Hindi Essay, Story on “Bharme Bhoot Shanka Dayan”, “भरमै भूत शंका डायन” Hindi Kahavat for Class 6, 7, 8, 9, 10 and Class 12 Students.

भरमै भूत शंका डायन

Bharme Bhoot Shanka Dayan

 

एक सेठ बड़ी बहमी थे। वह कहीं जाते होते, कोई झूठ-मूठ भी छींक देता या खुद उन्हीं को छींक आ जाती, तो फिर उनके पैर आगे न पड़ते। कहीं दस कोस दूर जाना होता तो मुहूर्त निकलवा कर ही यात्रा करते। बिल्ली अगर सामने से निकल गई तो सोच लिया कि आज जरूर किसी से झगडा होगा। घर से निकले और कोई नंगे सिर सामने मिल गया या कोई पनिहारिन खाली घड़ा लिये मिल गई तो समझ लेते कि बस आज दिन-का-दिन खाली जाएगा। खाट से उठते ही किसी व्यक्ति विशेष का मुंह देख लेते तो मन में मान लेते कि आज का दिन खैरियत से न बीतेगा। दूसरे से बातचीत करते हुए, सुबहही-सुबह, किसी कंजूस का या बदनाम आदमी का नाम जबान पर आ जाता तो “हरे राम, हरे राम” के उच्चारण से दोष प्रक्षालन करते और कहते, मूजी का नाम सुबह-ही-सुबह जबान पर आया है, पता नहीं, आज दिन भर खाना मिलेगा या नहीं। उनकी सेठानी, उनसे भी ज्यादा बहमी थी। उसे तो रात को पेड़ के पत्ते-पत्ते में भूत दीखता था। शाम के बाद बच्चों को चौराहे पर न जाने देती, कोई टोना कर देगा। किसी पेड़ के नीचे न जाने देती कि भूत लग जायगा। दस-बीस वहम हों तो गिनाये जायं, वहां तो सेठ-सेठानी के पीछे अनगिनत वहम लगे हुए थे। इन वहमों के कारण उनका जीवन सदा दुःखमय रहता था।

एक दिन का तमाशा सुनिए। होली से एक-दो दिन पहले, लड़कों ने खेलने को लाल रंग घोला। दिन में खेलकर शाम को बचा हुआ गाढ़ा-गाढ़ा लाल रंग लोटे में रख दिया कि सवेरे इससे खेलेंगे। सेठजी बड़े सवेरे, अंधेरे-अंधेरे शौच जाया करते थे। संयोग से उस दिन वही लोटा उनके हाथ लगा। देखा पानी भरा है, लेकर शौच के लिये मैदान चले गये। निवृत्त होकर पानी इस्तेमाल किया तो खून-ही-खून। खून देखते ही उन्हें ऐसा गश आया कि वहीं गिर पड़े। पांच-सात मिनट पड़े रहे। एक परिचित की नजर पड़ी तो उसने उनके घर खूबर दी। लोग खाट पर डालकर घर ले आये। घरभर घबरा गये। सेठजी को होश आने पर घरवालों ने पूछना शुरू किया, “क्या हुआ, कैसे बेहोश हो गये?”

सेठजी ने सिसकते-सिसकते-मानों वर्षों के बीमार हो, बोले, “क्या बताऊँ, आज मेरे पखाने से दो सेर से कम खन न गिरा होगा। खून देखते ही मरा सर चकरा गया। मैं तो वहीं गिर पड़ा। मझे आश्चर्य है कि इतना खून गिरने पर भी मैं जिन्दा कैसे रह गया? ओफ् ओ, मेरे शरीर में जरा भी सत बाकी नहीं रहा। कमजोरी के मारे मेरा हाड़-हाड़ टूटा जा रहा है।”

सामनेवालों ने साथ दिया, “भला, इतना खून गिरने के बाद आदमी खड़ा कैसे रह सकता है?”

वैद्य हकीमों के लिए इधर-उधर आदमी दौड़ाये गये। सेठानी का तो बुरा हाल था।

इसी बीच एक दस साल के लड़के ने आकर सेठानी से पूछा, “मां, तेरे कमरे में चौकी के नीचे मेरा रंग भरा हुआ लोटा रखा था, कहां है वह?”

“मुझे क्या मालूम? तंग मत कर। तुझे रंग की पड़ी है, यहां तो जान के लाले पड़े हैं। जा, भाग यहां से।”

“मां, बता न, हम लोगों ने रात को लोटे में लाल रंग घोलकर रखा था कि सवेरे रंग खेलेंगे, वह लोटा क्या हुआ?”

“कह तो दिया, मुझे मालूम नहीं। निकलो, तुम लोग यहां से।” “अच्छा मां, यही बता दे, वह लोटा कहां गया?”

“खोज, होगा कहीं इधर-उधर। लोटा कहां जायगा। रंग किसी ने गिरा दिया होगा। जा, मुनीमजी से पैसे लेकर और रंग ले आ।”

सेठानी ने नौकर से कहा, “जा, इसे लोटा खोजकर दे दे।”

सारे घर में उस लोटे की खोज हुई। लोटा न मिला। वह सेठजी के रोज पाखाने जाते समय ले जाने का पुराना लोटा था। दूसरा लोटा खराब न हो, इसलिए लड़कों ने उसमें रंग घोल लिया था। सेठजी यह सब चर्चा सुन रहे थे। उन्होंने कहा, “लोटा तो मैं सबेरे पाखाने ले गया था। लोग मुझे उठाकर ले आए, लोटा शायद वहीं छोड़ आए।”

लड़कों ने कहा, उसी लोटे में तो हम लोगों का सारा रंग था। बाबूजी, रंग का आपने क्या किया?

अब सेठजी की समझ में आया कि जिसे उन्होंने खून समझा था वह वही लोटे में घोला हुआ रंग था! खोजने पर लोटा वहीं पड़ा मिला।

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