Hindi Letter for “Sakhi ko Railyatra ka varnan karte hue patra”,”सखी को रेल यात्रा का वर्णन करते हुए पत्र” Hindi letter for Class 9, 10, Class 12 and B.A Others.

सखी को रेल यात्रा का वर्णन करते हुए पत्र

मुम्बई ।

दिनांक 15 मार्च, 2000

प्रिय सखी विदुषी,

सप्रेम नमस्ते ।

कुछ दिन पूर्व काशी से लौटी हूँ। यह बहुत ही सुन्दर, धार्मिक और सांस्कृतिक नगर है। इस के सौंदर्य का बखान करना मेरी लेखनी से बाहर की बात है। यहाँ से लौटते समय की रेलयात्रा बड़ी रोचक व आनंददायिनी रही। जब मैं ताँगे से काशी के जंकशन पर पहुँची, तो वहाँ टिकट की खिड़की पर लम्बी पंक्ति देखी। देखते ही मेरे तो होश उड़ गए; क्योंकि ट्रेन छूटने वाली थी; पर पंक्ति में खड़ा होना ही पड़ा। रह-रह कर घड़ी की ओर दुरिट जाने लगी। टिकट बाबु बड़े आराम से काम कर रहा था। उसे किसी के ट्रेन छूट जाने की चिन्ता नहीं थी। कुछ ही देर में, मेरी हिम्मत जवाब दे गई। मैं अधीर हो उठी। तभी कुली बोल उठा कि दीदी, इस तरह तो तुम्हारी ट्रेन छुट जाएगी। किसी पास के स्टेशन का प्रथम श्रेणी का टिकट लेकर बैठ जाओ। रास्ते में टिकट बनवा लेना। उसकी बात मेरी समझ में बैठ गई। मैं प्रथम श्रेणी की खिड़की पर जा पहुंची और भदोही का टिकट लेकर अपर इंडिया एक्सप्रेस में सवार हो गई।

विदुषी ! प्रथम श्रेणी का डिब्बा भी खचाखच भरा था। फिर भी पैर रखने की मुझे जगह मिल ही गई। ठीक समय पर ट्रेन ने काशी जंकशन छोड़ दिया। अभी गाड़ी ने गति पकड़ी ही थी कि एक जेबकतरे ने किसी की जेब पर हाथ साफ कर दिया। डिब्बे में शोर मच गया। तभी मैंने देखा कि एक किशोर चलती ट्रेन से कूदने की कोशिश में है। मैंने संदेह की स्थिति में उसे पकड़ लिया। तलाशी लेने पर उसके पास से बटुआ मिला, उसमें हजार रुपये थे। उसका स्वामी मेरा धन्यवाद करने लगा।

पर इस किस्से का अंत यहीं नहीं हुआ। किसी यात्री ने जंजीर खींच दी और गाड़ी वहीं खड़ी हो गई। टिकट चैकर और गार्ड दोनों ही मेरे डिब्बे में पहुँचे। मैंने उन्हें कहानी बता कर जेबकतरे को उनके सुपुर्द कर दिया। डिब्बे के सभी यात्रियों ने मेरी बात का समर्थन किया। कुछ देर के बाद गार्ड तो वहाँ से चला गया और गाड़ी फिर चल पडी; पर टिकट चैकर मेरे पास ही बैठ गया। मैंने उसे टिकट की कहानी बता कर द्वितीय श्रेणी का टिकट बनवाया। भदोही में जब गाड़ी खड़ी हुई, तो मैंने झट अपने सामान सहित द्वितीय श्रेणी में प्रवेश किया। स्थान भी अच्छा मिल गया। फिर तो यात्रा बड़े सुख से पूर्ण हुई । यह यात्रा मुझे चिरस्मरणीय रहेगी।

समय निकाल कर एक बार मुम्बई आओ । शेष सब को यथायोग्य नमस्कार।

तुम्हारी प्रिय सखी,

सुनयना।

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