सदाचार का महत्व
Sadachar ka Mahatva
सदाचार जीवन के समस्त गुण, ऐश्वर्य, समृद्धि और वैभव की आधारशिला है। यदि हम सच्चरित्र हैं, तो संसार की समस्त विभूतियाँ, बल, बुद्धि, वैभव हमारे चरणों में झुकती हैं और यदि हमारा जीवन दुश्चरित्रता और दुराचारों का घर है, तो हम समाज में निंदा और तिरस्कार के पात्र बन जाते हैं। अपने बल, बुद्धि और वैभव को हम अपने ही हाथों से खो बैठते हैं। चरित्रहीन व्यक्ति स्वयं अपने को, अपने परिवार को और अपने समाज को, जिसका कि वह सदस्य है, गड्ढे में गिरा देता है। दुष्चरित्र मनुष्य अपने समाज के लिए अभिशाप सिद्ध होता है। जबकि सच्चरित्र वरदान। दुष्चरित्र अपने कुकर्मों और कुकृत्यों से नारकीय जीवन की सृष्टि करता है, जबकि सच्चरित्र के लिए स्वर्ग के द्वार सदैव खुले रहते हैं। दुष्चरित्र का जीवन अंधकारपूर्ण होता है, जबकि सच्चरित्र ज्ञान के प्रकाश के उज्ज्वल वातावरण में विचरण करता है। सच्चरित्र अपने शुभ कर्मों से इसी भूमि पर स्वर्ग का निर्माण करता है। परन्तु चरित्रहीन, दुष्टात्मा व्यक्ति अपने कुकृत्यों से नारकीय जीवन की सृष्टि करता है। चरित्रहीन व्यक्ति अपने कुकृत्यों से इस पवित्र धरा को नरक बना देता है। सच्चरित्र बनने के लिए मनुष्य को सुशिक्षा, सत्संगति और स्वानुभव की आवश्यकता होती है। जैसे की अशिक्षित व्यक्ति भी संगति और अनुभवों के आधार पर अच्छे चरित्र के देखे गए हैं, परन्तु बुद्धि का परिष्कार और विकास बिना शिक्षा के नहीं होता। मनुष्य को अच्छे और बुरे की पहचान ज्ञान और शिक्षा के द्वारा ही होती है।
शिक्षा से मनुष्य की बुद्धि के कपाट खुल जाते हैं। अत: सच्चरित्र बनने के लिए अच्छी शिक्षा की बड़ी आवश्यकता है। अच्छी शिक्षा के साथ-साथ मनुष्य को सत्संगति भी प्राप्त होनी चाहिए। देखा गया है कि शिक्षित व्यक्ति भी दुराचारी होते हैं। इसका केवल एक ही कारण है कि उन्हें अच्छी संगति प्राप्त नहीं हो सकी। बुरी संगति के प्रभाव ने उनकी शिक्षा-दीक्षा के प्रभाव को भी समाप्त कर दिया। क्योंकि दोष और गुण संसर्ग से ही उत्पन्न होते हैं। मनुष्य जिस प्रकार के व्यक्तियों के बीच बैठेगा-उठेगा, उनकी विचारधारा, व्यसनों, वासनाओं और अच्छे-बुरे कर्मों का प्रभाव उस पर अवश्य पड़ेगा। अतः सच्चरित्र बनने के लिए शिक्षा से भी अधिक आवश्यकता अच्छी संगति की है।
सत्संगति एक खराब मनुष्य को भी उत्तम बना देती है। पारस पत्थर का स्पर्श करते ही लोहा भी सोना बन जाता है। उसी प्रकार दुष्ट मनुष्य भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं। स्वानुभव भी मनुष्य को सच्चरित्र बनने में बड़े सहायक सिद्ध होते हैं। जब बच्चे की उंगली एक बार आग से जल जाती है, तब वह दुबारा आग पर उंगली नहीं रखता। झूठ बोलने या कोई दुष्कर्म करने पर जब विद्यार्थी पर अध्यापक या माता-पिता के हाथ पड़ जाते हैं तब वह भविष्य में वैसा साहस नहीं करता। उसे अनुभव होता है कि ऐसा करने से उसे यह फल मिला। इस प्रकार व्यक्तिगत अनुभव भी मनुष्य को सच्चरित्रता की ओर ले जाते हैं।
सच्चरित्र से मनुष्य को अनेक लाभ होते हैं, क्योंकि सच्चरित्रता किसी विशेष गुण का बोध शब्द नहीं है। अनेक गुण जैसे-सत्य उदारता, विशिष्टता, विनम्रता, सुशीलता, सहानुभूतिपरता आदि जिस व्यक्ति में होते हैं, वह व्यक्ति सच्चरित्र कहलाता है। उस व्यक्ति को समाज इज्जत देता है। उसे आदर और सम्मान का स्थान दिया जाता है। सच्चरित्र से मनुष्य अपनी आत्मा का संस्कार कर लेता है। सच्चरित्र से मनुष्य सुख और संतोष प्राप्त कर लेता है। वह शांतिमय जीवन व्यतीत करता है। वह अपने आदर्श चरित्र से समाज की बुराई को दूर कर देता है। उसके अदम्य साहस के सामने कोई भी शत्रु नहीं ठहर सकता। एक कहावत है कि ‘अगर मनुष्य का धन नष्ट हो गया तो उसका कुछ भी नष्ट नहीं हुआ और यदि उसका चरित्र नष्ट हो गया तो उसका सब कुछ नष्ट हो गया।‘
चरित्रवान बनना प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है। चरित्र से मनुष्य समाज में प्रतिष्ठा पाता है। अपनी आत्मा का कल्याण करता हुआ वह व्यक्ति देश और समाज का भी कल्याण करता है। सच्चरित्र सुख और समृद्धि का सोपान है। सच्चरित्र के अभाव में आज देश के समक्ष अनेक समस्याएँ हैं। सबसे बड़ी एवं महत्वपूर्ण समस्या है, अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करना। जो देशवासी चरित्रहीन हैं वे नि:संदेह देश की रक्षा या देश का अभ्युत्थान नहीं कर सकते। अतः हमारा कर्त्तव्य है कि सभी देशवासी सच्चरित्र बनें, विशेष रूप से विद्यार्थियों को तो सच्चरित्र होना ही चाहिए क्योंकि देश के भावी कर्णधार वे ही हैं। उन्हें ही देश का भार अपने कन्धों पर रखना है, अतः प्राण-प्रण से अपने चरित्र को सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए।