पराधीन सपनेहु सुख नाहीं
Pradhin Sapnehu Sukh Nahi
निबंध नंबर :-01
गोस्वामी तुलसीदास जी की यह उक्ति कि ‘पराधीन सपनेह सुख नाहीं राम चरितमानस में स्वतन्त्रता की महत्ता दर्शाने के लिए कही है। गरीबी का स्वतंत्र जीवन अमारा पा परतन्त्र जीवन की अपेक्षा बेहतर है। इसीलिए तो कहते हैं कि पक्षी को तो सोने के पिजर का निवास भी पसन्द नहीं क्योंकि वहां रहते उसकी स्वतंत्रता नष्ट होती है। परतंत्र व्याक्त कोई भी कार्य अपनी इच्छानुसार नहीं कर सकता। यहां तक कि वह अपनी इच्छानुसार सोच भी नहीं सकता। उसका जीवन एक अभिशाप बन कर रह जाता है। पराधी मनुष्य के जीवन को नरक के समान बल्कि नरक से भी बदतर बना देती है। भारत लगभग नौ सौ साल तक पराधीन रहा है। इसी अवधि में उसकी कई उद्योग धंधों और कलाओं का विनाश हुआ। हमारी शिक्षा, संस्कृति और सभ्यता को मिटा देने तक की कोशिश की। गई। यह अलग बात है कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी के अनुसार हम अपनी संस्कृति और सभ्यता को कुछ हद तक बचा पाने में सफल हुए हैं। किन्तु शिक्षा के क्षेत्र में शासकों ने अपनी शिक्षा पद्धति लागू कर इसे अपंग बना दिया। अंग्रेज़ों ने जितने और जिस प्रकार अत्याचार ढाये, उसकी याद करके ही रौंगटे खड़े होते हैं। यह सब पराधीनता के कारण ही हुआ। सच पूछो तो पराधीनता का जीवन पवत् होता है। वह दूसरों पर आश्रित होता है। हमारे शास्त्रों में इसीलिए तो लिखा है कि मनुष्य को अपनी इच्छाओं अथवा मन का गुलाम नहीं बनना चाहिए अपितु उसे अपने वश में रखना चाहिए। किसी ने सच कहा है-
कोई कहीं है चाहता परतन्त्र जीवन भी भला।
है कौन चाहे पहिनना दासता की श्रृंखला ॥
कौन है जो स्वतंत्रता के लोहे को छोड़ कर पराधीनता के स्वर्ण को पाना चाहेगा। स्वतंत्रता की नमक-रोटी को छोड़कर पराधीनता की दूध-मलाई कौन खाना चाहेगा कोई नहीं चाहेगा क्योंकि हर कोई जानता है कि मानव का सच्चा आभूषण स्वतंत्रता है। स्वतंत्र मनुष्य अपनी इच्छानुसार सोच सकता है, कार्य कर सकता है। वह सदा आनन्द से भरा रहता है। दु:खों, कष्टों, अभावों को वह हँसते-हँसते झेल जाता है। उसे उन्नति और विकास के पूर्ण अवसर प्राप्त रहते हैं। इसी कारण गोस्वामी तुलसीदास जी ने स्वतंत्रता के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा है-
तात विचारि देखु मन माहीं।
पराधीन सपनेहु सुख नाहीं ॥
निबंध नंबर :-02
पराधीनता में सुख नहीं
Paradhinta me Sukh Nahi
यदि पक्षी को पिंजरे में बंद रखकर उसे सभी सुख-सुविधाएँ दी जाएँ, तब भी वह चहचहाना भूल जाता है। खुले आकाश में उन्मुक्त होकर उडान भरने में उसे जो सुख प्राप्त होता है, वह सुख सोने के पिंजरे में बैठकर दाना चुगने में नहीं है। यही दशा पेड़-पौधे व मनुष्य को भा है। यदि मनुष्य स्वतंत्र न हो, उस पर अनेक बंधन लगा दिए जाएँ तो वह सख-सुविधा पाकर प्रसन्न नहीं रह सकता। कोई भी देश यदि स्वतंत्र नहीं है, तो वहाँ के निवासी सुखी व खुशहाल कैसे हो सकते हैं। सभी बंधनमुक्त, स्वतंत्र जीवन जीना चाहते हैं, क्योंकि स्वाधीनता की सूखी खाने में जो सुख मिलता है, वह पराधीनता के पकवान व ऐशो-आराम में नहीं प्राप्त हो कता, इसीलिए किसी ने ठीक ही कहा है
“पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।”