Hindi Moral Story Essay on “माँ की सीख”, “Maa ki Seekh” Complete Paragraph for Class 5, 6, 7, 8, 9, 10 Students.

माँ की सीख

Maa ki Seekh

किसी नगर में ब्रह्मदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था। एक बार उसे किसी दूसरे गाँव में कोई काम आ पड़ा। वह चलने लगा तो उसकी माँ ने कहा, “बेटा अकेले न जाओ। किसी को साथ ले लो।” लड़के ने कहा, “तुम इतना क्यों घबराती हो माँ। इस रास्ते में कोई विघ्न-बाधा नहीं है। किसी को साथ लेने की क्या जरूरत है।”

माँ ने देखा, लड़का टस से मस नहीं हो रहा है तो उसने उसे एक केकड़ा देते हुए कहा, “अच्छा, कोई और साथी नहीं है तो तुम इस केकड़े को ही साथ ले लो। हो सकता है, यही तुम्हारे किसी काम आ जाए।”

माँ का मन रखने के लिए लड़के ने उस केकड़े को पकड़कर कपूर एक डिबिया में रख लिया और उसे एक झोले में डालकर चल पड़ा। गरमी के दिन थे। कड़ाके की धूप थी। वह कुछ दूर जाने के बाद एक पेड़ के नीचे आराम करने को रुका और वहीं सो गया।

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इसी बीच उस पेड़ के कोटर से एक साँप निकला और रेंगता हुआ ब्राह्मण के पास चला आया। साँपों को कपूर की गंध बहुत भाती है, इसलिए वह पोटली फाड़कर उसमें रखी डिबिया को ही निगलने लगा। इसी बीच डिबिया खुल गई और उसमें रखे केकड़े ने निकलकर साँप का गला पकड़ लिया और उसकी जान ले ली।

ब्राह्मण की नींद खुली तो वह हैरान हो गया। देखता क्या है कि कपूर की डिबिया से सिर टिकाए साँप मरा पड़ा है। उसे समझते देर नहीं लगी कि यह डिबिया में रखे केकड़े का ही काम है।

अब उसे अपनी माँ की कही बात याद आई कि अकेले नहीं जाना चाहिए। रास्ते के लिए कोई-न-कोई साथी जरूर ढूँढ़ लेना चाहिए। उसने सोचा, मैंने अपनी माँ की बात मान ली, सो ठीक ही किया।

सीख : जीवन में अकेले रहने से अच्छा एक साथी होना लाभदायी होता है।

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