Hindi Essay on “Vasant”, “वसंत”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

वसंत

Vasant

कहते हैं कि पहले-पहल वसन्त के दिनों में ही धरती पर मनुष्य का जन्म हुआ था। भगवान चाहता था कि धरती स्वर्ग से भी सुन्दर हो। मनुष्य उसे वर्ग से भी अधिक प्यार करे।

भगवान ने अपनी सारी सुन्दरता धरती पर बिखेर दी। हरे पत्ते निकल आए, जमा हुआ रस बेल-बूटों में फिर दौडने लगा। जाड़ों में उजड़ी दुनिया फिर आबाद होने लगी।

इससे भी भगवान का जी न भरा। वह धरती को स्वर्ग से भी सुन्दर बनाना चाहता था। इसलिए भगवान खुद फूलों में फूल बनकर मुस्कराया। वह खट डालियों पर कोंपल बनकर लहलहाया। वह खुद खेतों में सरसों बनकर लहराया।

अब भगवान को पूरा सन्तोष हुआ। अब धरती स्वर्ग से भी सुन्दर बन चुकी थी। अब मनुष्य का धरती पर अवतार हुआ। वह मनुष्य के अवतार का सुनहला दिन था। वही पहला वसन्त था। तब से लेकर हर साल वसन्त धरती पर आता है। हर जाड़े में पुराने पत्ते झड़ जाते हैं। वसन्त आकर फिर से पेड़ों पर नये अंकुर उगा देता है। हर जाड़े में पुरानापन उजड़ जाता है। वसन्त आकर फिर से नई दुनिया आबाद कर देता है। पूरे दो महीने तक वसन्त की बहार रहती है।  चैत और बैसाख।

लेकिन वसन्त का असली आरम्भ तो माघ की किसी चांदनी रात को पहले ही हो जाता है। जब चांदनी का चांद नीले आकाश में मुस्करा रहा होता है। तभी वसन्त चुपचाप धरती पर उतर आता है। वह गांव-गांव में घूमता है। वह घर-घर में पहुंचता है। सुबह होती है। लोग मुस्कराते होंठों से वसन्तपंचमी की अगवानी करते हैं।

वसन्त-पंचमी के दिन पहली बार पेड़ों का जमा रस फिर से दौरा करने लगता है। जाड़ों के बाद इस दिन पहली बार हमारी नसों में नया खून दौड़ने लगता है। उस दिन पहली बार खेतों में सरसों का एक पीला फूल खिलता है। उस दिन पहली बार मधुमक्खी अपने छत्ते में से निकलकर फूलों में से रस पान को जाती है। उस दिन पहली बार दिन बढ़ने लगता है और रातें घटने लगती हैं। इस तरह जब दुनिया में नया जीवन पैदा होने लगता है तो मनुष्य उदास क्यों बैठा रहे ? वह भी वसन्त क्यों न मनाए ?  वह भी वसन्त के एक नया कदम क्यों न बढ़ाए?

खेती के काम-काज से किसान निबट चके हैं। बाहर न सरदी है, न गरमी। जाड़ों में सिकुडे-लिपटे रहकर जी ऊब चुका है। अब खुलकर अंगड़ाइय लेने को जी चाहता है। मन गुदगुदाते लगता है।  कुछ हंसने-मुस्कराने को जी करता है। गांव का किसान सबसे आगे बढ़कर वसन्त को गले लगाता है।

घर-घर में वसन्ती पगड़ियां रंगी जाने लगती हैं। घर-घर में वसन्ती हलवे की खुशबू महकने लगती है।  घर-घर में बड़े बालक वसन्ती पतंगें उडा उड़ाकर आकाश में हलचल पैदा कर देते हैं। छोटे-बड़े, बच्चे-बूढ़े सब मिलकर खेतों और अमराइयों में बहार को देखने जाते हैं। मेला भरता है।  जिसे देखो वही खुश है। जिसे देखो वही मुस्करा रहा है। ऐसा लगता है कि आज धरती पर कोई भी उदास नहीं। आज सचमुच आज धरती स्वर्ग बन गई है। आज सचमुच धरती के युवक-युवतियां स्वर्ग के देवी देवता बन गए हैं। भगवान करे, वसन्त हमारे दिलों में बारहों मास बसा रहे।

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