Hindi Essay on “Nav Varsh”, “नववर्ष”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

नववर्ष

Nav Varsh

जिस तरह अंग्रेजी महीने के अनुसार विश्व में नया वर्ष जनवरी माह से शुरू होता है, उसी तरह भारत देश की परम्परा में नए वर्ष की शुरूआत चैत्र महीने से होती  है।

विक्रम संवत् हमारे देश का सर्वमान्य संवत् है। इस संवत के हिसाब से नवीन वर्ष का शुभारम्भ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि (पहली तिथि) से होता है।

चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा वसन्त ऋतु के मौसम में आती है। उस समय तक लोग रंग और गुलाब की होली खेल चुके होते हैं और सभी वसन्त ऋतु की मधुरता और सौन्दर्य को निरख-निरखकर प्रफुल्लित हो रहे होते हैं।

खेतों में गेहूं की फसलें कट चुकी होती हैं। नए साल में किसानों के घर नया अनाज आता है। इस तरह भारतवासियों के नए साल की शुरूआत वसन्त के मादक सौन्दर्य तथा धन-धान्य की समृद्धि से होती है।

ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि सृष्टि का शुभारंभ चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा को ही हुआ था तथा इसी दिन से भारत के अन्दर कालगणना होने लगी थी। शाक्त सम्प्रदाय के वासन्तिक नवरात्र इसी दिन से आरम्भ होते हैं।

‘वर्ष प्रतिपदा’ का अर्थ है ‘वर्ष का पहला दिन’ और नव संवत्सर का अर्थ ‘नया संवत्’ होता है।

‘विक्रम संवतु’ की शुरूआत उस दिन से हुई थी, जिस दिन भारत के प्रतापी राजा विक्रमादित्य भारत की राजगद्दी पर बैठे थे। उनका जन्म अवन्ति देश (राज्य) की प्राचीन नगरी उज्जयिनी में हुआ था। उनके पिता का नाम महेन्द्रादित्य था। माता का नाम मलयवती था।

जव विक्रमादित्य युवा ही थे तो उनके पिता ने उज्जयिनी नगर का राज्य उन्हें सौंप दिया था।

जिस समय विक्रमादित्य राजा बने, उस समय चारों तरफ शक लोगों का आतंक था। शक लोग पारस कुश (ईरान देश) से सिंध (भारत) में आए थे। उहले ये विदेशी आक्रमणकारी लोग सौराष्ट्र, गुजरात और महाराष्ट्र में फैले फिर दक्षिणी गुजरात से इन्होंने उज्जयिनी नगरी पर आक्रमण किया। ये लोग भारत की जनता पर बड़ी क्रूरता और निर्दयता से अत्याचार करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। एक बार तो शक लोगों ने उज्जयिनी नगर को भी पूरी तरह ध्वस्त करके उसकी भूमि को गधों और हलो से जुतवाकर समतल करा दिया था। उस समय उज्जयिनी नगर का शासन विक्रमादित्य के पिता सँभाल रहे थे लेकिन विक्रमादित्य के राजा बनते ही उन्होंने (विक्रमादित्य ने) सबसे पहले शकों को मजा चखाने की ठानी। विक्रमादित्य और उनकी सेना का, शक सेना से अनेक बार युद्ध हुआ परन्तु हर बार शकों को अपने मुँह की खानी पड़ी।

जैसे-जैसे राजा विक्रमादित्य के युद्ध अभियान प्रबल होते गए, वैसे-वैसे शकों का आतंक भारत देश की धरती से मिटता गया। विक्रमादित्य और उनकी दिग्विजयिनी सेना ने शकों को भारत से बाहर की ओर खदेड़ दिया और इस प्रकार देश में पुनः सुख-शान्ति और समृद्धि की स्थापना हुई।

कहते हैं कि सम्राट विक्रमादित्य ने मलयद्वीप की राजकुमारी से विवाह किया था और यह भी कहा जाता है कि गुजरात में सोमनाथ का प्राचीन मंदिर राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। वह सारा मन्दिर सोने की धातु का बना हुआ था तथा उसमें हीरे का शिवलिंग स्थापित था। अपने माता-पिता की तरह सम्राट विक्रमादित्य भी भगवान शिव के अनन्य उपासक थे।

कालान्तर में महमूद गजनवी नामक गजनी के लुटेरे ने गुजरात पर अनेक बार आक्रमण करके सोमनाथ मन्दिर की स्वर्ण सम्पदा को कई बार लुटा। मन्दिर की रक्षा करते हुए अनेक भक्तों को अपने प्राणों से भी हाथ धोना पड़ा था।

ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार शकों का उन्मूलन करने और उन पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में ही सम्राट विक्रमादित्य ने ‘विक्रम संवत्’ की शुरूआत की थी। विक्रम संवत् ईसामसीह के ईस्वी संवत् से केवल 57 वर्ष पूर्व ही शुरू हुआ था।

इस समय यदि विक्रम संवत् 2060 है तो इसका मतलब यह है कि आज से 2060 वर्ष पहले सम्राट विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त की थी और भारतीय संवत् की शुरूआत हुई थी।

सम्राट विक्रमादित्य बड़े न्यायकारी थे। न्याय करते समय वे दूध का दूध और पानी का पानी कर देते थे। उनके न्याय और कुशल प्रशासन के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। सम्राट विक्रमादित्य रात्रि को वेश बदलकर प्रजा का हाल-चाल मालूम करने के लिए महल से निकलते थे। वे प्रजा पालन में सदैव तत्पर, पर दुःख कातर, त्यागी, महादानी तथा अत्यंत उदार किस्म के थे। उनके दरबार में साहित्य और कला की कदर की जाती थी।

आन्ध्रप्रदेश में नवसंवत्सर का त्यौहार ‘युगादि’ नाम से मनाया जाता है। युगादि का मतलब है-युग का शुभारंभ या जगतपिता ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रचने का पहला दिन । आन्ध्रप्रदेश के निवासी दीपावली की तरह इस दिन को खूब धूमधाम के साथ मनाते हैं।

सिन्धी लोग इस दिन को “चेटीचंडो” (चैत्रका चन्द्र) नाम से समारोहपूर्वक मनाते हैं। कश्मीर में “नौरोज़’ नाम से यह पर्व मनाया जाता है।

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