दशहरा पर्व
Dusshera Parv
“जब-जब होता नाश धर्म का और पाप बढ़ जाता है
तब लेते अवतार प्रभु यह विश्व शांति पाता है।”
भूमिका-भारत की संस्कृति में त्योहारों का विशेष महत्व है। इससे जीवन में नई प्रेरणा, स्फूर्ति और उत्साह का संचार होता है। इससे हमें प्राचीन आदर्शों का ज्ञान होता है। त्योहार हमें यह अनुभव कराते हैं कि सत्य की असत्य पर और ज्ञान की अज्ञान पर तथा धर्म की अधर्म पर सदा विजय होती है। इन त्योहारों में दशहरा हमें अपने धर्म, मर्यादा और कर्तव्य की याद दिलाता है।
मनाने के कारण तथा समय-मर्यादा पुरुषोत्तम राम जब चौदह वर्ष का वनवास काट रहे थे, उन्हीं दिनों रावण ने छल से उनकी पत्नी सीता को हर लिया था। राम ने सुग्रीव, हनुमान आदि की सहायता से महापराक्रमी, बलशाली लंका के राजा रावण पर विजय प्राप्त की थी। तभी से यह त्योहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। दशहरे का त्योहार प्रति वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है।
मनाने का ढंग-धर्म और मर्यादा को जीवन देने वाले भगवान रामचंद्र जी के जीवन चरित्र को लोगों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिये कई दिन पहले से ही रामलीलाएं की जाती हैं। जिनमें राम की जीवन लीलाएँ अत्यंत भावात्मक ढंग से प्रस्तुत की जाती हैं। अनेक स्थानों पर कथाओं का आयोजन भी होता है।
झाँकियाँ एवं रावण वध-दशहरे वाले दिन नगर को अच्छी तरह से सजाया जाता है। रामायण के पात्रों की झाँकियाँ निकाली जाती हैं। एक खुले स्थान पर रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण के बड़े-बड़े पुतले बनाए जाते हैं। जिनमें आतिशबाजी भर दी जाती हैं। झाँकियाँ नगर के बीचो-बीच निकलती हई उस मैदान में पहुँचती हैं जहाँ राम-रावण की लड़ाई दिखाई जाती है। सारे नगरवासी इस उत्सव का आनंद लेने के लिए मैदान के चारों ओर एकत्र होते हैं। राम अधर्मी रावण का वध कर देते हैं। पुतले में भरे पटाखे फूटने लगते हैं।
नवीन प्रेरणा-रामलीलाएँ, नाटक, कथाएँ हमें रामचन्द्र जी के समान पितृभक्त, लक्ष्मण जैसा भाई, सीता समान पतिव्रता तथा हनुमान जैसा स्वामी-भक्त बनने की प्रेरणा देते हैं।
शस्त्र-पूजन-भारत में चार मास वर्षा ऋतु के होते हैं। इन दिनों क्षत्रिय लोग अपने शस्त्रों को बंद करके रख देते हैं। शरद् ऋतु के आगमन पर दशहरे वाले दिन शस्त्रों का पूजन करते हैं तथा उनकी सफाई करते हैं।
दुर्गा पूजन-कुछ प्रदेशों में ऐसी धारणा है कि शक्ति की देवी दुर्गा इसी समय कैलाश की ओर प्रस्थान करती है। इसलिए वहाँ नव रात्रों में हर घर में दुर्गा माता की मूर्ति बनाकर पूजा की जाती है तथा झाँकियाँ निकाली जाती हैं।
कृषि की दृष्टि से महत्व हमारा देश कृषि प्रधान देश है। किसान अपनी फसल काटकर घर ले आता है तो उसके उल्लास और उमंग का पारावार नहीं रहता। गेहूँ और जौ बोया जाता है। देवी की अन्नपूर्णा रूप में घर-घर गेहूँ और जौ बो कर पूजा की जाती है।
उपसंहार-प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को जीवित रखने के लिये तथा अपने आदर्श पुरुषों के पद चिहनों पर चलने के लिए इन त्योहारों को हर्षोल्लास से मनाना चाहिए। नव जागृति लाने के लिये आवश्यक है कि भाई-भाई मिलकर रहें, माता-पिता की आज्ञा का पालन करें तथा स्त्री जाति की रक्षा करें। रावण रूपी राक्षस का नाश करने के लिये सदा तत्पर रहें।