Hindi Essay on “Rashtrapita Mahatma Gandhi ”, “राष्ट्रपिता – महात्मा गाँधी”, for Class 5, 6, 7, 8, 9 and Class 10 Students, Board Examinations.

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी

Rashtrapita Mahatma Gandhi 

निबंध नंबर :- 01

हमारे भारत देश में अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया। परन्तु ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि से सम्मानित केवल महात्मा गाँधी थे। उन्हें ‘बापू’ भी कहा गया। वह बीसवीं सदी के भारत के महान पुरुष कहलाए।

महात्मा गाँधी ने अपना पूरा जीवन भारत देश की सेवा में लगा दिया। हमारा भारत अंग्रेजों के अधीन था तथा गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। वर्षों से पराधीन इस देश की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गाँधी ने बहुत योगदान दिया।

महात्मा गाँधी जी का जन्म 2 अक्तूबर, 1868 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम कर्मचन्द गाँधी तथा माता का नाम पुतली बाई था। गाँधी जी का पूरा नाम मोहनदास कर्मचन्द गाँधी था। गाँधी जी की हाई स्कूल तक की पढ़ाई राजकोट में हुई तथा वकालत की पढ़ाई करने के लिए वे इंग्लैण्ड चले गए। वहाँ से वे भारत में बैरिस्टर बनकर लौटे। इनका विवाह कस्तूरबा के साथ हुआ था।

महात्मा गाँधी जी एक मुकदमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए। उन दिनों अफ्रीका में काले-गोरे का बहुत भेदभाव चल रहा था। वहाँ भारतीयों का भी अपमान किया जाता था। गाँधी जी यह सब कुछ सहन न कर सके और उन्होंने वहाँ सत्याग्रह आंदोलन किया जिसमें इन्हें सफलता मिली तथा अफ्रीका में भारतीयों को सम्मान मिला।

जब गाँधी जी वापस भारत में आए तब भारत पर ब्रिटिश सरकार का शासन था। वे भारतीयों पर अत्याचार कर रहे थे। यह सब देखकर गाँधी जी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े तथा उनके नेतृत्व में सम्पूर्ण देश में क्रान्ति की। लहर दौड़ गई। सन् 1942 में गाँधी जी के नेतृत्व में भारत छोड़ों आंदोलन प्रारंभ हुआ। इससे पहले 1929 में कांग्रेस अधिवेशन में भारत की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी गई थी। आखिर में इन आंदोलन तथा राजनीतिक गतिविधियों के बाद भारत 15 अगस्त, 1947 को आजाद हो गया। यह सब गाँधी जी तथा अन्य भारतीयों के बलिदान का परिणाम था।

30 जनवरी, 1948 के दिन नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति ने गोली मारकर इनकी हत्या कर दी।

गाँधी जी अंहिसा में विश्वास रखते थे तथा सत्य के पुजारी थे। वह जाति-पाति तथा छुआ-छूत के भेद को मिटाना चाहते थे तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता चाहते थे। वह सच्चे देशभक्त थे तथा भारत माता के सच्चे सपूत  थे।

निबंध नंबर :- 02

 

राष्ट्रपिता – महात्मा गांधी

Rashtra Pita Mahatma Gandhi

 

भूमिका- किसी भी देश की संस्कृति और इतिहास का गौरव वे महान व्यक्ति होते हैं जो सम्पूर्ण विश्व को अपने सिद्धान्त और विचारों से सुख और शान्ति, समृद्धि और उन्नति की ओर अग्रसर करते हैं। ऐसे व्यक्ति केवल अपने लिए नहीं अपितु पूरी मानवता के लिए जीते हैं। उनका जीवन दूसरों के लिए आदर्श होता है। भारत में ऐसे बहुत से महामानवों ने जन्म लिया है। राम, कृष्ण, गुरु नानक, स्वामी दयानन्द आदि महापुरुषों की गणनाओं से ही महामानवों की जा सकती है। महात्मा गान्धी धार्मिक और राजनीतिक महात्मा थे। इनका शरीर दुर्बल का, मन सबल था आर कमर पर लगोटी और ऊपर एक चादर ओढे रहते थे। मुट्ठी भर हड्डियों के इस ढांचे में विशाल बुद्धि का सागर समाया हुआ था।

जीवन परिचय- इनका जन्म 2 अक्तूबर सन् 1869 ई० में काठियावाड़ की राजकोट रियासत में पोरबन्दर में हुआ। इनके पिता का नाम कर्मचन्द था जो राजकोट रियासत के दीवान थे और माता का पुतलीबाई था जो धार्मिक प्रवृति की घरेलू महिला थी। माता की धार्मिक प्रवृति का प्रभाव इन पर आयुभर रहा। इनकी आरम्भिक शिक्षा राजकोट में हई। विद्यार्थी जीवन की कुछ घटनाएं प्रसिद्ध है। अध्यापक के कहने पर भी नकल न मारना, बुरे मित्र की संगति में आने पर पिता के सामने अपने दोषों को स्वीकार करना। इनका विवाह तेरह वर्ष की आयु में ही कस्तरबा के साथ हो गया था। मैट्रिक पास करने के पश्चात बैरिस्टरी पास करने के लिए विलायत गए। वहाँ जाने से पहले माता से प्रतिज्ञा भी की कि मैं शराब, मांस और स्त्री से दूर रहूँगा। सन् 1891 में बैरिस्टरी पास करके भारत लौटे तथा बम्बई में वकालत शुरू की। सन् 1893 में आप मुकदमे की पैरवी के लिए दक्षिणी अफ्रीका गए। मुकदमा तो आप जीत गए लेकिन भारतीयों पर होने वाले अत्याचारों ने आपको बड़ा कष्ट पहुँचाया। वहाँ पर आपने सत्या ग्रह चलाया। गोरों ने आपको मारा। आपकी पगड़ी भी उछाली गई पर आप अपने इरादे से टस से मस न हए।

स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेना- लोकमान्य तिलक ने यह घोषणा की थी कि “स्वतन्त्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।” महात्मा गांधी ने भी इसी विचारधारा को अपनाकर काम करना शुरू कर दिया। लोकमान्य तिलक और महात्मा गांधी का दृष्टिकोण अलग-अलग था लेकिन लक्ष्य एक ही था। सत्य और अहिंसा के बल पर महात्मा गांधी ने सवैधानिक रूप से अंग्रेजों से स्वतन्त्रता की मांग की। प्रथम विश्वव्यापी युद्ध के पश्चात अंग्रेजों ने स्वतन्त्रता देने की प्रतिज्ञा की। युद्ध समाप्ति के बाद अग्रेज़ वचन भूल गए। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बदले भारतीयों को ‘रौलट एक्ट’ और जलियावाला बाग का गोली काण्ड सहन करना पड़ा। सन् 1920 असहयोग आन्दोलन आरम्भ हुआ। फिर नमक सत्याग्रह चला। 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया। सभी प्रमुख राजनीतिक नेता जेलों में बन्द कर दिए गए।

असाम्प्रदायिक- महात्मा गांधी असाम्प्रदायिक थे। गांधी जी ने मुस्लिम लीग के नेता को अपने साथ मिलाने का प्रयत्न किया। लेकिन जिन्नाह को अंग्रेज़ उकसा रहे थे। वह टस से मस न हुआ। भारत वर्ष में हिन्दू और मुस्लमान एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए। इधर अग्रेज़ भारत छोड़ने के लिए तैयार थे। अन्त में न चाहते हुए भी अग्रेजों ने 15 अगस्त 1947 को भारत के दो टुकड़े कर दिए। भारत और पाकिस्तान। खून की होली फिर भी बन्द न हुई। महात्मा गांधी सब प्रान्तों में घूमते रहे। इस साम्प्रदायिक ज्वाला को शान्तकरते हुए अन्त में दिल्ली पहुंचे।

उपसंहार- 30 जनवरी, 1948 को जब गांधी जी विरला मन्दिर से प्रार्थना सभा की ओर बढ़ रहे थे तो एक पागल नवयुवक ने उन्हें तीन गोलियों से छलनी कर दिया। बापू जी राम-राम कहते हुए स्वर्ग सिधार गए। समाज सुधारक ऐसे ही मरा करते हैं। ईसा, सुकरात, अब्राहिम लिंकन ने भी ऐसे ही मृत्यु को गले लगाया था। महात्मा गांधी विचारक तथा समाज सुधारक थे। उपदेश देने की अपेक्षा वे स्वयं उस मार्ग पर चलने पर विश्वास रखते थे। ईश्वर के प्रति उनकी अटूट आस्था थी और बिना प्रार्थना किए वे रात्रि को सोते नहीं थे।

 

निबंध नंबर :- 03

महात्मा गाँधी

Mahatma Gandhi

भारतवासी महात्मा गाँधी को ‘राष्ट्रपिता’ या ‘बापू’ कहकर पुकारते हैं। वह अहिंसा के अवतार, सत्य के देवता, अछूतों के प्राणाधार एवं राष्ट्र के पिता थे। इस महामानव ने ही दीन-दुर्बल, उत्पीडित भारतमाता को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त कराया था।

महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को काठियावाड के अंतर्गत पोरबंदर नामक स्थान पर एक संभ्रान्त परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम मोहनचंद करमचंद गाँधी है। इनके पिता करमचंद गाँधी राजकोट में दीवान थे। इनकी माता पुतलीबाई थी जो एक धर्मपरायण और आदर्श महिला थीं। गाँधीजी का विवाह कस्तुरबा के साथ हआ था। वह शिक्षित नहीं थीं, फिर भी उन्होंने आजीवन गाँधीजी को सहयोग दिया था।

गाँधीजी की प्रारंभिक शिक्षा राजकोट में हुई थी। मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके 1888 में वह कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैण्ड चले गए। 1891 में जब वह बैरिस्टर होकर भारत लौटे, तो उनकी माँ का देहांत हो गया। गाँधीजी ने मुंबई से वकालत आरंभ की। वह गरीबों के मुकद्दमे मुफ्त में लड़ा करते थे। 1893 में उन्हें एक गुजराती व्यापारी के मुकद्दमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ उन्हें अनेकों कष्टों को सामना करना पड़ा। अदालत में उन्हें पगड़ी उतारने के लिए कहा गया

और रेलगाड़ी के प्रथम क्लास के डिब्बे से उन्हें धक्का मारकर उतार दिया गया। लेकिन वह टस से मस नहीं हुए और अंत में तत्कालीन प्रधानमंत्री जनरल स्मट्स को झुकना पड़ा। इस तरह गाँधीजी के अथक प्रयासों से वहाँ भारतीयों को सम्मानपूर्ण दर्जा प्राप्त हुआ। 20 वर्ष अफ्रीका में रहकर भारत लौटने पर गाँधीजी का भव्य स्वागत किया गया।

भारत लौटने के बाद गाँधीजी ने पराधीन भारतीयों की दुर्दशा देखी और उन्होंने पराधीन भारत की बेड़ियाँ काटने का निश्चय किया। उन्होंने अहमदाबाद के निकट साबरमती के तट पर एक आश्रम की स्थापना की।

यहीं रहकर गाँधीजी ने करोड़ों भारतीयों का मार्गदर्शन किया। 1929 में गाँधीजी ने ‘साइमन कमीशन’ का बहिष्कार किया। 1930 में दाण्डी में नमक सत्याग्रह करके नमक कानून को तोड़ा। 5 मार्च, 1931 को गाँधी-इरविन समझौता हुआ और अंग्रेजों को ‘नमक कानून’ वापस लेना पड़ा। सन् 1942 में गाँधीजी ने अंग्रेज़ो भारत छोड़ो’ का नारा लगाया। इसके परिणामस्वरूप 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। और इस प्रकार भारत स्वतंत्र हो गया।

30 जनवरी, 1948 को एक भ्रान्त युवक नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर गाँधीजी की हत्या कर दी। गाँधीजी ने हरिजनों के उत्थान के लिए ‘हरिजन पत्रिका’ का संपादन किया था। सादा जीवन, उच्च विचार’ उनका मूल मंत्र था। सत्य और अहिंसा उनके दिव्य अस्त्र थे। ‘सत्याग्रह उनका संबल था और ‘रामराज्य’ उनका सपना था. जिसे हम उनक। आदर्शों पर चलकर ही पूरा कर सकते हैं।

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