जिसमें ओत हो
Jisme Oat Ho
बादशाह ने बीरबल से पूछा, “बताओ हिन्दुस्तान में सब जातियों में स्वार्थी जाति कौन?”
बीरबल ने कहा, “बनिया।”
“कैसे?”
“इसके सबूत के लिए कल मैं हुजूर के सामने एक बनिए को पेश करूंगा।”
दूसरे दिन बीरबल ने बाजार से एक बड़े व्यापारी को बुलाया और धमकाया कि मुझे खूबर मिली है कि तुम्हारे यहां देने के बाट और हैं, लेने के और। बनिया कांपने लगा, क्योंकि सचमुच ही उसके लेने के बाट (बटखरे) और तथा देने के और थे। बीरबल ने कहा, “इस जुर्म में तुमको सूली दी जायगी अथवा फांसी। दोनों में जो चाहो ले सकते हो।”
बनिया फांसी तो समझता था कि गले में फंदा फंसाकर अपराधी को लटका दिया जाता है। लेकिन सली क्या होती है, यह उसे पता न था। सूली में शायद लोहे की तेज कीलें किसी चीज़ पर गडी रहती थीं और अपराधी को ऊंचाई से उन कीलों पर (शलों पर) डाल देते होंगे। सली का अर्थ समझ न पाने के कारण बनिया असमंजस में पड़ा कि सली मांगे या फांसी। उसने सोचा कि शायद फांसी से भी सली अधिक भयानक चीज होती होगी। पर वह कुछ निर्णय न कर पाया। बीरबल ने फिर पूछा, “जल्दी कहो, क्या चाहते हो, सूली या फांसी?”
अंत में बनिए ने कहा, “हुजूर, जिसमें ओत हो (यानी जिसमें मैं फायदे में रहूं) वही दी जाय।”
बीरबल ने बनिए को तुरंत मुक्त करा दिया और बादशाह से कहा, “देखिए हुजूर, यह बनिया ही है, जिसे फायदे की ऐसी धुन है कि फांसी और सूली में से भी फायदे की बात सोचता है।”