शहीद भक्त सिंह
Shaheed Bhagat Singh
निबंध नंबर -: 01
भूमिका- पराधीनता की भयानक और काली रात के अन्धकार में भारत का भाग्य डूबा था। अपनी ही धरता, अपने ही आकाश और अपने ही घरों में भारतवासी परतन्त्र थे। विदेशी शासकों की दया और कृपा पर उनका भाग्य निर्भर करता था। भाव हम जिस स्वतन्त्रता का आनन्द ले रहे हैं. इसकी प्राप्ति का श्रेय उन देश भक्तों को है जिन्हा ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। ऐसे अमर शहीदों में सरदार भगत सिंह का नाम अग्रणी है।
जीवन परिचय- सरदार भगत सिंह का परिवार देश भक्तों का परिवार था। आपके पिता स० कृष्ण सिंह कांग्रेस पार्टी से सम्बन्ध रखते थे। आपके चाचा जी “पगडी सम्भाल जटटा” लहर के नेता थे। आपकी दादी बचपन से ही आपको वीर पुरुषों की कहानियां सुनाती थी। स० भगत सिंह का पहला नाम भागा बाला था क्य यह पैदा हुआ उस दिन इनके पिता जी नेपाल से आए थे और दादी ने कहा यह लडका भाग्यशाली है। सचमुच यह बालक सौभाग्यशाली था देश के लिए भी और परिवार के लिए भी। इसका जन्म सन् 1907 में पंजाब प्रान्त के जिला जालन्धर के तहसील बंगा के पास खटकला में स० कृष्ण सिंह के घर हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही पाई। मेट्रिक डी० ए०बी० स्कूल पास से की और बी० ए० नेशनल कॉलेज लहौर से पास की। अनेक पत्रों के सम्पादक बने। एक स्कल अध्यापक भी रहे। नाम बदल-बदल कर कई स्थानों पर घूमते रहे। घर वालों ने आपका विवाह करने पर विचार किया पर आप घर से भाग निकले कि शादी देशभक्ति में वाधा डालेगी।
क्रान्ति की राह पर- जिस समय शहीद भगत सिंह का जन्म हुआ उस समय कांग्रेस में दो पार्टियां बन चुकी थी। नरम दल और गरम दल। नरम दल के लोग नियमों द्वारा और विधान द्वारा देश को स्वतन्त्र करवाना चाहते थे जबकि गरम दल का विचार था कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। अनुनय विनय से आजादी नहीं मिल सकती इसलिए क्रान्ति का पथ अपनाना चाहिए। स० भगत सिंह इसी दल के सदस्य थे।
जालियां वाले बाग में जब 1919 में गोली चली उस समय भगत सिंह की आयु 11 वर्ष की थी। उसने अनेकों लोगों को अपनी आँखों से मरते देखा। भगत सिंह ने उस भूमि की मिट्टी को माथे पर लगाया और कसम खाई कि जब तक देश आज़ाद न करा लूँगा तब तक चैन से न बैलूंगा। सन् 1928 में ‘साइमन कमीशन’ के भारत आने पर भारतीय जनता द्वारा विरोध किया गया। दफा 144 लगी हुई थी पह शहीद होने वाले दफा की परवाह नहीं करते। लाला लाजपत उस जलूस का नेतृत्व कर रहे थे। उन पर लाठियां बरसाई गईं और 17 नवम्बर, 1928 को उनकी मृत्यु हो गई। भगत सिंह ने अपने साथियों की सहायता से अंग्रेज पुलिस अधिकारी सार्डस को गोली से उड़ा कर लाला जी की मौत का बदला दिया। 8 अप्रैल सन् 1929 को भगत सिंह और उनके साथियों ने कार्यक्रम बनाकर केन्द्रीय असैम्बली में बम फेंका। सांर्डस की हत्या और बम केस के अरोप में सन् 1920 को स० भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू को लाहौर की जेल में रात को ही फांसी के तख्ते पर चढ़ा दिया गया। फांसी का फंदा चूमते समय भगत सिंह ने कहा, आत्मा अमर है इसे कोई मार नहीं सकता।
“सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए-कातिल में हैं।”
उपसंहार– आज हम स्वतन्त्र है पर हमें उन देशभक्तों के बलिदान को नहीं भूलना चाहिए। हमारे सामने एक ही लक्ष्य होना चाहिए कि हम सब एक ही देश के वासी है। स० भगत हि का चरित्र आप के नवयुवकों के लिए। प्रेरणा का स्रोत है। स्वाधीनता सग्राम के इतिहास में उस शहीद भगत सिंह का नाम हमेशा अमर रहेगा।”
निबंध नंबर -: 02
भगत सिंह
Bhagat Singh
सरदार भगतसिंह का नाम देश के क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा-स्रोत रहा है। जब उनका जन्म हुआ तो उनके पिता सरदार किशन सिंह देश-प्रेम के कारण सरकारी जेल में कैद थे। उनके चाचा सरदार अजीत सिंह को पहले ही देश-निकाला दे दिया गया था। भगत सिंह का जन्म सितंबर, 1907 में लायलपुर जिले के बंगा (अब पाकिस्तान में) ग्राम में हुआ था। भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा गाँव में हुई, बाद में उन्हें लाहौर पढ़ने भेजा गया था। उनके साथ पढ़ने वालों में सुखदेव भी थे, जिन्हें भगत सिंह के साथ ही बमकाण्ड में फांसी पर लटकाया गया था।
भगत सिंह के एक बड़े भाई थे-जगत सिंह। उनकी मृत्यु 11 वर्ष की अल्पायु में ही हो गई थी। भगत सिंह के माता-पिता उनका विवाह करना चाहते थे, पर देश की सेवा करने हेतु उन्होंने विवाह करने से इंकार कर दिया। फिर कानपुर में भगत सिंह की भेंट बटुकेश्वर दत्त से हुई। उन दिनों कानपुर में बाढ़ आई हुई थी, तो भगत सिंह ने बाढ़ पीढ़ितों की जी-जान से मदद की। यहीं उनकी मुलाकात महान् क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद से हुई।
साइमन कमीशन जब भारत आया तो सबने उसका विरोध किया था। भगत सिंह, सुखदेव और राजगरु ने तो जमकर विरोध किया था। इसमें लाजपतराय पर लाठी चार्ज हआ और वे परलोक सिधार गए। जिससे भगत सिंह का रक्त उबलने लगा और उन्होंने सुखदेव एवं गुरु के साथ मिलकर हत्यारे अंग्रेज सांडर्स को गोलियों से भून डाला। फिर सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली में असेम्ब्ली की दर्शकदीर्घा से बम फेंका। परंतु भगत सिंह और बटुकेश्वर दोनों पकड़े गए। तत्पश्चात् उन्हें लाहौर बम काण्ड, सांडर्स हत्या और असेम्बली बम काण्ड में फाँसी की सजा सुनाई गई। कहा जाता है कि जेल में भगत सिंह ने 115 दिन भूख हड़ताल की जिसमें यतीन्द्रनाथ दास की भूख बर्दाश्त न कर पाने के कारण मृत्यु हो गई थी।
फाँसी की सज़ा होने के बाद भगत सिंह ने कहा था-“राष्ट्र के लिए हम फाँसी के तख्ते पर लटकने को तैयार हैं। हम अपने लहू से स्वतंत्रता के पौधे को सींच रहे हैं ताकि यह सदैव हरा-भरा बना रहे।” कॉलेज जीवन में भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा की लाहौर में स्थापना की थी।
जेल में सरदार भगत सिंह द्वारा लिखी डायरी में टैगोर, वर्ड्सवर्थ, टैनीसन, विक्टर ह्यूगो, कार्ल मार्क्स, लेनिन इत्यादि के विचार संगृहीत हैं। 7 अक्तूबर, 1930 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी की सज़ा के अलावा अन्य सात अभियुक्तों को कालेपानी की सज़ा हुई थी।
अंत में अंग्रेज़ सरकार ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु-तीनों क्रांतिकारियों को-23 मार्च, 1931 को सायं 7 बजे निर्धारित तिथि से एक दिन पहले फाँसी पर लटका दिया। इस समाचार से पूरे भारतवर्ष में अंग्रेजों के प्रति घृणा और आक्रोश फैल गया। महान क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह भारत माता के लिए अपना बलिदान देकर शहीद हो गए। उन्हें भारतवासी सदैव स्मरण करते रहेंगे।