पर्वतीय स्थान की यात्रा
Parvatiya Sthan ki Yatra
निबंध नंबर :- 01
मैदानी इलाकों की गरमी प्राय: यहाँ के वासियों को दूर पर्वतों की गोद में जाने के लिए बाध्य करती है। वैसे कुछ लोग तो सरदी की बर्फ में भी पहाडी चोटियों का सौंदर्य निहारने पहुँच जाते हैं। हमारा भी गरमी की छुट्टियों में नैनीताल पर्वतीय स्थल पर जाने का कार्यक्रम बना।
दिल्ली से सुबह निकलने पर आठ घंटों में हम सुंदर नजारों की आभा देखते हुए नैनीताल पहुँचे। सुंदर झील के किनारे बसा यह एक छोटा-सा शहर है। शहर के लगभग सभी होटल इसी झील के किनारे स्थित हैं। चारों ओर की ऊँची पर्वत श्रृंखला का प्रतिबिम्ब झील के पानी में दिखाई पड़ता है। इस सुंदर दृश्य का आनंद हमने दो दिन तक लिया।
नाव में बैठे हुए, शरीर को छूती ठंडी-ठंडी हवा ने गरमी का एहसास भी भुला दिया। हमने यहाँ का छोटा-सा चिड़ियाघर और रॉक गार्डन भी देखा। खाने-पीने की भरपूर सुविधाएँ उपलब्ध थीं और शहर के बीच से गुजरती माल रोड खरीदारी के अनेक अवसर देती थी।
यहाँ की ताजी हवा खाने के बाद हम पुनः गरमी में जाने के लिए तैयार थे। अगले वर्ष भी हमें इस स्वच्छ वातावरण का आनंद उठाने का अवसर मिले, हम यही कामना करते हैं।
निबंध नंबर :- 02
किसी पर्वतीय प्रदेश की यात्रा
Kisi Parvatiya Pradesh ki Yatra
नवरात्रों के दिन थे। हम कुछ मित्रों ने माता चिन्तपर्णी के दर्शनों के लिए साइकलों पर जाने का मन बनाया। नियत समय पर हम एक स्थान पर इकट्ठे हो गए। हमने होशियारपुर से अपनी यात्रा आरम्भ की। मेरी यह जीवन में पहली पर्वतीय यात्रा थी। मेरे मन में भय और उत्साह था। कुछ किलोमीटर मैदान इलाके में से गुजरने के बाद पहाड़ी इलाका शुरू हो गया। चढ़ाई आरम्भ होने के कारण हमारे साइकिलों की गति धीमी हो गई। साइकिलों पर. चढाई करने का अनुभव अलग ही होता है। हमें चढ़ाई करने के लिए पूरा जोर लगाना पड़ रहा था। कहीं-कहीं रुक कर विश्राम करते, पानी पीते और फिर यात्रा शुरू कर देते। थोड़ी दूरी पर उतराई शुरू हो गई। साइकिलों को मानों पंख लग गए हों। चढ़ाई से उतराई ज्यादा रोमांचकारी थी। उतराई करते समय बड़ी सावधानी की आवश्यकता होती है। थोड़ी-सी भी असावधानी बरतने से खड्डे में गिरने का भय लगा रहता है। मैंने तो अपनी साइकिल उस ओर रखी जिस ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ दिखाई देते थे। हम माता जी के जयकारे लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे। रास्ते में एक स्थान पर बैठकर खाना खाया। चाय पी, विश्राम किया। सांय तक हम चिन्तपुर्णी पहुंच गए। रात को माता के दर्शन किए। रात हम माता जी के भवन के साथ वाले कमरों में बिताई। दूसरे दिन सुबह ही हम वहाँ से वापिस चल पडे। यात्रा का जो लुतफ मैंने उठाया उसे मैं कभी नहीं भूल सकता।
निबंध नंबर :- 03
एक पर्वतीय स्थल की यात्रा
मेरे मामा उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन वन विभाग में एक अधिकारी हैं। पिछले वर्ष उनका तबादला नैनीताल हो गया। उन्होंने मुझे आमन्त्रित किया कि मैं अपनी गर्मी की छुट्टियाँ उनके साथ नैनीताल में बिताऊँ। यह सुनकर मेरा मन बल्लियों उछलने लगा।
नैनीताल दिल्ली से 322 किलो मीटर दूर है। मैंने सुबह की बस पकड़ी। मुरादाबाद, रामपुर एवं हल्द्वानी होते हुये बस नैनीताल की ओर बढ़ रही थी। सफर अच्छा था। हल्द्वानी पार करके जैसे ही बस चढ़ाई चढ़ने लगी हवा ठण्डी होने लगी। फैली हरियाली देखने में बहुत आनन्द आ रहा था। शाम को बस नैनीताल पहुँची। मेरे मामा-मामी मुझे लेने बस स्टेशन पर आये हुये थे।
नैनीताल एक झील के चारों ओर बसा हुआ है। 1938 मीटर की ऊँचाई पर स्थित झील अंगूठी में नगीने की तरह खूबसूरत है जो नैनीताल के सौन्दर्य को और भी बढ़ा देती है। यह चारों ओर से पहाड़ों से घिरी है जिनमें कई सुन्दर बंगले और कॉटेज बने हुये हैं। ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ पेड़ों से ढंकी हुयी हैं। मैंने झील में नौका विहार का आनन्द उठाया। मैंने वहाँ पर घुड़सवारी भी की।
नैनीताल का नामकरण ‘नैना देवी’ के नाम पर किया गया है। चाइना पीक, हनुमान गढ़ी, लोरिया कांटा एवं लैन्ड्स एंड यहाँ के कुछ आकर्षक दर्शनीय स्थल हैं। भीम ताल एवं नौकचिया ताल नैनीताल के पास स्थित अन्य पिकनिक स्थल हैं।
मैं नैनीताल में मामा के घर 15 दिन रहा। एक वन अधिकारी के साथ नैनीताल घूमने का मज़ा अलग ही था। मुझे नैनीताल बहुत पसन्द आया और दिल्ली वापिस आकर तो ऐसा लग रहा था कि मैं हर बार छुट्टियाँ मनाने नैनीताल ही जाऊँ।