Hindi Essay on “India me Multi National Companies ”, “भारत में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ: वरदान या अभिशाप”, Hindi Nibandh for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

भारत में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ: वरदान या अभिशाप

India me Multi National Companies 

आजादी से पहले कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भारत आयी। जिनमें सबसे प्रमुख ‘ईस्ट इंडिया कम्पनी’ थी। इसने भारत को सबसे अधिक प्रभावित किया। इतना ही नहीं आजादी से पहले तो मुद्रा भी विदेशी थी। सभी लेन-देन में इसी मुद्रा का प्रयोग किया जाता था। जूट-उद्योग, कोयला खदान, जहाजरानी, चाय के बागान आदि सभी क्षेत्रों पर अंग्रेजी सरकार का नियंत्रण था। वैसे 1920 के बाद कुछ अमेरिकी कम्पनियाँ भी भारत में आयी, जिनमें जनरल मोटर्स प्रमुख हैं। लेकिन इन सभी कम्पनियों ने भारत की अर्थव्यवस्था को कमजोर ही किया। भारतीय सस्ते कच्चे माल का निर्यात करके महँगे सामान का आयात किया जाता था। एक समय सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत आर्थिक रूप से बहुत कमजोर हो गया। शायद भारत के अब तक पिछड़े रहने का कारण यही है।

स्वंतत्रता के बाद जो औद्योगिक नीति अपनाई गयी थी उसमें विदेशी पूँजी के आने पर काफी हद तक प्रतिबंध लगा दिया था। जो कम्पनियाँ भारत में कारोबार कर रही थी उनमें भी विदेशी पूँजी को कम कर दिया गया। भारत 1980 के दशक तक एक विकासशील देश बन गया। लेकिन 1991 के बाद आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनायी गई जिसके अंतर्गत भारत में विदेशी पूँजी का निवेश बहत तीव्रता से हुआ। यह उदारीकरण का बदलाव विश्व के अनेक देशों में आया। वैसे तो विदेशी निवेश 1970 के बाद से ही शुरु हो गया था। अब विदेशी पुँजी निवेश न केवल कच्चे माल में होता है बल्कि उच्च तकनीक और सेवा क्षेत्रों में भी तेजी से हो रहा है। पहले तो बहुत सी राष्ट्रीय कम्पनियाँ पेटोलियम और प्राकृतिक गैस के क्षेत्र में भी निवेश करती थी। लेकिन इन क्षेत्रों का राष्ट्रीयकरण हो जाने के कारण इन कम्पनियों की क्रियाशीलता इन क्षेत्रों में घट गई।

‘इस वैश्वीकरण और उदारीकरण की नीति के अंतर्गत विकासशील देशों ने पाँच वर्षों में विदेशी पूँजी निवेश में बहुत तेजी से परिवर्तन किया है। विदेशी निवेश का अधिकांश भाग एशिया और प्रशांत क्षेत्र को गया है। लेकिन इसकी तुलना में दक्षिण एशिया का भाग आज भी पिछड़ा हुआ है। आज देश के प्रत्येक क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। यह स्थिति हमारे हित में तभी होगी जब ये कम्पनियाँ अपनी हाइटेक टैक्नोलॉजी की तकनीक को दूसरे देश को देगी। लेकिन जो तकनीक दी जाती है वे समय की माँग के अनुसार नहीं होती। हमें तो दूसरे दर्जे की भी विदेशी तकनीक नहीं मिली है। आर्थिक उदारीकरण के रूप में विदेशी व्यापार को मुक्त करने से अब तक लगभग 3 लाख भारतीय लघु औद्योगिक इकाईयाँ बंद हो चुकी है। इसके साथ ही लाखों बन्द होने के इंतजार में हैं।

लेकिन आज प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से विकासशील देशों में रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न हो रहे हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में कार्यरत लोगों की औसत आय में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। जब किसी देश की राजनीतिक स्थिति अस्थिर होती है तो उस देश में मजदूरी बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में देश में आयी प्रत्यक्ष पूँजी निवेश का पलायन होने लगता है। जैसा कि पूर्वी यूरोप और कोरिया में तेजी से बढ़ी मजदूरी के कारण वहाँ की पूँजी का पलायन चीन की ओर हो गया।

भारत में हुए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मात्रा विश्व औसत से अभी बहुत कम है। हालांकि भारत इस क्षेत्र में हाल ही में उतरा है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का कारण भारत में कुशल श्रमिकों का अधिक संख्या में होना है। इसके अलावा अन्य विकासशील देशों की तुलना में भारत में औद्योगिक आधार अच्छा है। यही कारण है कि भारत में अधिकांश विदेशी निवेश साझा उपक्रमों में हो रहा है, जिसमें भारतीयों का ही अधिकाधिक नियत्रंण है। अतः भविष्य में भी भारत में विदेशी निवेश स्थिर रहने की संभावना है। भारत में कुछ राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितियों व प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की प्रकृति में हुए परिवर्तनों के कारण रक्षा और सुरक्षा जैसे कुछ क्षेत्रों में विदेशी निवेश को अनुमति नहीं दी गयी है। उसके अलावा कृषि क्षेत्र में लगभग 60 प्रतिशत लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इसलिए इस क्षेत्र में भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को स्वीकृति नहीं मिल सकती है।

विदेशी निवेश के बारे में सरकार ने अभी हाल के वर्षों में अधिक नरम नीति अपनायी। लेकिन इस बारे में कोई एक मत नहीं बन पाया है। इसके विरोध के तीन कारण हैं। राष्ट्रीय हितों के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है, जैसा ईस्ट इंडिया कम्पनी के समय में हुआ था। दूसरा यह कि इन कम्पनियों का व्यावहार अपने देश में कपटपूर्ण होता है। ये कम्पनियाँ अपने माल को अधिक दामों पर बेचती हैं जबकि खरीदती सस्ते दामों पर है। तीसरा, विरोध का कारण यह है कि ये कम्पनियाँ निर्यात कम करती हैं और ऊपरी ढंग से ही अधिक लाभांश की घोषणा करती है। कुछ खास उद्योगों में ही ये निवेश करना चाहती है और नई तकनीक नहीं लाती है इत्यादि। कुछ लोग इस बात से भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का विरोध कर रहे हैं क्योंकि विदेशी निवेश बढ़ने से ये कम्पनियाँ देश की आर्थिक और सामाजिक जीवन को भी प्रभावित करने की स्थिति आ गई है।

अत: बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ न तो अच्छी होती हैं और न ही बुरी। यह निर्णय हमें लेना है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों से रोजगार व आर्थिक विकास की गति तेज हो। लेकिन यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारी पूरी निर्भरता उस पर नहीं रहनी चाहिए।

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