Hindi Letter for”Sampadk ko Patra – Parivahan sambandhi Kathinayio ke vishya me”, “सम्पादक को पत्र – परिवहन सम्बन्धी कठिनाइयों के विषय में”

सम्पादक को पत्र – दिल्ली में परिवहन सम्बन्धी कठिनाइयों के विषय में

प्रतिष्ठा में

श्रीयुत सम्पादक महोदय,

 नवभारत टाइम्स,

 बहादुरशाह जफ़र मार्ग,

नई दिल्ली-110001

महोदय,

मैं आपके जनप्रिय दैनिक समाचारपत्र के माध्यम से अपने विचार दिल्ली परिवहन के अधिकारियों तक पहुँचाना चाहता हूँ। आशा है, आप इन्हें ‘चिट्ठियाँ’ स्तम्भ में प्रकाशित कर कृतार्थ करेंगे।

महानगरी दिल्ली बागों की रानी कहलाती है। इसका विस्तार दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। देश के कोने-कोने से प्रत्येक मास लाखों लोग काम की खोज में यहाँ आते रहते हैं। इस तरह दिल्ली रानी की सन्तानें बढ़ती जा ही हैं। इनके लिए अब यातायात की सुविधाओं के लिए माँग भी बढ़ी है। इस महँगाई के युग में यहाँ एक स्थान से दूसरे स्थान पर बसों द्वारा पहँचा जा सकता है, पर विडम्बना यह है कि दिल्ली परिवहन के पास यहाँ की जनसंख्या के अनुपात में बसों की संख्या – बिल्कुल कम है। इस कारण बसों में भीड़ अधिक दिखलाई पड़ती है। बूढे, बालक और महिलाओं को खचाखच भरी बस में यात्रा करना कठिन हो जाता है।

ऐसी स्थिति में भी एक तिहाई बसें खराब हालत में परिवहन डिपो में ही रह जाती हैं। उनकी मरम्मत समय पर न होने से दिल्ली की जनता को और भी अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ जाता है। दिल्ली में सुबह और शाम को कार्यालयों अथवा प्रतिष्ठानों में आने जाने का समय होता है। संख्या में बसे कम होने से ठसाठस भरी चलती हैं। जवानों को भी इनमें चढ़ने के लिए कुश्ती लड़नी पड़ती है। असहाय और कमजोरों के विषय में तो क्या कहा जाए ! इनकी अनियमितता तो और भी जी का जंजाल बन जाती है। अनुशासन भी भंग हो जाता है।

इन बसों के संवाहकों अथवा चालकों को नियत स्टैण्ड पर बसे न रोक कर आगे-पीछे रोकने में भी विशेष आनन्द आता है। बेचारे यात्रियों को इससे बहुत असुविधा होती है। नौजवान तो दौड़कर चढ़। जाते हैं; पर बच्चे-बूढ़े रह जाते हैं। बस स्टेण्डों पर शैड भी पर्याप्त नहीं हैं। बरसात में भीगना पड़ता है और सख्त गरमी में धूप में तपना।

मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि दिल्ली परिवहन का अधिकारी वर्ग यदि अपनी कर्तव्यपरायणता का परिचय दे, तो इस बाग की रानी के जन-जीवन में काफी सुधार हो सकता है। कारण, इस महानगर को अपनी दिनचर्या के संदर्भ में गतिशील बनाए रखने का अधिकांश श्रेय इसी अधिकारी वर्ग को जाता है।

परिवहन निगम के कर्मचारी अपनी माँगों को लेकर जब हड़ताल । पर चले जाते हैं, तो छात्र वर्ग को सब से अधिक परेशानी उठानी पड़ जाती है। हमारी सरकार इसे प्राईवेट करने का विचार बना रही है। पता नहीं, ऊँट किस करवट बैठता है। यदि दिल्ली परिवहन भी मुम्बई परिवहन का अनुकरण कर ले, तो इस समस्या का समाधान हो सकता है।

भवदीय,

पंकज

दिनांक….

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