Hindi Essay on “Pariksha Pranali aur Nakal ki Samasya ”, “परीक्षा प्रणाली और नकल की समस्या”, Hindi Nibandh, Anuched for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

परीक्षा प्रणाली और नकल की समस्या

Pariksha Pranali aur Nakal ki Samasya 

भूमिका- मनुष्य में नकल करने करने की प्रवृति सहज और जन्मजात होती है। दूसरे के प्रभावपूर्ण व्यवहार रखकर स्वयं भी वैसा करने की चाह रखता है। बचपन में तो बच्चे को सिखाने के लिए नकल का सहारा लेना पडता है। परन्त इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि बचपन की यह नकल भविष्यके लिए आधार तैयार करती है कि नकल मारना (करना) जन्मसिद्ध अधिकार है। बचपन की अवस्था को पार करके स्वयं सीखने की अवस्था आती है तो उस समय नकल घातक सिद्ध हो सकती है।

पुराने समय में पढ़ाने का ढंग और परीक्षा- पुराने समय में पढ़ाने का ढंग आधुनिक ढंग से बिल्कुल भिन्न था। शिक्षा का उद्देश्य मानव को भौतिक सुखों से दूर रखकर मानवीय गुणों का विकास, आध्यात्मिक सुख और आनन्द की प्राप्ति से जुड़ा था। शिक्षा पद्धति आज जैसी नहीं थी। उसमें लिखित परीक्षा नहीं थी। आश्रमों और गुरुकुलों में होने वाली परीक्षा प्रणाली में तो केवल गुरू की संतुष्टि और उनका यह कहना कि अध्ययन पूर्ण हो चुका है वही प्रमाण था। नालंदा और वक्षशिला विश्वविद्यालयों में परीक्षा की अच्छी पद्धति थी। उन विश्वविद्यालयों में प्रवेश के समय ली जाने वाली परीक्षा बहुत कठिन होती थी और यह परख की जाती थी कि क्या सचमुच कोई ज्ञान प्राप्त करने का जिज्ञासु है अथवा इच्छुक है। कोई भी अध्यापक देख-रेख करने के लिए नहीं होते थे।

आधुनिक परीक्षा प्रणाली और नकल- जैसे-जैसे शिक्षा का प्रसार बढ़ता गया तथा शिक्षा के द्वार सबके लिए खुलने लगे। सभी विद्यालयों की ओर चल पड़े। परीक्षा ही ज्ञान की कसौटी मानी जाने लगी। परीक्षा पद्धति भी दोषपूर्ण हो गई। स्वतन्त्रता प्राप्ति के लोगों का सरकारी नौकरी में आकर्षण हो गया। भारत में चौथी-पांचवीं पास को पटवारी की नौकरी मिलजाती थी। जनसंख्या की वृद्धि के साथ-साथ शिक्षा को अनिवार्य माना जाने लगा तथा स्कूलों और कॉलजों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ने लगी। उस समय शिक्षा का सम्बन्ध केवल नौकरी प्राप्त करना ही रह गया। लोग निर्धन थे। उनके पास आय के साधन न होने कारण भी गाँव के लोग शहरों की ओर भागने लगे। साफसुथरे कपड़े पहन कर, बाबू बन कर कुर्सी में बैठकर काम करने का लालच अधिक था। खेतों में काम करना उन्हें पसन्द न था। परिणाम यह हुआ कि किसी भी तरह प्रमाण-पत्र प्राप्त करना ही शिक्षा का उद्देश्य हो गया। अब नौकरी के लिए अच्छे अंक प्राप्त करना अनिवार्य हो गया तो विद्यार्थियों का ध्यान नकल की ओर चला गया।

नकल की बढ़ती हुई प्रवृति का प्रभाव- आज का विद्यार्थी प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए नकल का सहारा लेता है। आज का स्नातक वृद्धि और चिन्तन में तो अनपढ़ लगता है, वह शुद्ध पढ़ना और लिखना भी नहीं जानता है। आम विद्यार्थी चार-पांच पंक्तियां भी शुद्ध नहीं लिख पाता है। अंग्रेजी भाषा की स्थिति तो ओर बी खराब है। ज्ञान शून्य विद्यार्थी दसवीं पास और डिग्री धारी बन गए। नकल की प्रवृति के कारण परीक्षाएं पास करने वाला विद्यार्थी अयोग्य होता है और जब उसे किसी प्रकार की नौकरी मिल जाती है तो वह कार्यालय पर बोझ बन कर रह जाता है। नकल की लत से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के द्वारा उनके लिए बन्द हो जाते हैं लेकिन दूसरी ओर साक्षर लोगों की, प्रमाण पत्र प्राप्त करने वालों की संख्या बढ़ जाने से बेरोजगारी की समस्या भयानक रूप से बढ़ती जाती

नकल रोकने के उपाय- शिक्षा अधिकारियों, प्रिंसीपलों, मुख्याध्यापकों का पहला फर्ज यह होना चाहिए कि नकल करने वाले छात्र को स्कूल, कॉलेज अथवा परीक्षा से निष्कासित कर देना चाहिए और भविष्य की शिक्षा के लिए उसे वंचित कर देना चाहिए।

शिक्षा क्षेत्र में आजकल सरल ढंग से लिखी गई गाइडों और कुजियों का प्रचलन बहुत बढ़ गया है। इन गाइडों में प्रश्नों के उत्तर तैयार होते हैं और विद्यार्थी बिना पाठ्य-पुस्तकें पढ़ें इन से प्रश्न रट लेता है या नकल करने के लिए पर्चियां तैयार करता है। यह बिमारी इतनी बढ़ गई है कि कुछ प्रकाशकों ने तो छोटी-छोटी पुस्तकें तैयार करवाई हैं जिन्हें जेब में रखना बहुत ही आसान होता है।

आजकल देखने में आया है कि माता-पिता भी इस कार्य में सहायता करते हैं। उन पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है। परीक्षा प्रणाली को बदलना अति जरूरी है। पूरे वर्ष की पढ़ाई की जांच एवं समय-समय पर होने वाली मासिक परीक्षाओं के परिणाम को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। नकल में सहायता करने वाले केन्द्र अधिकारी तथा निरीक्षकों को सजा मिलनी चाहिए। परीक्षापत्र भी अलग-अलग ढंग के होने चाहिए। इस भयावह रोग से बचने के लिए अध्यापक विद्यार्थी, माता-पिता और अन्य सम्बन्धित व्यक्तियों को इमानदारी से शिक्षा की ओर ध्यान देना होगा।

उपसंहार- शिक्षा मानव जीवन का आभूषण है लेकिन इसकी चमक तभी सम्भव होती है यदि वह शुद्ध हो। भाव परीक्षा पास कर, डिग्री प्राप्त कर ज्ञान रहित विद्यार्थी जीवन में अनेक बार अपमान सहन करते हैं और वे स्वयं भी लज्जित होकर पश्चाताप करते हैं। यदि शिक्षा प्रणाली और परीक्षा प्रणाली में परिवर्तन किया जाए तथा शिक्षा का उद्देश्य मात्र नौकरी प्राप्त करना ही न हो तो नकल के प्रति आकर्षण कम हो जाएगा।

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