Hindi Essay, Paragraph on “Ek Car ki Atmakatha”, “एक कार की आत्मकथा”, Hindi Anuched, Nibandh for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

एक कार की आत्मकथा

मैं एक टाटा इंडिका कार हूँ। मेरा जन्म पूना के एक विशाल कारखाने में हुआ था। बहुत-से अभियंताओं एवं कारीगरों ने मिल कर मुझे बनाया। पर्ने कई कारखानों से बन कर आये थे। मैं लोहे, इस्पात, रबड़, फाइबर ग्लास और कैनवास से बनी हूँ। मैं पेट्रोल से चलती हूँ। जैसे ही मेरा निर्माण पूरा हुआ दूसरी कारों के साथ मुझे शो रूम में भेज दिया गया।

मैं वहाँ कुछ दिन रही। बहुत-से लोग मुझे देखने आये। एक दिन एक व्यक्ति ने मुझे पसन्द किया और खरीदने का निश्चय किया। कीमत का भुगतान करने के बाद वह मुझे अपने घर ले आया। मैं बहुत खुश थी। मेरा मालिक एक युवा अधिकारी था। वह मेरा बहुत ध्यान रखता था। वह प्रतिदिन मुझे धुलवाता एवं साफ कराता था। उसके बाद ही वह मुझे दफ्तर ले जाता था। एक वर्ष के बाद जब वह विदेश जा रहा था तो उसने मुझे बेचने का निर्णय लिया।

मेरा नया मालिक उतना अच्छा नहीं था। वह बहुत लापरवाही से गाड़ी चलाता था। वह एक खतरनाक चालक था। सड़क पर अक्सर मुझे रगड़ लगती। कभी मेरा पेन्ट उतरने लगता कभी खरोंचें पड़ जातीं। परिणामस्वरूप मेरा रंगरूप बिगड़ गया। मैं बूढ़ी और बदसूरत दिखने लगी।

मेरे नये मालिक को केवल गति से मतलब था। वह मेरे बारे में नहीं सोचता था। मेरी देख-रेख भी बहुत दिनों से नहीं हुयी थी, अतः मेरे पुर्जे आवाज़ करने लगे थे। एक दिन जब वह शराब पीकर बहुत तेज़ गाड़ी चला रहा था तो एक दुर्घटना घटी। मेरे मालिक को बहुत चोटें आईं। वह गम्भीर रूप से घायल हो गया। मैं भी बुरी तरह टूट-फूट गयी। मैं अब मरम्मत के योग्य भी नहीं रही थी। मुझे उसके घर के बाहर ला कर रख दिया गया। अब मैं धूप और वर्षा में वहीं खड़ी रहती हूँ.

मुझे जंग लग गया है। मैं अब उदास और बूढ़ी हो गयी हूँ। मैं अब चलने की स्थिति में नहीं रही।

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