Hindi Essay on “Parvatiya Sthan ki Yatra”, “पर्वतीय स्थान की यात्रा”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

पर्वतीय स्थान की यात्रा

Parvatiya Sthan ki Yatra

आश्विन महीने के नवरात्रों में पंजाब के अधिकतर लोग देवी दुर्गा माता के दरबार में हाजिरी लगवाने और माथा टेकने जाते हैं। पहले हम हिमाचल प्रदेश में स्थित माता चिंतपूर्णी और माता ज्वाला जी के मंदिरों में माथा टेकने आया करते थे। इस बार हमारे मुहल्ले वासियों ने मिल कर जम्मू क्षेत्र में स्थित माता वैष्णों देवी के दर्शनों को जाने का निर्णय किया। हमने एक बस का प्रबन्ध किया था, जिसमें लगभग पचास के करीब बच्चे-बूढ़े और स्त्री-पुरुष सवार होकर जम्मू के लिए रवाना हुए। सभी परिवारों ने अपने साथ भोजन आदि सामग्री भी ले ली थी। पहले हमारी बस पठानकोट पहुँची, वहां कुछ। रुकने के बाद हम ने जम्मू क्षेत्र में प्रवेश किया। हमारी बस टेढ़े-मेढ़े पहाड़ी रास्ते को पार करती हुई जम्मू तवी पहुँच गयी। सारे रास्ते में दोनों तरफ अद्भुत प्राकृतिक दृश्य देखने को मिले जिन्हें देख कर हमारा मन प्रसन्न हो उठा। बस में सवार सभी यात्री माता की भेटें गा रहे थे और बीच में माँ शेरा वाली का जयकारा भी बुला रहे थे। लगभग 6 बजे। हम लोग कटरा पहुँच गये। वहाँ एक धर्मशाला में हम ने अपना सामान रखा और विश्राम किया और वैष्णों देवी जाने के लिए टिकटें प्राप्त कीं। दूसरे दिन सुबह सवेरे हम सभी। माता की जय पुकारते हुए माता के दरबार की ओर चल पड़े। कटरा से भक्तों को पैदल ही चलना पड़ता है। कटरे से माता के दरबार तक जाने के दो मार्ग हैं। एक सीढ़ियों वाला। मार्ग तथा दूसरा साधारण। हमने साधारण मार्ग को चुना। इस मार्ग पर कुछ लोग खच्चरों पर सवार होकर भी यात्रा कर रहे थे। यहाँ से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर माता का मंदिर है। मार्ग में हमने बाण गंगा में स्नान किया। पानी बर्फ-सा ठण्डा था फिर भी सभी यात्री बड़ी श्रद्धा से स्नान कर रहे थे। कहते हैं यहाँ माता वैष्णो देवी ने हनुमान जी की प्यास बुझाने के लिए बाण चलाकर गंगा उत्पन्न की थी। यात्रियों को बाण गंगा में नहाना जरूरी माना जाता है अन्यथा कहते हैं कि माता के दरबार की यात्रा सफल नहीं होती। चढाई बिलकुल सीधी थी। चढ़ाई चढ़ते हुए हमारी सांस फूल रही थी परन्तु सभी यात्री माता की भेंटें गाते हुए और माता की जय जयकार करते हुए बड़े उत्साह से आगे बढ़ रहे थे। सारे रास्ते में बिजली के बल्ब लगे हुए थे और जगह जगह पर चाय की दुकानें और पीने के पानी का प्रबन्ध किया गया था। कुछ ही देर में हम आदक्वारी नामक स्थान पर पहुँच गये। मंदिर के निकट पहुँच कर हम दर्शन करने वाले भक्तों की लाइन में खड़े हो गये। अपनी बारी आने पर हम ने माँ के दर्शन किये। श्रद्धा पूर्वक माथा टेका और मन्दिर से बाहर आ गए। आजकल मन्दिर का सारा प्रबन्ध जम्मू-कश्मीर की सरकार एवं एक ट्रस्ट की देख-रेख में होता है। सभी प्रबन्ध बहुत अच्छे एवं सराहना के योग्य थे। घर लौटने तक हम सभी माता के दर्शनों के प्रभाव को अनुभव करते रहे।

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