जियो और जीने दो
Jiyo aur Jine do
“जिओ और जीने दो” यह एक सुनहरा सिद्धान्त है। यह हमें सहयोग और भाईचारे के महत्व के बारे में बताता है। सहयोग और भाईचारे से ही हम किसी भी कठिन से कठिन कार्य को आसान बना सकते हैं। हमारी घरेलू, सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जीवन में अगर “देना और लेना” के सिद्धांत को अपनाएँ तो अधिकतर समस्याएँ हल हो सकती हैं।
अधिकतर व्यक्ति स्वार्थी और रुढ़िवादी विचारों वाले होते हैं। वे सिर्फ अपने आपको खुश देखना चाहते हैं तथा वह कभी भी दूसरों की सुविधा के लिए नहीं सोचते। वे नहीं जानते कि हम सब एक हैं। भगवान हमारा पिता है और हम सब आपस में भाई, बहन हैं। हमें एक-दूसरे की सहायता यही समझकर करनी चाहिए। तथा परस्पर एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए। क्योंकि सहयोग करने से ही आपसी प्रेम बढ़ता है तथा देश में एकता बनी रहती है। फिर चाहे कैसी भी सामाजिक या राष्ट्रीय समस्या हो उसका आसानी से हल निकल सकता है। हम एक-दूसरे पर ही दोषारोपण करते रहते हैं तथा न तो खुद ही सुख से जी पाते हैं और न ही दूसरे व्यक्ति को जीने देते हैं।
गुरुनानक, महात्मा गाँधी, और बाद के जितने भी हमारे नेता पंडित जवाहर लाल नेहरू आदि हुए, वे सभी इसी भावना के पक्ष में थे। पंचशील में ‘जिओ और जीन दो’ एक सिद्धांत भी है। अगर संसार की बड़ी-बड़ी शक्तियाँ बड़े-बड़े देश आपसी सहयोग से रहें तो कभी भी युद्ध के बादल नहीं छा सकते अर्थात् युद्ध की संभावना ही समाप्त हो जाएगी। परंतु वह सब एक-दूसरे को सहयोग देने की बजाय परेशान करते हैं। और दूसरों को दु:खी करके ही अपने सुख की तलाश करते हैं। हम सिर्फ अपनी भलाई में जीते हैं। जब कि हमें दूसरों की भलाई के लिए भी जीना चाहिए। मुसीबत पड़ने पर एकजुट होकर समस्या का समाधान करना चाहिए। इस प्रकार अगर हम इस सिद्धान्त का पालन करते हैं तो आपसी भाइचारे तथा सहयोग की भावना से एक-दूसरे के काम आ सकेंगे।