पिंडोरी महन्ता में वैशाखी का मेला
Pindori Mahanta me Baisakhi ka Mela
पंजाबियों के लिए वैशाखी का मेला एक विशेष महत्व रखता है। यह मेला गेहूं की पकती हुई फसल से संबंधित है। पंजाब के तीन चौथा।ई लोग किसान हैं। किसानों की रोजी रोटी खेती- बाटी पर ही निर्भर है। जब वैशाख मास (अप्रैल) में किसान खेतों में पकती-लहलहाती तथा हवा से क्रीड़ाएं करती अपनी फसल को देखता है तो उसे अपनी मेहनत साकार होती दिखाई देती है। वह गेहूं की फसल को बढ़ती-फूलती और पकती देखता है तो एक अद्भुत आंतरिक प्रसन्नता के साथ झूम उठता है। उसकी यह खुशी हमें स्थान-स्थान पर लगते वैशाखी के मेलों में नाचती-कूदती दिखाई देती है। सिखों के लिए वैशाखी का दिन विशेषरूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन सिखों के दशम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में “खालसा-पंथ” की स्थापना की थी।
पंजाब में वैशाखी का मेला जहां-तहां लगता है। लगभग प्रत्येक गांव तथा शहर के लोग अपने निकटवर्ती लगे वैशाखी के मेले में सम्मिलित होते हैं। गुरुदासपुर के निकट एक गांव, पिंडोरी महन्ता, में एक प्राचीन डेरे (आश्रम) पर बड़ी धूमधाम से वैशाखी का मेला मनाया जाता है। यह स्थान गुरुदासपुर से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर है तथा इसके अत्यंत निकट ही व्यास (विपाशा) नदी बहती है। यहां वैशाखी का मेला कब तथा कैसे आरंभ हुआ। इसकी एक पुरातन कथा। है। मुगल सम्राट जहांगीर (शासनकाल 1607 से 1627 तक ) एक बार घूमते हुए। यहां पर आ पहुंचा। जब वह काहनूवाल पहुंचा तो वहां पर उन्होंने भगवान नाम के एक वैरागी फकीर की बड़ी महिमा सनीबादशाह ने उन्हें मिलना चाहा परन्तु वैरागी जी को जब यह बात ज्ञात हुई तो वह धरती के अन्दर ही अन्दर एक सुरंग बनाकर वहां लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर पिंडोरी पहुंच गए।
उनके पीछे-पीछे जहांगीर भी पीछा करते हुए। पिंडोरी जा पहुंचेभगवान जी पुनः एक और सुरंग खोदते हुए। धमटाल जा पहुंचेयह सुरंगें तत्काल कैसे बन गई ? इसी प्रश्न ने भगवान जी की महिमा को और अधिक व्यापक बना दिया। कहा जाता है कि यह सुरंगें उनकी दैवी-शक्ति के प्रताप से ही अस्तित्व में आई थीं। आज भी काहनूवाला तथा पिंडोरी में कुछ गुफाओं और सुरंगों के आकार की जगहें दिखाई देती हैं। जब जहांगीर अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुआ। तो वह निराश होकर लौट गया। ; परन्तु भगवान जी के दर्शनों की अभिलाषा उसके हृदय में और अधिक प्रबल हो गई। कालांतर में जहांगीर फिर उस क्षेत्र में गया। पर वह इस बार भी भगवान जी के दर्शन नहीं कर सका। बादशाह के आदेश पर सिपाहियों ने भगवान जी के एक शिष्य नारायण को अपने कब्जे में कर लिया। उसे डराया- धमकाया गया। पर नारायण ने उन्हें भगवान जी के विषय में कुछ नहीं बताया। जहांगीर उसे अपने साथ लाहौर ले गया। वहां पहुंचने पर उसके सामने ज़हर के सात प्याले रख दिए गए तथा उसे आदेश दिया गया। कि या तो वह अपने गुरु भगवान् जी का पता बता दे अथवा ज़हर के सातों प्याले पी लेनारायण ने मुस्कुराते हुए। बारी-बारी से सातों विष-प्याले पी लिए पर उस पर विष का कोई प्रभाव न पड़ा। इस अचरज भरे करिश्मे ने जहांगीर को इतना प्रभावित किया। उसने भगवान जी के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करने हेतु पिंडोरी में एक सुन्दर मंदिर बनवाया तथा महंतों को 20 हजार रुपये की जागीर दान में दी।
इस मंदिर वाली जगह पर ही प्रत्येक वर्ष प्रतिपदा से तृतीया (वैशाख मास) तक वैशाखी का भारी मेला लगता है। मेले में निकटवर्ती गांवों से हजारों की संख्या में लोग आते हैं। लोक नृत्य तथा लोक गीत इस मेले के विशेष आकर्षण होते हैं। खेती- बाड़ी से संबंधित तथा ग्रामीण घरों में काम आने वाली वस्तुओं की बिक्री बहुत होती है। जिनमें छाज, छिकुका, दरांती, तंगली, मिट्टी के बर्तन आदि शामिल हैं।