Hindi Essay on “Man Ke Hare Haar Hai, Man ke Jite Jeet”, “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

Man Ke Hare Haar Hai, Man ke Jite Jeet

निबंध नंबर :- 01

मनुष्य का जीवन विविध प्रकार के संकल्पों और विकल्पों से क्रियाशील होता ! रहता है। कुछ मानव के जीवन में कभी सफलता आती है, तो कभी असफलता। हम देखते हैं कि कछ ऐसे मनुष्य हैं जिन्हें जीवन में निरन्तर सफलता ही चूमती है। ऐसे भी मनुष्य होते हैं, जिन्हें बार-बार असफलता और पराजय के ही मुंह देखने पड़ते हैं। जिन्हें सफलताओं का हार पहनने को मिलता है, वे सामान्य व्यक्ति नहीं होते हैं। वे आलसी और बुजदिल नहीं होते हैं, अपित वे बहुत ही अधिक साहसी और दिलेर होते हैं। जिन्हें अपार मनोबल प्राप्त होता है और जो बाधाओं पर छा। जाने होते हैं, वे ही विजयी और भाग्य-विधाता होते हैं।

हमारी जीवन प्रक्रिया का संचालक केवल मन और आत्मा है। मन कभी आत्मा को वश में कर लेता है तो कभी आत्मा मन को, इस प्रकार मन और आत्मा पर। परस्पर सम्बन्ध बहत गहरा और घनिष्ठ सम्बन्ध है। मन और आत्मा के सहयोग से मनष्य अपने उद्देश्य की प्राप्ति करने में सफल हो जाता है। जो भी व्यक्ति मन लगाकर किसी भी असंभव कार्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील होने लगता है तो वह निश्चित रूप से उसे संभव कर ही लेता है। इस प्रसंग में महाकवि रहीमदास का यह कथन उद्धृत किया जा सकता है–

रहिमन मनहिं लगाइके, देखि लेहुँ किन कोय।

नर को वस कर वो कहाँ, नारायण वश होय।।

मन का योग ही सब प्रकार की शक्तियों को योग केन्द्र होता है। मन ही मनुष्य की उन्नति और बंधन का कारण है–

मन एच मनुष्याणां कारणं बन्धन मोक्षयोः।’

हम यह भली-भांति जानते हैं कि संघर्ष ही जीवन है। बिना संघर्ष के किसी प्रकार की सफलता की आशा नहीं की जा सकती है। वीर पुरुष हमेशा संघर्षरत जीवन जीते हैं। संघर्ष की बुनियाद पर ही नेपोलियन ने अदम्य उत्साह से कहा था कि असफलता शब्द मेरे शब्दकोश में नहीं है। संघर्ष ही कर्म है और कर्म ही जीवन। किसी प्रकार का संघर्ष या कर्म हो। उसमें मनोयोग होन नितान्त आवश्यक है। मन के योग से किसी प्रकार की कार्यसिद्धि होती है। बिना मनोयोग के सभी प्रकार की अटक-भटक शुरू हो जाती है। इसीलिए पंजाब केसरी लाला लाजपत राय ने साहसपूर्ण कथन प्रस्तुत करते हुए कहा था–

सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ?

जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा।।

कर्म तभी प्रधान और श्रेष्ठ होता है जब वह मन के द्वारा संचालित होता है। जब कर्म मन के द्वारा संचालित होने लगता है, तब वह विविध प्रकार की सिद्धियों का द्वार खोलने लगता है। इसीलिए भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को मनोयोगपूर्वक कर्म करने का उपदेश दिया था–

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्।

माँ कर्मफलतेहुर्भुमां से संयोऽस्वकर्मणि।।

जिराने मन से, लगन और पूरी भावना से किसी कार्य को आरम्भ किया, उसे सफलता मिलने में देर नहीं लगती है। धैर्य और विश्वासपूर्वक कार्य के प्रति सचेष्ट होने की आवश्यकता के द्वारा ही सुपरिणाम मिलने लगते हैं, कभी-कभी सफलता या सुपरिणाम में कुछ विलम्ब भी हो जाता है। लेकिन कार्यपूर्ण न होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। अतएव धैर्य और आशा का सम्बल होना इसके लिए अत्यन्त आवश्यक होता है। किसी कवि का यह कहना बहुत ही सार्थक और उपयुक्त सिद्ध होता है–

धीरे-धीरे रे मना, धीरे-धीरे सब कुछ होय।।

माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आवे फल होय।।

अतएव मन के योग से विजय निश्चित है और मन के हार जाने से पराजय का ही मुँह देखना पड़ता है। अतः मनोयोगपूर्वक कार्य करना चाहिए।

 

निबंध नंबर:- 02

 

एक बार दो मेढ़क तालाब में पानी सूख जाने पर भटकते-भटकते वे एक हलवाई की दुकान पर पहुंचे जहां वे एक दूध की बाल्टी में गिर गए। दोनों बाहर निकलने का रास्ता ढूंढने लगे और तैरते रहे लेकिन वे किसी भी प्रकार बाहर न निकल सके। इससे निराश होकर एक मेढक सोचने लगा कि यहाँ से बाहर निकलना सम्भव नहीं है। अत: प्रयत्ल करना व्यर्थ है। प्रातः काल जब हलवाई आएगा तो हमें मार देगा। इस प्रकार अब मौत निश्चित है। उसने तैरना छोड़ दिया। अन्त में वह दूध में डूब कर मर गया। दूसरा मेंढक नहीं हारा। यद्यपि वह थक भी गया था। वह तैरता ही रहा और बाल्टी में चक्कर काटता रहा। चक्कर काटने से दध मथने लगा और मक्खन बनने लगा। अन्त में मक्खन के ढेलों पर चढ़कर छलांग लगा कर वह बाल्टी से बाहर आ गया। भाग कर उसने अपनी जान बचा ली। इस प्रकार उसकी शक्ति ने उसकी जान बचा दी।

शिक्षा- मन के हारे हार है मन के जीते जीत।

 

 

निबंध नंबर:- 03

 

विचार-बिन्दु- • मन से हारा व्यक्ति असफलता के भय से ग्रस्त • उसकी शक्ति मंद • कर्म शिथिल •आत्मविश्वासी के काम सँवरते हैं  •विजय का मार्ग खुल जाता है।

मन से हारा हुआ व्यक्ति कोई भी कार्य या संघर्ष करने से पहले हार जाता है। वह अपनी सफलता का विश्वास नहीं सँजी पाता। मन में हारने का भय मनुष्य को भयभीत बना देता है। भयभीत आदमी हिचक-हिचक कर, रुक-रुक कर काम करता है। वह अपने आप को पूरी शक्ति से लक्ष्य में झौंक नहीं पाता। परिणाम यह होता है कि उसके हाथ ढीले पड़ जाते हैं, पैरों की गति मंद हो जाती है। अत: व्यक्ति अपेक्षित सफलता नहीं पा पाता। इसके विपरीत जो व्यक्ति आत्मविश्वास के साथ मैदान में उतरता है, उसके बिगड़े काम सँवर जाते हैं। उसे मार्ग की कोई मुसीबत, मुसीबत नहीं लगती। सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि आत्मविश्वासी मनुष्य राह के कष्टों को कष्ट मानता ही नहीं। इस प्रकार उसकी विजय निश्चित हो जाती है। इसीलिए प्रभु से प्रार्थना की गई है-

हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें।

दूसरों की जय से पहले, खुद को जय करें।

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