दीपावली पर्व
Deepawali Parv
“दीप जगमगा उठे, ज्योति प्रज्वलित हुई
रात्रि अमावस की थी, पूर्णमासी बन गई।”
भूमिका-भारतवर्ष त्योहारों का देश माना जाता है। भारत की संस्कृति में त्योहारों का अपना विशेष महत्त्व है। वास्तव में भारत के संबंध में यह कहावत पूर्णतः ठीक ही लगती है कि यहाँ नौ दिन में तेरह त्योहार होते हैं, परंतु कुछ त्योहार ऐसे होते हैं जिनका अपना विशेष महत्त्व होता है। इनमें दीपावली भारत में प्रत्येक जाति, धर्म, संप्रदाय में अपना सर्वोच्च स्थान रखती है।
अर्थ-दीपावली का अर्थ होता है-दीपों की अवली या पंक्ति। यह त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को आता है। इस दिन प्रत्येक भारतीय अपने घर को दीपों से सजाकर पूर्णिमा से भी अधिक उज्ज्व ल और रोशन बना देते हैं।
नये उत्साह का प्रतीक-नवीन कामनाओं से भरपूर यह त्योहार बड़े ही उत्साह और हर्ष के साथ मनाया जाता है। बच्चे, जवान, बूढ़े, किसान, व्यापारी और दुकानदार बहुत समय पहले ही इसके आगमन की प्रतीक्षा करने लगते हैं। लक्ष्मी के स्वागत में प्रत्येक व्यक्ति पहले से अपने घर की सजावट में लग जाता है।
सांस्कृतिक महत्व-सांस्कृतिक दृष्टि से भी इस पर्व का विशेष महत्व है। इस दिन आदर्श पुरुष श्री रामचंद्र रावण-वध कर व चौदह वर्ष की बनवास की अवधि पूर्ण कर अयोध्या लौटे थे। उनके आने पर अयोध्यावासियों ने अपने घरों को सजाया था तथा घी के दिये जलाये थे।
विभिन्न धर्मों का समन्वय-जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी तथा आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद ने इस दिन ही निर्वाण प्राप्त किया था। स्वामी रामतीर्थ जी ने भी इस दिन निर्वाण प्राप्त किया था। इसी दिन सिक्खों के छठे गुरु श्री हरगोविंदसिंह जी कारगार से मुक्त हुए थे इसलिए सिक्ख लोग भी इसे बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं। अमृतसर की दीपावली तो भारत भर में प्रसिद्ध है।
दीपावली की तैयारी-दीवाली के साथ अनेक परम्पराएँ जुड़ी हुई हैं, इस दिन की प्रतीक्षा में लोग, कई दिन पहले से ही अपने-अपने घरों की सफाई करते हैं। लिपाई-पुताई और तरह-तरह की सजावट करते हैं।
दीपावली : पाँच दिनों का त्योहार-दीपावली का त्योहार पाँच दिनों तक मनाया जाता है। त्रयोदशी के पहले दिन धनतेरस मनाई जाती है। इस दिन नए बरतन खरीदना शुभ माना जाता है। अगले दिन छोटी दीपावली मनाई जाती है जिसे नरक चौदस भी कहते हैं। तीसरे दिन दीपावली चौथे दिन गोवर्धन पूजा और पाँचवें दिन भैया-दूज का त्यौहार मनाया जाता है।
दीपावली की शोभा-दीवाली वाले दिन घर और बाजार अच्छी तरह सजे होते हैं। बच्चे और बूढ़े नए-नए वस्त्र पहने बाजार में दिखाई देते हैं। मिठाई, फल और पटाखों की दुकानों पर तिल धरने की जगह नहीं होती। मिट्टी के खिलौनों और तस्वीरों की दुकानों की शोभा ही निराली होती है। सायंकाल होते ही लोग अपने घर की मुंडेरों को दीपों और मोमबत्तियों से जगमगा देते हैं। आतिशबाजी और पटाखों की गूंज बहुत मधुर लगती है।
लक्ष्मी पूजन-लोग रात्रि को लक्ष्मी की पूजा करते हैं। मिठाइयाँ बाँटते हैं। कुछ लोग दुर्गा पूजा भी करते हैं इस रात को घर के दरवाजे बंद नहीं करते हैं तथा लक्ष्मी के स्वागत के लिये सारी रात जागते रहते हैं। लोगों की मान्यता है कि इसी रात्रि को लक्ष्मी जी घरों में आकर आशीर्वाद देती हैं।
कुरीतियाँ-चाँद में भी कलंक है। इसी प्रकार इस त्योहार में भी कुछ बुराइयाँ हैं। इस दिन लोग जुआ खेलकर अपनी किस्मत आजमाते हैं। आतिशबाजी और पटाखों से आग लग जाती है, जिससे धन-जन की हानि होती है।
उपसंहार-इतने पवित्र त्योहार को यदि उचित ढंग से मनाया जाए, तो इसके सौंदर्य में चार चाँद लग जाएँगे। जुए के कलंक को मिटाना, साथ पटाखों पर धन के अपव्यय को रोकना हमारा परम धर्म है।