Hindi Essay, Story on “Lena Ek Na Dena Do”, “लेना एक न देना दो” Hindi Kahavat for Class 6, 7, 8, 9, 10 and Class 12 Students.

लेना एक देना दो

Lena Ek Na Dena Do

 

एक मोर और कछुए में बड़ी दोस्ती थी। मोर पेड़ पर रहता था और उसी के नीचे पोखरे में कछुआ। मोर मौज से चुगता, पोखरे से पानी पीता और मस्त होकर नाचता। कछुआ उसका नाच देखकर खुश होता। दुर्भाग्य से एक दिन बहेलिये ने मोर को अपने जाल में फंसा लिया और उसे बाजार में बेचने चला। मोर बहेलिये से बोला, “अगर तुम थोड़ी सी दया करो तो मैं अपने दोस्त कछुए से मिल लं, क्योंकि अब तो सदा के लिये हमारा वियोग होनेवाला है।”

बहेलिया मोर की बात मानकर उसे कछुए के पास ले गया। अपने दोस्त को बहेलिये के हाथ में पड़े देखकर कछुए का जी भर आया। उसने बहेलिये से मोर को छोड़ देने की प्रार्थना की। बहेलिया बोला, “वाह-वाह, इस तरह मैं अपना शिकार छोड़ता चलूं तो मैं भूखों ही मर जाऊं।”

कछुए ने कहा, “मैं इसे छोड़ने का तुम्हें कुछ इनाम दूं तो?”

“तब मुझे छोड़ने में क्या उन हो सकता है।”

इस पर कछुए ने पोखरे में डुबकी लगाई और अपने मुंह में एक सुन्दर लाल लिये निकला। लाल बहेलिये को सौंप दिया। बहेलिया खुशी से फूला न समाया। उसने लाल पाते ही मोर को छोड़ दिया। थोड़ी दूर चलकर बहेलिये के मन में लालच आया कि मैंने मोर की मुक्ति के लिये दो लाल मांगे होते तो अच्छा होता। यह सोचकर लौट पड़ा और कछुए से बोला, “तुमने तो मझे ठग लिया। मैं एक लाल पर मोर को छोड़नेवाला नहीं था। वैसा ही एक लाल मुझे और दो, नहीं तो मैं मोर को फिर पकड़ लूंगा।”

कछुए ने मोर को पहले ही हिदायत कर दी थी कि वह दूर उड़ जाय। बहेलिये के लोभ ने कछुए को क्रुद्ध कर दिया। वह बोला, “ठीक है लाओ वह लाल, दो मुझे, मैं उसी की जोड़ का दूसरा लाल पोखरे के भीतर से खोजकर ला दूं।”

लालच ने बहेलिये की अक्ल पर परदा डाल रखा था। वह भूल गया कि “हाथ में का एक. झाडी में के दो से अच्छा है।” उसने हाथ का लाल तत्काल कछुए को दे दिया। कछुए ने लाल लिया और पानी में यह कहता हुआ गोता लगा दिया कि मैं ऐसा बेवकूफ नहीं हूं, जो तुम्हें दो ढूं। तुझे तो एक लेना नहीं है और मुझे दो देने नहीं है। जा भाग, अब यह एक भी नहीं मिलेगा।

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