Hindi Essay, Story on “Andher Nagri Chopat Raja”, “अंधेर नगरी चौपट राजा ” for Class 6, 7, 8, 9, 10 and Class 12 Students.

अंधेर नगरी चौपट राजा 

Andher Nagri Chopat Raja

 

टके सेर भाजी, टके सेर खाजा

Take Ser Bhaji, Take Ser Khara

तीर्थ-यात्री करते हुए एक गुरु और चेला किसी नगरी में पहुंचे। नाम उसका अन्धेर नगरी था। चेला बाजार में सौदा खरीदने निकला तो वहां हर चीज एक ही भाव-“सब धन बाइस पसेरी।” भाजी टके सेर और खाजा (एक मिठाई) भी टके सेर। चेला और चीजें खरीदने के झंझट में क्यों पढ़ता? एक टके का सेरभर खाजा खरीद लाया और बहुत खुश-खुश आकर अपने गुरु से बोला, “गुरुजी, यहां तो बड़ा मजा है। खूब सस्ती हैं चीजें, सब टके सैर। देखिए एक टके में यह सेरभर खाजा लाया हूं। अपने तो अब कुछ दिन यहीं मौज करेंगे। छोड़िए तीर्थ-यात्रा, यह सुख और कहां मिलेगा?”

गुरु समझदार थे, बोले, “भाई इसका नाम ही अंधेर नगरी है; यहाँ रहना अच्छा नहीं, जल्दी भागना चाहिए यहां से। वैसे भी, साधु का एक ठिकाने जमना अच्छा नहीं। कहा है, “साधु, रमता भला, पानी बहता भला।”

पर चेले को गुरु की बात नहीं भायी। बोला, “अपने राम तो यहां कुछ दिन जरूर रहेंगे।”

गुरु को चेले का अकेले छोड़ जाना मुनासिब न मालूम हुआ। बोले, “अच्छा, रहा जाय कुछ दिन। जो होगा, भुगता जाएगा।”

चेला अंधेर नगरी का सस्ता माल खा-खाकर खूब मोटा गया। उन्हीं दिनों एक खूनी को फांसी की सजा हुई थी। पर वहां बहत दबले को फांसी न देकर उसके बदले में कोई अधिक मोटा आदमी तलाश करके उसे फांसी चढ़ा देने का रिवाज था। अंधेर नगरी ही जो ठहरी ! हाकिम ने सिपाहियों को हुक्म दिया कि तलाश करके जो मोटा आदमी सामने मिल जाय, उसी को फांसी दे देना। एक खून के बदले में किसी एक की फांसी होनी चाहिए। इसकी हो या उसकी, किसी की हो-‘जीव के बदले जीव’।

सिपाही खोजने चले तो यही मोटा चेला सामने पड़ा। वह हलवाई के यहां खड़ा खाजा खरीद रहा था। सिपाही उसे जेलखाने ले चले। गुरु को खूबर लगी। वह दौड़े आए। सब बातें मालूम की। एक बार तो उनके मन में आया कि इसे अपनी बेवकूफी का फल भोगने दें, पर गुरु का हृदय बड़ा दयालु था। सोचा, जीता रहेगा तो आगे समझ जायगा। सिपाहियों के पास जाकर बोले, “इस वक्त फांसी चढ़ने का हक तो मेरा है, इसका नहीं।”

“क्यों?”

“इस वक्त कुछ घंटों के मुहूर्त में फांसी चढ़कर मरने वाला सीधा स्वर्ग जायगा। शास्त्र में गुरु के पहले चेले को स्वर्ग जाने का अधिकार नहीं है।”

चेला गरु की चाल समझ गया। चिल्ला उठा, “नहीं गुरुजी, मैं ही जाऊंगा। सिपाहियों ने मुझे पकड़ा है। आपको पकड़ा होता तो आप जाते।”

इसी एक बात पर दोनों ने परस्पर झगड़ना शुरू कर दिया। सिपाही हैरान थे। भीड़ इकट्ठी हो गई। फांसी चढ़ने को झगड़ना, लोगों के लिए यह एक नई बात थी।

होते-होते, बात राजा के कानों तक पहुंची। राजा ने कहा, “यदि ऐसा मुहूर्त है तो सबसे पहला अधिकार तो राजा का ही होता है। और उसके बाद क्रम से, उसके उच्चाधिकारियों का।”

गुरु-चेला बहुत चिल्लाये कि साधु के सामने स्वर्ग में जाने का दूसरे का हक हर्गिज नहीं है, पर उनकी किसी ने न सुनी। सबसे पहले राजा और फिर एक-एक करके कई उच्चाधिकारी फांसी पर चढ़ गए। गुरु ने सोचा कि अधिक मनुष्य-हत्या नहीं होनी चाहिए। तो अफसोस करते हुए बोले-“अब तो स्वर्ग जाने का मुहूर्त खत्म हो गया।” फिर कोई फांसी न चढ़ा।

गुरु ने चेले से कान में कहा, “अब यहां से जल्दी निकल भागना चाहिए। देख लिया न तुमने कि इस अंधेर नगरी में कैसे-कैसे ‘बेवकूफ बसते हैं?”

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