Hindi Essay, Paragraph on “Mera Bachpan ”, “मेरा बचपन”, Hindi Anuched, Nibandh for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

मेरा बचपन

Mera Bachpan 

बचपन किसी का भी हो-जानवर का या इंसान का बहुत ही मन होता है। चाहे शेर का बच्चा हो, चीते का हो, हाथी का हो, बिल्ली का हो, कुत्ते का हो, सूअर का हो या चिड़िया का हो-बच्चे सभी खूबसूरत होते हैं। मेरा बचपन भी बहुत खूबसूरत था। मैं जब पहली बार स्कूल गया, तो बहुत रोया था और स्कूल की आया मुझे लंच के समय ही मेरे घर छोड़ आई थी। मैं अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र था इसलिए बहुत लाडला था। घर में मुझे कोई डांटता भी नहीं था। मैं जो भी कहता था, मेरे माता-पिता मेरे लिए वही वस्तु लाकर देते थे।

एक  बार मेरे माता-पिता हरिद्वार गए, तो नहाते वक्त मेरा पैर फिसल और मैं गंगा की तेज़ धारा में बह गया तब मेरे पिताजी ने गंगा में कर मुझे बचाया था। फिर जब वहाँ मेरी माँ मनसा देवी के मंदिर दर्शन करने गई तो मैं उन्हें हाथ पकड़कर पर्वत की ऊँची चढाई पर ने गया था। उस समय मेरी उम्र मात्र सात वर्ष थी। फिर वापसी में मेरे पिताजी मुझे अपने कंधे पर बिठाकर लाए थे।

बचपन में मुझे फुटबॉल खेलने का बहुत शौक था। मैं शाम को अपने मित्रों के साथ प्रतिदिन फुटबॉल खेलता था। जब एक दिन मेरी फुटबॉल फट गई तो मेरे पिताजी ने मुझे तुरंत नई फुटबॉल खरीदकर दी थी। फुटबॉल खेलने के अलावा मुझे समाचार-पत्र और मैगज़ीन वगैरा पढ़ने का भी शौक था। फुटबॉल खेलने के बाद मैं पार्क में बनी जॉन्स पब्लिक लाइब्रेरी में सदैव जाता था और अखबार, मैगजीन आदि पढ़ता था।

इसके अतिरिक्त मुझे फिल्म और सीरियल देखने का भी बहुत शौक था। मैं ‘श्रीकृष्ण’ और ‘महाभारत’ सीरियल हमेशा देखता था। हालांकि मेरे पिताजी मुझसे हमेशा पढ़ने के लिए कहते रहते थे, परंतु मैं ये दोनों सीरियल अवश्य देखता था। मैं सप्ताह में एक बार अपने मित्रों के साथ सिनेमा हॉल में सिनेमा देखने भी जाता था।

बचपन में मैं हमेशा सोचता था कि मुझे जीवन में कुछ बनना है। मुझे बड़ा आदमी बनना है। जब किसी काम में मेरा मन नहीं लगता था तो मैं कहानी या कविता लिखने लगता था। कई बार मेरी कहानी और कविताएँ समाचार-पत्रों में भी प्रकाशित होती थीं। मेरे पिताजी को पता था कि मैं कहानी-कविताएँ लिखता हूँ तो वे ही मेरी रचनाओं को समाचार-पत्रों में प्रकाशित करवाते थे।

यह देखकर मुझे बहुत खुशी होती थी कि समाचार-पत्रों में मेरी कहानी एवं कविताएँ प्रकाशित हो रही हैं। इसके बदले में मुझे पैसा भी मिलता था।

निष्कर्षत: मेरा बचपन बहुत ही सुन्दर था और उत्साह व उमंग से भरा हुआ था। मैं बचपन में सदैव बड़ा आदमी बनने के स्वप्न देखता था। ऐसा था मेरा बचपन!

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