ी के पास पहुँचते ही शेर ने नुकीले पंजों से उसे मार गिराया।

सीख : चिकनी-चुपड़ी बातों में धोखा होता है।

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