Hindi Essay on “Vijaydashmi”, “विजयदशमी – दशहरा”, Hindi Essay for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

विजयदशमी – दशहरा

Vijaydashmi

निबंध नंबर : 01

हमारा इतिहास हमें यह सिखाता है कि जब-जब अधर्म, अन्याय और पाप बढ़ता है, तब भगवान मानव रूप में अवतार लेते हैं। पापियों का वध कर वे धरती का भार कम करते हैं। जब सतयुग में रावण और उसके सहयोगी राक्षसों का आतंक बहुत बढ़ गया, तब भगवान विष्णु ने राम अवतार ले, विजयदशमी के दिन उसका वध किया। 

श्री राम अयोध्या नरेश दशरथ के पुत्र थे। पिता के वचन का पालन करने के लिए वे अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ चौदह वर्ष वनवास काटने चले गए। वहाँ रावण ने सीता का हरण कर लिया। वानर सेना के सहयोग से श्री राम ने लंका पर चढ़ाई कर विजयदशमी के दिन रावण का वध किया।

इस पर्व से दस दिन पूर्व जगह-जगह रामलीला का आयोजन किया जाता है। इसमें श्री राम के जन्म से लेकर रावण वध तक की लीलाओं का मंचन किया जाता है। दशहरे के दिन सायंकाल रावण, मेघनाद और कुंभकरण के विशालकाय पुतलों को आग लगाई जाती है। बड़ी संख्या में लोग रावण दहन देखने के लिए एकत्रित होते हैं।

दशहरे का त्योहार धर्म का अधर्म पर विजय का सूचक है। हमें श्री राम के आदर्शों का पालन करना चाहिए और अपने मन की बुराइयों को पुतले की तरह जला देना चाहिए।

 

निबंध नंबर : 02

विजय दशमी – दशहरा

Vijay Dashmi – Dussehra 

 

जब राम ने रावण का मारा, है उसी विजय की शान दुशहरा।

हुई धर्म की जय अधर्म पर, शक्ति की पहचान दशहरा।”

 

भूमिका- गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है, जब-जब धर्म की हानि होती है तथा अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अवतार लेकर अधर्म का नाश करता हूँ।” भारत में मनाए जाने वाले प्रत्येक त्योहार की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। किसी का सम्बन्ध ऋतुओं से है तो किसी का सम्बन्ध किसी पोराणिक घटना से, तो कई त्योहार अवतारी पुरुषों की पुण्य-स्मृति से सम्बन्धित होते हैं। विजय दशमी का त्योहार भी ऐसा ही त्योहार है जो आज भी असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की एवं अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

पौराणिक सन्दर्भ- विजय दशमी का त्योहार प्रति वर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। इस त्योहार का सम्बन्ध भी पौराणिक घटना से है। माँ दर्गा ने महिषासर नामक दुर्दान्त दैत्य से नौ दिन तक संघष किया तथा अश्विन शुकला दशमी को दसवें दिन महिषासुर का वध किया। तभी से अश्विन शुक्ला दशमी को दुर्गा पूजा की जाती है। बंगाल में दुर्गा पूजा का उत्सव बड़ी श्रद्धा एवं उल्लास से मनाया जाता है। वहाँ विजय दशमी से पहले नवरात्रों में दुर्गा पूजा की जाती है और दसवें दिन माँ दुर्गा की प्रतिमा को नदी या समुद्र में विसर्जित कर दिया जाता है।

राम द्वारा लंका विजय- भगवान राम के बनवास के दिनों में रावण छल से सीता को हर कर ले गया था। राम ने हनुमान और सुग्रीव की सहायता से लंका पर आक्रमण किया। कुम्बकरण, मेघनाथ तथा रावण को मारकर लंका पर विजय पाई। तभी से यह दिन मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त इस दिन का एक और भी महत्त्व है। वर्षा ऋतु के कारण क्षत्रिय राजा तथा व्यापारी अपनी यात्रा स्थगित कर देते थे और दशहरे के समय तक वर्षा के समाप्त हो जाने पर इस दिन को शुभ मानकर यात्राओं का पुनः प्रारम्भ करते थे। इसी दिन क्षत्रीय लोग अपने अस्त्र-शस्त्रों की पूजा किया करते थे।

पर्व का उल्लास- दशहरे के दिन नगरों में गावों में बहुत धूमधाम होती है। रामायण के पात्रों की झाँकियाँ निकाली जाती है। एक खुले मैदान में रावण, मेघनाथ तथा कुम्भकरण ने बड़े-बड़े पुतले बनाए जाते हैं । झाकियाँ नगर से होती हुई उस मैदान तक पहुँचती हैं जहां राम-रावण युद्ध दिखाया जाता है। पटाखे आदि छोड़े जाते हैं। लोग मिठाइयाँ तथा खिलौने लेकर घरों को लौटते हैं। दशहरा हमें अनेक प्रकार की शिक्षा देता है। इससे रामचन्द्र जी के समान पितृ भक्त, लक्ष्मण के समान भ्रातृभाव, सीता के समान पवित्रता और धैर्यवान् तथा हनुमान के समान स्वामीभक्त बनने की प्रेरणा मिलती है।

 

निबंध नंबर : 03

 

दशहरा (विजया दशमी)

Vijaydashmi 

 

दशहरा हिन्दुओं का मुख्य त्योहार है। दशहरा आश्विन माह की दसवीं तिथि को मनाया जाता है। इस माह में ठण्ड का हल्का-सा आगमन हो जाता है। यह महीना बड़ा ही खुशगवार होता है। इस महीने में न तो अधिक गर्मी होती है और न ही अधिक सर्दी होती है।

दशहरे से दस दिन पहले से रामलीलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। दशहरे का महत्त्व रामलीलाओं के कारण सुविख्यात है। भारत के हर शहर एवं गाँव में रामलीला दिखाई जाती है। दिल्ली में तो हर कॉलोनी में रामलीला होती है। परंतु दिल्ली गेट के नजदीक रामलीला ग्राउण्ड की रामलीला सर्वाधिक मशहूर है। वहाँ पर दशहरे वाले दिन प्रधानमंत्री स्वयं रामलीला देखने आते हैं। उनके साथ अन्य मंत्रीगण एवं अधिकारी भी होते हैं। उनके अलावा वहाँ लाखों लोगों की भीड़ होती है।

दशहरे के दिन भव्य मेले का आयोजन होता है। उस दिन रावण, कुम्भकर्ण एवं मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। दरअसल, अधिकांश लोग तो इन्हीं पुतलों को देखने आते हैं। रामलीला के अलावा, दशहरे के दिन आतिशबाजी भी खूब होती है जो दर्शकों का मन मोह लेती है। कई शहरों में तो आतिशबाजी की प्रतियोगिता होती है जिनमें आगरा शहर प्रमुख है। वहाँ पर कई शहरों से आतिशबाज आते हैं और जिसकी आतिशबाजी सबसे अच्छी होती है, उसे ईनाम दिया जाता है। आतिशबाजी दिखाने के बाद रामचंद्र जी रावण का वध करते हैं। फिर बारी-बारी से पुतलों में आग लगाई जाती है। पहले कुंभकर्ण का पुतला जलाया जाता है। उसके बाद मेघनाद के पुतले में आग लगाई जाती है और सबसे बाद में रावण के पुतले में आग लगाई जाती है।

रावण का पुतला सबसे बड़ा होता है। उसके दस सिर होते हैं और उसके दोनों हाथों में तलवार और ढाल होती है। रावण के पुतले को श्रीराम अग्निबाण से जलाते हैं। रावण के पुतले में आग लगने के पश्चात् सभी दर्शक अपने-अपने घरों को चल पड़ते हैं।

हमारे हिन्दू समाज में दशहरे का दिन अत्यंत शुभ दिन माना जाता है। इस दिन मजदूर लोग अपने-अपने काम के यंत्रों की पूजा करते हैं और लड्डू बाँटकर खुशी जाहिर करते हैं।

दशहरे का पर्व असत्य पर सत्य एवं बुराई पर अच्छाई की विजय माना जाता है। इस दिन श्री राम ने बुराई के प्रतीक रावण का वध किया था। अतः हमें भी अपनी बुराइयों को त्यागकर अच्छाइयों को ग्रहण करना चाहिए तभी यह दिन सार्थक सिद्ध होगा।

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