Hindi Essay on “Pustak mele me adhuri kharidari”, “पुस्तक मेले में अधूरी खरीददारी”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

पुस्तक मेले में अधूरी खरीददारी

Pustak mele me adhuri kharidari

देश की राजधानी दिल्ली में प्रायः कोई न कोई मेला अथवा सांस्कृतिक गतिविधि संचालित होती ही रहती है। पस्तक प्रेमी होने के नाते मुझे भी यहाँ लगने वाले पुस्तक-मेले का इंतज़ार रहता है। ऐसी जगह आकर तमाम तरह की पस्तकें एक ही जगह मिल जाती हैं। यद्यपि दिल्ली के ज्यादातर निवासियों के लिए ऐसे आयोजन मात्र मौजमस्ती के लिए ही होते हैं किंतु पुस्तक मेले में माहौल कुछ-कुछ परिष्कृत अभिरुचियों से परिपूर्ण होता है। इसलिए मैं भी वहाँ पहुँच गई। पर ‘खोदा पहाड़, निकली चुहिया’ की कहावत अक्षरशः चरितार्थ हो रही थी। लोगों का हुजूम तो उमड़ा हुआ था ही, ज्यादातर स्टॉल्स पर पुस्तकें कम और लेखन-सामग्री ही अधिक प्रदर्शित थी। पुस्तकें जहाँ थीं भी तो एक तो वे विदेशी भाषा (अंग्रेजी) में थीं, दूसरी तरफ विज्ञान, सूचना प्रौद्योगिकी, दर्शन जैसे विषय मेरी रुचि के नहीं थे। फिर उनकी कीमतों के बारे में सुनकर तो सिर ही चकरा गया। कई स्टॉल्स खंगालने के उपरांत मुझे हिंदी साहित्य का स्पॅल मिला तो सही, पर उनके कागज की गुणवत्ता और मुद्रण शैली, अंग्रेजी भाषा पुस्तकों के समक्ष बेहद निराश करने वाली थी। उनकी कीमतें भी मुझे मेरे बजट की सीमितता का दुखदायी अहसास करवा रही थीं। सारा मेला घूमकर भी मैं अपनी पसंद की कुछ विशेष व स्तरीय पुस्तकें न पा सकी। अंततः पुस्तक मेले से अधूरी खरीददारी के साथ आहत-व्यथित मन लिए मैं वापस घर लौट आई। 

Leave a Reply