Hindi Essay, Story on “Ustra, Hazam, Nai, Ek mein, Ek mera Bhai”, “उस्तरा, हजाम, नाई, एक मैं, एक मेरा भाई,” Hindi Kahavat for Class 6, 7, 8, 9, 10 and Class 12 Students.

उस्तरा, हजाम, नाई, एक मैं, एक मेरा भाई,

Ustra, Hazam, Nai, Ek mein, Ek mera Bhai

पुराने जमाने में गरीब-से-गरीब के यहां भी बरात में सौ-पचास आदमी आ जाते थे। बड़ों के यहां तो गांव-का-गांव उलट पड़ता था। आदमी ज्यादा हो जाने पर दशा तो आज के शरणार्थियों की-सी होती थी। खास रिश्तेदार जनवासे में टिकाये जाते, बाकी आम की बारी में पड़े रहते। ऐसी ही एक बरात के बेटे वाले के गांव के नाई, धोबी, दर्जी सभी समधी के यहां पहुंचे। हर बराती से पूछ-पूछकर कि उसके साथ कितने ‘बेकत’ (व्यक्ति) हैं, सीधा (आटा, दाल वगैरा) दिया जाने लगा। नाई की बारी आने पर उसने गिनाया :

उत्सरा, हजाम, नाई,

एक मैं एक मेरा भाई,

दो खड़े हमराही।

सीधा देनेवालों ने जांच की जरूरत न समझी। हेठी का डर लगा होगा कि समधी क्या समझेगा कि इनके यहां के लोग कैसे कंजूस हैं। उन्होंने चुपचाप सात आदमियों का सीधा तौल दिया।

पास ही दर्जी खडा था। उसने यह पोल देखकर गिनाये-“गज, गजफर और गजफर के सोला सिफर यानी कुल अट्ठारह।” वहीं एक ठग साधु खड़ा खा। उसने कहा-

हूर, हुंकारदास, चेलोर, गोपालदास

एक मेरी घोड़ी, घाल पांच नावां।

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