Hindi Essay, Paragraph on “Pustak ki Aatmakatha”, “पुस्तक की आत्मकथा”, Hindi Anuched, Nibandh for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

पुस्तक की आत्मकथा

Pustak ki Aatmakatha

मैं एक पुस्तक हूँ। मेरा नाम है “लघु कथायें”। मेरा मुद्रांकन दिल्ली में हुआ। उसके बाद मुझे मेरे साथ की अन्य पुस्तकों के साथ पैक कर एक दुकान पर भेज दिया गया। कुछ दिन तक मैं उस पुस्तकों की दुकान में रही फिर, एक महिला आई और उसने मुझे खरीद लिया।

मैं बहुत खुश हुयी। वह मुझे पर्स में डालकर घर ले आयी। उसने मुझे उपहार में अपनी बेटी को दे दिया। उसकी बेटी एक बहुत सुन्दर प्यारी-सी छोटी लड़की थी। उसने मुझे पढ़कर बहुत आनन्द उठाया। उसने अपना नाम मेरे प्रथम पृष्ठ पर लिखा। वह सदैव मुझे साथ रखती। मैं बहुत खुश थी।

एक दिन जब मैं उसके बैग में थी तो एक धूर्त लड़का कक्षा में आया और मुझे चुरा ले गया। उसने ब्लेड से कुरेद कर उसका नाम मिटा दिया। मुझे बहुत दर्द हुआ, गहरे घाव लगे। उस बच्चे को मुझमें कोई रुचि नहीं थी। उसने रास्ते में मुझे एक पुरानी किताबों की दुकान पर बेच दिया।

कुछ दिनों बाद एक लड़का आया और मुझे खरीद कर ले गया। उसने घर ले जाकर मुझ पर सुन्दर भूरे कागज से कवर चढ़ाया। बहुत समय बाद मैं फिर खुश हुयी। उसने अपना नाम मुझ पर लिखा। एक दिन जब वह मुझे पढ़ रहा था तो उसका बड़ा भाई कमरे में आया। उसने मुझे उसके हाथों से खींचा और एक कोने में फेंक दिया। इस सब में मुझे बहुत चोट लगी और मैं फट गयी। मुझे पढ़ने के लिये बड़ा लड़का अपने छोटे भाई पर बहुत नाराज़ हुआ और गुस्से से चला गया।

छोटा लड़का पहले तो बहुत रोया, फिर उसने मुझे उठाया और मेरे पृष्ठों को बहुत सहलाया। मुझे बहुत आराम मिला और मैं पुनः प्रसन्न हो गई. उसने मुझे अपनी दराज में छिपा कर सुरक्षित कर लिया। अक्सर वह निकाल कर पढ़ता है। मुझे उसके पास रहते बहुत दिन हो गये हैं। मैं पुरानी हो गयी हूँ पर उसके यहाँ खुश हूँ। वह मेरी बहुत देखभाल करता है.

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