मेरी पहली रेल यात्रा
Meri Pehli Rail Yatra
निबंध नंबर :-01
मार्च के महीने में मेरे चौथी कक्षा के पेपर समाप्त हो गए तथा उसके बाद एक महीने की पढ़ाई के बाद मई में मेरी दो महीने की छुट्टियाँ शुरू हो गई। जब मेरे विद्यालय में गर्मियों की छुट्टियाँ हुई तो मेरी माताजी ने हमारे गाँव जाने का कार्यक्रम बनाया जहाँ मेरे दादाजी तथा दादीजी रहते हैं। पहले वहाँ केवल बसें जाती थी परन्तु अब वहाँ रेल का भी साधन हो गया। तथा हमने रेल यात्रा करने की योजना बनाई क्योंकि मैं पहली बार रेल यात्रा कर रहा था इसलिए यह मेरे लिए बहुत रोचक था तथा मेरे अंदर उत्साह भी था।
जिस दिन हमें जाना था उस दिन प्रातः जल्दी उठ गया तथा नहा-धोकर तैयार हो गया। उसके बाद हम सब पूरी तैयारी करके पूरे परिवार के साथ स्टेशन पर पहुँच गए। स्टेशन पर जहाँ भी देखो वहीं लोग अपना बैग उठाए जा रहे थे। वहाँ टिकट की खिड़की पर बहुत भीड़ थी। मेरे पिताजी टिकट लेने चले गए। वहाँ स्टेशन पर कई लोग टिकट ले रहे थे। कोई रेल का जानकारी ले रहा था तो कोई उनकी समय सारणी देख रहा था। स्टेशन पर जगह-जगह पानी व पुस्तक पत्रिकाओं तथा खाने के स्टाल लगे हुए थे। कुली इधर से उधर सामान लेकर जा रहे थे।
हम भी टिकट लेकर वहाँ स्टेशन पर बैठ गए तथा तभी पांच मिनट बाद हमारी रेल आ गई। उसके बाद हम रेल में चढ़ गए तथा अपनी सीट पर बैठ गए। रेल के अंदर बहुत भीड़ थी। कोई किताब पढ़ रहा था कोई कुछ खा रहा था। हमारे साथ वाली सीट पर एक छोटा बच्चा रो रहा था। उसके बाद सिगनल हुआ और रेल चल पड़ी। कुछ ही देर में रेल तेज गति से चलने लगी। मैं खिड़की के पास बैठा था। वहाँ से देखने पर लग रहा था कि मानो पशु-पक्षी, पेड़-पौधे सभी भाग रहे हों। मुझे रेल में बड़ा आनन्द आ रहा था। ऐसा लग रहा था मानो मैं झूला झूल रहा हूँ। थोड़ी देर में ही मुझे नींद आ गई। जब हमारा गाँव आया तो मेरी माता जी ने मुझे उठाया और कहा कि हम गाँव पहुँच गए। यह मेरी पहली रेल यात्रा थी जो बड़ी अच्छी थी।
निबंध नंबर :-02
मेरी पहली रेल यात्रा
Meri Pehli Rail Yatra
एक दिन हमने मिलकर जयपुर जाने का निश्चय किया। में बहुत उत्साहित था, क्योंकि रेलगाडी से जयपुर जा रहे थे। में पहली बार रेल से यात्रा करने जा रहा था। मैंने माता-पिता की के साथ मिलकर जाने की तैयारी की और फिर रेलगाड़ी पकड़ने के लिए रेलवे स्टेशन पर गए। टिकट-काउंटर पर बहुत भीड़ थी। टिकट लेने के बाद रेल के आने का इंतज़ार करने लगे। कछ देर बाद रेलगाडी स्टेशन पर आ गई। हम जल्दी से एक डिब्बे में चढ गए। सीट आसानी से मिल गई। थोड़ी ही देर में रेल चल पड़ी। मेरे लिए यह एक अनोखा अनुभव था। पेड़-पौधे. घर-द्वार, पशु-पक्षी आदि सब पीछे की ओर छूटते दिखाई दे रहे थे। जैसे ही कोई स्टेशन आता, रेलगाड़ी रुक जाती। कुछ घंटों में हम अपने गंतव्य पर पहुँच गए। मैं बहुत खुश था, क्योंकि मेरे लिए यह एक अविस्मरणीय अनुभव था।