Hindi Essay on “Shramhinta Ke Dushparinam”, “श्रमहीनता के दुष्परिणाम” Complete Paragraph, Speech for Students.

श्रमहीनता के दुष्परिणाम

Shramhinta Ke Dushparinam

महात्मा गाँधी अपना काम अपने हाथ से करने पर बल देते थे। वे प्रत्येक आश्रमवासी से आशा करते थे कि वह अपने शरीर से संबंधित प्रत्येक कार्य, सफाई तक स्वयं करेगा। उनका कहना था कि जो श्रम नहीं करता है, वह पाप करता है और पाप का अन्न खाता है। ऋषि-मुनियों ने कहा है-बिना श्रम किए जो भोजन करता है, वह वस्तुतः चोर है। महात्मा गाँधी का समस्त जीवन-दर्शन श्रम सापेक्ष था। उनका समस्त अर्थशास्त्र यही बताता था कि प्रत्येक उपभोक्ता को उत्पादनकर्ता होना चाहिए। उनकी नीतियों की उपेक्षा करने के परिणाम हम आज भी भोग रहे हैं। न गरीबी कम होने में आती है,न बेरोजगारी पर नियंत्रण हो पा रहा है और न अपराधों की वृद्धि रोकना हो सकती है। हमारे वश की बात हो रही है। दक्षिण कोरिया वासियों ने श्रमदान करके ऐसे श्रेष्ठ भवनों का निर्माण किया है, जिनसे किसी को भी ईर्ष्या हो सकती है। 

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