Hindi Essay on “Matribhasha Ka Mahatva”, “मातृभाषा का महत्त्व” Complete Paragraph, Speech for Students.

मातृभाषा का महत्त्व

Matribhasha Ka Mahatva

संसार के सभी देशों में शिक्षित व्यक्ति की सबसे पहली पहचान यह होती है कि वह अपनी मातृभाषा में दक्षता से काम कर सकता है। केवल भारत ही एक ऐसा देश है जिसमें शिक्षित व्यक्ति वह समझा जाता है जो अपनी मातृभाषा में दक्ष हो या नहीं किन्तु अंग्रेजी में जिसकी दक्षता असंदिग्ध हो। संसार के अन्य देशों में ससंस्कत व्यक्ति वह समझा जाता है जिसके घर में अपनी भाषा की पुस्तकों का संग्रह हो और जिसे बराबर यह पता रहे कि उसकी भाषा के अच्छे लेखक और कवि कौन है तथा समय-समय पर उनकी कौन-सी कृतियाँ प्रकाशित हो रही हैं ? भारत में स्थिति दुसरी है। यहाँ घर में प्राय: साज-सज्जा के आधुनिक उपकरण तो होते हैं किन्तु अपनी भाषा की कोई पुस्तक नहीं होती है। यह दरवस्था भले ही किसी ऐतिहासिक प्रक्रिया का परिणाम है किन्तु यह सुदशा नहीं है दुरवस्था ही है। इस दृष्टि से भारतीय भाषाओं के लेखक केवल यूरोपीय और अमेरिकी लेखका सहा हीन नहीं हैं बल्कि उनकी किस्मत चीन, जापान के लेखकों की किस्मत से भी खराब है क्योंकि इन सभी लेखकों की कृतियाँ वहाँ के अत्यन्त सुशिक्षित लोग भी पढ़ते हैं। केवल हम ही नहीं हैं जिनकी पुस्तकों पर यहाँ के तथाकथित शिक्षित समुदाय की दृष्टि प्रायः नहीं पड़ती। हमारा तथाकथित उच्च शिक्षित समुदाय जो कुछ पढ़ना चाहता है, उसे अंग्रेजी में ही पढ़ लेता है। यहाँ तक उसकी कविता और उपन्यास पढ़ने की तृष्णा भी अंग्रेजी की कविता और उपन्यास पढ़कर ही समाप्त हो जाती है और ठसे यह जानने की इच्छा ही नहीं होती कि शरीर से वह जिस समाज का सदस्य है उसके मनोभाव उपन्यास और काव्य में किस अदा से व्यक्त हो रहे हैं।

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